۳ آذر ۱۴۰۳ |۲۱ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 23, 2024
आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अमजद हुसैन रिज़वी

हौज़ा / पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अमजद हुसैन रिज़वी,हिंदुस्तान के एक शिया अलिमे दीन मुजतहिद मरजा ओर साहिबे रिसाला थे अप बारह सो अस्सी हिजरी में सरज़मीने रसूलपुर सोनी ज़िला इलाहबाद सूबा यूपी हिंदुस्तान मे पैदा हुए, आपके वालिद इंतेहाई परहेज़गार, मुत्तक़ी, जलीलुलक़द्र आलिम, हाफिज़े नहजुलबलागा सरकार ताजुलओलमा “ सय्यद मुनव्वर अली रिज़वी” मुजताहिद थे|

आप ने इबतेदाई तालीम अपने वालिद से हासिल की उसके बाद तहसीले उलूमे आले मोहम्मद के लिए आज़िमे लखनऊ हुए ओर वहाँ रहकर जय्यद ओर बुज़ुर्ग असातेज़ा किराम की खिदमत में ज़ानुए अदब तै किए।

जिनमें से: मुफ़ती सय्यद मोहम्मद अब्बास,आयतुल्लाह सय्यद अहमद अली मोहम्मदाबादी, ताजुलओलमा अली मोहम्मद लखनवी वगैरा के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं|

मोसूफ़ लखनऊ में दस साल जय्यद असातेज़ा से कसबे फ़ैज़ करने के बाद अपने वतन वापस आ गये ओर तदरीस, तसनीफ़,तालीफ़,ओर इमामे जुमा वा जमात की सरगर्मी में मशग़ूल हो गये|

एक अरसे खिदमत अंजाम देने के बाद आप ने आला तालीम की हूसूल के ख़ातिर नजफ़े अशरफ (इराक़) का रुख किया ओर वहाँ रहकर तक़रीबन दस साल जय्यद असातेज़ा किराम से फ़िक़, उसूल, तफ़सीर ओर हदीस के दुरूस की तकमील करके इजतेहाद का मलका पैदा कर लिया, नजफ़े अशरफ के मारूफ़ असातेज़ा में से: आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद काज़िम तबातबाई, आयतुल्लाह मोहम्मद ताहा नजफ़ी ओर आयतुल्लाह मोहम्मद अली रशती के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं|

आयतुल्लाहुलउज़मा सय्यद अमजद हुसैन रिज़वी को नजफ़े अशरफ के मुजतहेदीन ने इजतेहाद ओर नक़ले रिवायत के इजाज़े अता फ़रमाए जिन में से आयतुल्लाह शेख मोहम्मद नजफ़ी, आयतुल्लाह मिर्ज़ा मोहम्मद नजफ़ी, आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद काज़िम यज़दी वगैरा के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं, उन इजाज़तों की अहम इबारतों में ये फिक़रा

انہ مجتھد مطلق و حرام علیہ التقلید)) ( बेशक वो मुजतहिदे मुतलक़ हैं ओर उनके ऊपर तक़लीद हराम है |

अल्लामा शेख़ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी ने आप को आलिमे जलील कह कर याद किया है,अल्लामा की तहरीर कुछ इस तरह है:

इलाहबाद में मोजूद अलिमे जलील,मुबल्लिगे शरीअत, इलाहबाद के बाशिंदों के मर्जा, अरबी ओर अदब में मुफ़ती मोहम्मद अब्बास शूस्त्री के शागिर्दों में शुमार किये जाते हैं, फ़िक़हो उसूल इराक़ में पढ़ा तक़वा ओर एहतियात में मारूफ़ हैं हमने उनका नाम सुना है लेकिन उनकी ज़ियारत से फैज़याब ना हो सके|

अमजद हुसैन रिज़वी साहब सन 1319 हिजरी में नजफ़े अशराफ़ से अपने वतन वापस आकर शहरे इलाहबाद में अपने वतन वापस आकर शहरे इलाहबाद में अपने दीनी फ़राइज़ की अंजाम दही में मशगूल हो गये|

मोसूफ़ ने इलमी ज़ख़ीरा काफ़ी मिक़दार में छोड़ा है जिस में से : ज़ुब्दतुल मआरिफ़ दर उसूले दीन, वसीलतुन निजात फ़ी अहकामिस्सलात, शरहे ज़खीरए अल्लामा बहाई अलाइहिर्रहमा ओर खुलासतुत्ताआत फ़ी अहकामे जुमा व जमात के असमा सरे फेहरिस्त हैं|

मोलाना मुजस्समए तक़्ददुस,ख़ुश अखलाक़ी वा सादगी के दिलदादा, मेहमान नवाज़ ओर सखावत के सबब खवास वा अवाम के दिलों में घर किये हुए थे, पाक नफसी का ये आलम था के बग़ैर मेहमान के खाना नहीं खाते थे|

आप ने 1327/ हिजरी में इलाहबाद के महल्लए चक में एक दीनी मदरसा बनामे” मदरसए जाफ़रया” क़ायम फ़रमाया जिसमें तिशनगाने उलूमे आले मोहम्मद को सैराब किया जाता रहा|

जिस साल आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अमजद हुसैन रिज़वी की रेहलत हुई इसी साल आप ने मक़बरे की तामीर कराई जिस में हर शब तिलावते क़ुरान मजीद किया करते थे ओर कहते थे की हमें इसी साल दारे फ़ानी से दारे बक़ा की जानिब कूच करना है, आख़िरकार ये मुजस्स्मए इल्मो अमल ओर मर्जए वक़्त 23/ रबीउलअव्वल/ 1350/ हिजरी मुताबिक़ 8 अगस्त 1931 ईस्वी मे दाइये अजल को लब्बेक कह गया ओर मजमे की हज़ार आहों बुका के हमराह अपने तामीर करदा मक़बरे मे सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया।

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-१ पेज-१०० दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।

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