शनिवार 28 दिसंबर 2024 - 09:39
दुनिया आराम की जगह नहीं, बल्कि तकलीफों की जगह है। मौलाना सैयद अहमद अली आबदी

हौज़ा/ मौलाना सैयद अहमद अली आबदी ने जुमआ के खुत्बे में कहा कि इस दुनिया में हर तरफ तकलीफें ही तकलीफें हैं इंसान इस दुनिया में आता है तो तकलीफ के साथ आता है बड़ा होता है तो तकलीफें साथ चलती हैं मेहनत करता है तो भी तकलीफें रहती हैं। दो वक्त की रोटी कमाने के लिए सुबह से शाम तक मेहनत करनी पड़ती है तब जाकर हलाल की रोजी मिलती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार ,मुंबई की शिया खोजा जामा मस्जिद में 27 दिसंबर 2024 को जुमा के खुत्बे के दौरान इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद अहमद अली आबदी ने नमाज़ियों को तक़वा  अपनाने की नसीहत दी।

उन्होंने कहा कि हम दुनिया में बहुत सी चीज़ें ढूंढते हैं लेकिन वे हमें नहीं मिलतीं इसकी वजह यह है कि हर चीज़ वहीं मिलती है, जहां वह होती है। जैसे पानी वहीं मिलेगा जहां उसकी मौजूदगी हो। अगर गलत जगह खुदाई करेंगे, तो पानी नहीं मिलेगा। अल्लाह ने आराम को जन्नत में रखा है, लेकिन हम इसे दुनिया में खोजते हैं।

मौलाना ने एक हदीस-ए-कुदसी बयान की जिसमें अल्लाह कहता है,मैंने आराम को जन्नत में रखा है, लेकिन लोग उसे दुनिया में तलाश करते हैं। उन्होंने कहा कि यह दुनिया तकलीफों की जगह है, यहां कुछ भी बिना मेहनत के नहीं मिलता। एक गिलास पानी पीने के लिए भी मेहनत करनी पड़ती है उठना पड़ेगा, पानी लाना पड़ेगा, पैसे देने होंगे, टैक्स देना होगा, तब जाकर पानी मिलेगा। यह जन्नत नहीं है, जहां सिर्फ चाहने से पानी हाज़िर हो जाए।

इसी तरह, खाने-पीने की अच्छी चीज़ों के लिए भी मेहनत करनी पड़ती है। दुनिया की कोई भी चीज़ ऐसी नहीं है, जिसमें आराम के साथ नुकसान न हो। लेकिन जन्नत एक ऐसी जगह है, जहां सिर्फ फायदा ही फायदा है।

मौलाना ने कहा कि इंसान जब इस दुनिया में आता है, तो तकलीफ के साथ आता है। बड़ा होता है, तो और तकलीफें होती हैं। दो वक्त की रोटी के लिए सुबह से शाम तक मेहनत करनी पड़ती है, तब जाकर हलाल की रोज़ी मिलती है।

मौजूदा हालात पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा आजकल हमारे नौजवान न पढ़ाई करते हैं, न मेहनत। बस उम्मीद लगाते हैं कि उन्हें बैठे-बैठाए 56 करोड़ रुपये का हिस्सा मिल जाए। ऐसा नहीं होने वाला। अगर रात को सोते रहें और दिन को बर्बाद कर दें, तो कुछ हासिल नहीं होगा।

उन्होंने युवाओं से कहा कि उनकी जिंदगी का सबसे बेहतरीन दौर उनकी जवानी है। अगर इस समय को सही दिशा में मेहनत में लगाया जाए और बेवजह के कामों से बचा जाए तो सफलता के शिखर तक पहुंच सकते हैं।

मौलाना ने अफसोस जताया कि मुस्लिम इलाकों में रात को देर तक होटल और ढाबे खुले रहते हैं जहां नौजवान बेकार बैठे रहते हैं। जबकि गैर-मुस्लिम इलाकों में ऐसा नहीं होता वहां के नौजवान समय पर सोते हैं, सुबह जल्दी उठकर स्कूल-कॉलेज जाते हैं। उनका दिमाग फ्रेश रहता है, जिससे वे पढ़ाई में ध्यान देते हैं, प्रतियोगी परीक्षाओं में पास होते हैं और आगे बढ़ते हैं।

उन्होंने कहा कि हम अपनी किस्मत और हालात को कोसते रहते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि गलती हमने कहां की हैं।

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