हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार , इन दिनों एक सवाल चर्चा में है कि क्या मदाफ़-ए-हरम का खून शाम में बरबाद हो गया? इस सवाल का जवाब इस्लामी क्रांति के संस्थापक के एक बयान में मिलता है जो ग़ौर करने लायक़ है।
उन्होंने शहीदों के बारे में एक भाषण में फ़रमाया:
हमारी जंग हक़ और बातिल की जंग थी, जो कभी खत्म नहीं होगी यह जंग ग़रीब और अमीर की, ईमान और गंदगी (नीचता) की जंग थी और यह जंग हमेशा से चलती आ रही है और हमेशा चलती रहेगी।
कितने कोताहनज़र (छोटे सोच वाले) हैं वो लोग जो यह समझते हैं कि अगर हम मोर्चे पर अपने मकसद तक नहीं पहुँच सके तो शहादत और क़ुर्बानी बेकार है!
उन्होंने आगे फ़रमाया:मैं इन ग़लत तज्ज़ियों की वजह से शहीदों के माता पिता, भाई-बहन, जीवनसाथी और बच्चों से औपचारिक रूप से माफ़ी मांगता हूं और अल्लाह से दुआ करता हूं कि मुझे शहीदों के साथ क़ुबूल फ़रमाए।
हमने जंग में कभी भी अपने अमल (कर्म) पर अफ़सोस महसूस नहीं किया।
हक़ीक़त यह है कि हमने अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए जंग की और इसके नतीजे तो गौण थे।
हमारी क़ौम ने उस वक़्त तक जंग जारी रखी जब तक उसे अपनी ताक़त और ज़िम्मेदारी का अहसास रहा और ख़ुशनसीब हैं वो लोग जिन्होंने आख़िरी लम्हे तक कोई शक नहीं किया।
स्रोत: सहीफ़ ए इमाम, जिलद 21, पेज 284
आपकी टिप्पणी