۳ آذر ۱۴۰۳ |۲۱ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 23, 2024
जुमा नमाज़

हौज़ा /जुमा की नमाज़ न केवल मुसलमानों के लिए सामूहिक इबादत का दिन है, बल्कि यह दिन मअनवयत और बरकतो से भरा है। सर्वोच्च नेता हज़रत आयतुल्लाह अली खामेनेई ने एक भाषण के दौरान जुमा की नमाज़ के महत्व का वर्णन किया है।

हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, जुमा की नमाज मुसलमानों के लिए न सिर्फ सामूहिक इबादत का दिन है, बल्कि यह दिन मअनवयत और बरकतो से भरा बताया गया है।

जुमा की नमाज़ की फ़जीलत और उसके सम्मान के बारे में इमाम सादिक (अ) की एक रिवायत है, जिसमें इमाम कहते हैं कि "जुमा के दिन, एक व्यक्ति को खुद को सजाना चाहिए, ग़ुस्ल करना चाहिए, चेहरे को मुरत्तब करना चाहिए,  इत्र लगाना चाहिए, अच्छे कपड़े पहनने चाहिए और जुमा की नमाज में भाग लेना चाहिए।

एक अन्य हदीस में है कि फ़रिश्ते प्रत्येक नमाज़ी का नाम उसके आगमन के समय के अनुसार लिखते हैं, और यह सब इस बात का प्रमाण है कि जुमा के दिन और उसकी नमाज में बरकतो का विशेष हिस्सा होता है।

यहां तक ​​कि एक रिवायत ह भी है कि मुसलमानों के इमाम को उन कैदियों को भी जुमा या ईद की नमाज में भाग लेने का हक़ देना चाहिए, जो कर्ज के कारण जेल में बंद हैं पुलिस उनके साथ हो और जब नमाज खत्म हो जाए, तो उन्हें वापस जेल में ले जाए इससे ही जुमे की नमाज के महत्व का पता चलता है।

ये परंपराएँ शुक्रवार की प्रार्थना की आध्यात्मिकता और उसके प्रभावों पर प्रकाश डालती हैं, और इसके माध्यम से व्यक्ति न केवल शारीरिक बल्कि आध्यात्मिक ताज़गी का भी अनुभव करता है।

08/02/1991

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