۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा | जिहाद और कठिन परिस्थितियों में धैर्य रखना मोमिनों की परीक्षा है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم    बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

أَمْ حَسِبْتُمْ أَن تَدْخُلُوا الْجَنَّةَ وَلَمَّا يَعْلَمِ اللَّهُ الَّذِينَ جَاهَدُوا مِنكُمْ وَيَعْلَمَ الصَّابِرِينَ  अम हसिबतुम अन तदख़ोलुल जन्नता व लम्मा याअलमिल्लाहुल लज़ीना जाहेदू मिनकुम वा याअलमस साबेरीना (आले-इमरान,142)

अनुवाद: (हे मुसलमानों!) क्या तुम सोचते हो कि तुम जन्नत में प्रवेश करोगे, हालाँकि अल्लाह ने अभी तक यह पता नहीं लगाया है कि तुममें से वास्तव में मुजाहिदीन कौन हैं? और अब तक नहीं जान सके कि धैर्यवान और दृढ़ कौन हैं?

क़ुरआन की तफसीर:

1️⃣ स्वर्ग और परलोक में सुख पाने के लिए सिर्फ इतना ही काफी मानना ​​एक गलत विचार है।
2️⃣ इस्लाम के शुरुआती दिनों में जिहाद और धैर्य के बिना स्वर्ग जाने का झूठा विचार।
3️⃣ गलत विचारों और मिथकों पर मान्यताओं और सिद्धांतों को आधारित करने से बचना जरूरी है।
4️⃣ जिहाद और कठिन परिस्थितियों में दृढ़ता आस्तिक के परीक्षण की कसौटी है।
5️⃣ संघर्ष और धैर्य के बिना जन्नत नहीं मिल सकती।
6️⃣युद्ध और लड़ाइयाँ लोगों को परखने और मुजाहिद, मुबारिज़ और कृपाण विश्वासियों को दूसरों से अलग करने का साधन हैं।
7️⃣ मोमिनों के लिए जिहाद, मुश्किलों और मुश्किलों के दौरान डटे रहना जरूरी है।

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तफ़सीर राहनुमा, सूर  आले-इमरान

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