۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
रहबर

हौज़ा / हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बुधवार दोपहर को कहगीलूये व बुवैर अहमद प्रांत के शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने के लिए राष्ट्रीय कान्फ़्रेंस की आयोजक कमेटी के सदस्यों से मुलाक़ात की और इस मौके पर शहीदों के मर्तबे को बयान फरमाया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बुधवार दोपहर को कहगीलूये व बुवैर अहमद प्रांत के शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने के लिए राष्ट्रीय कान्फ़्रेंस की आयोजक कमेटी के सदस्यों से मुलाक़ात की और इस मौके पर शहीदों के मर्तबे को बयान फरमाया।

इस मुलाक़ात में उन्होंने अपने ख़ेताब के दौरान मुख़्तलिफ़ मैदानों में ईरानी क़ौम को पीछे हटने पर मजबूर करने के लिए ख़ौफ़ पैदा करने और मनोवैज्ञानिक जंग शुरू करने के दुश्मनों के हथकंडें की ओर इशारा करते हुए,

अपनी क्षमताओं की पहचान और दुश्मनों की क्षमता बढ़ा चढ़ाकर पेश करने से परहेज़ को, इस हथकंडे से निपटने का रास्ता बताया।

उन्होंने कहा कि शहीदों ने इस मनोवैज्ञानिक जंग के मुक़ाबले में अपने बलिदान और संघर्ष का प्रदर्शन किया और इस हथकंडे को नाकाम बना दिया।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का कहना था कि श्रद्धांजलि पेश करने के प्रोग्रामों में भी इस हक़ीक़त को नुमायां करना और इसे ज़िंदा रखना चाहिए।

उन्होंने कहा कि ईरान और ईरान की अज़ीज़ क़ौम के ख़िलाफ़ मनोवैज्ञानिक जंग का एक तत्व, दुश्मनों की क्षमताओं को बढ़ा चढ़ाकर पेश करना है और इंक़ेलाब की कामयाबी के वक़्त से ही उन्होंने मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से हमारी क़ौम को यह समझाने की कोशिश की कि उसे अमरीका, ब्रिटेन और ज़ायोनियों से डरना चाहिए।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का बड़ा कारनामा क़ौम के दिल से डर को बाहर निकालना और उसमें आत्मविश्वास पैदा करना था। उन्होंने कहा कि हमारी क़ौम ने महसूस किया कि वह अपनी ताक़त पर भरोसा करके बड़े बड़े काम कर सकती है और दुश्मन इतना ताक़तवर नहीं है जितना वह ख़ुद को ज़ाहिर करता है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने फ़ौजी मैदान में मनोवैज्ञानिक जंग का लक्ष्य दुश्मन में ख़ौफ़ पैदा करना और उसे पीछे हटने पर मजबूर करना बताया और कहा कि क़ुरआन मजीद के लफ़्ज़ों में किसी भी मैदान में, चाहे वह फ़ौजी मैदान हो या राजनैतिक, प्रचारिक या आर्थिक मैदान हो, स्ट्रैटेजी के बिना पीछे हटना, अल्लाह के क्रोध का सबब बनता है।

उन्होंने कमज़ोरी और अलग थलग पड़ जाने की भावना और दुश्मन की इच्छा के सामने घुटने टेक देने को राजनीति के मैदान में दुश्मन की क्षमताओं को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने का नतीजा बताया और कहा कि आज छोटी बड़ी क़ौमों वाली जो भी सरकारें साम्राज्यवादियों के सामने घुटने टेके हुए हैं, अगर अपनी क़ौमों और अपनी सलाहियतों पर भरोसा करें और दुश्मन की सलाहियतों को समझ जाएं तो वो दुशमन की मांगें मानने से इंकार कर सकती हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि सांस्कृतिक मैदान में भी दुश्मन की ताक़त को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने का नतीजा पिछड़ेपन का एहसास, दुश्मन की संस्कृति पर रीझना और अपनी संस्कृति को हीन भावना से देखना बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह की संवेदनहीनता का नतीजा, सामने वाले पक्ष की जीवन शैली को मानना यहाँ तक कि विदेशी लफ़्ज़ों और शब्दावलियों को इस्तेमाल करना है।

उन्होंने शहीदों और मुजाहिदों को दुश्मन की मनोवैज्ञानिक जंग के मुक़ाबले में डट जाने वाले लोगों में बताया और कहा कि ऐसे जवानों की क़द्रदानी होनी चाहिए जो किसी भी तरह के ख़ौफ़ के एहसास और दूसरों की बातों से प्रभावित हुए बिना मनोवैज्ञानिक जंग के ख़िलाफ़ डट गए।

उन्होंने कहा कि यह हक़ीक़त कला उत्पादों और श्रद्धांजलि पेश करने के प्रोग्रामों में प्रतिबिंबित होनी चाहिए और इसे ज़िंदा रखा जाना चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने शहीदों और पाकीज़ा डिफ़ेंस के बारे में किताब और फ़िल्म जैसे आर्ट और कलचर प्रोडक्ट्स तैयार किए जाने पर बल देते हुए इस कान्फ़्रेंस के प्रबंधकों की क़द्रदानी की और कहा कि एक क़ौम के जवानों की शहादत और बलिदान, मुल्क की तरक़्क़ी का एक बड़ा सहारा है जिसकी रक्षा की जानी चाहिए और ऐसा न हो कि इसमें फेर बदल हो जाए और इसे भुला दिया जाए।

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