हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
وَإِذَا ضَرَبْتُمْ فِي الْأَرْضِ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَنْ تَقْصُرُوا مِنَ الصَّلَاةِ إِنْ خِفْتُمْ أَنْ يَفْتِنَكُمُ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ إِنَّ الْكَافِرِينَ كَانُوا لَكُمْ عَدُوًّا مُبِينًا व इज़ा सबरतुम फ़िल अर्ज़े फ़लैसा अलैकुम जुनाहुन अन तकॉसोरू मिनलस सलाते इन ख़िफ़तुम अन तफ़तेनकोमुल लज़ीना कफॉरू इन्नल काफ़ेरूना कानू लकुम अदुव्वुम मुबीना (नेसा 101)
अनुवाद: और जब तुम ज़मीन में सफ़र करो तो अगर तुम्हें काफ़िरों द्वारा हमला किये जाने का डर हो तो तुम्हें अपनी नमाज़ें छोटी करने में कोई हर्ज नहीं, क्योंकि काफ़िर तुम्हारे कट्टर दुश्मन हैं।
विषय:
क़स्र नमाज़: इबादत में आसानी और सुरक्षा का इस्लामी सिद्धांत
पृष्ठभूमि:
यह आयत सूरह निसा से है जो इस्लामी सामाजिक कानूनों और जिहाद के सिद्धांतों पर प्रकाश डालती है। यह आयत यात्रा के दौरान नमाज़ को छोटा करने की इजाज़त देने और काफिरों के ख़तरे के सन्दर्भ में मुसलमानों को आसानी प्रदान करने से संबंधित है। यह आयत उस समय अवतरित हुई जब मुसलमान लगातार काफिरों से युद्ध की स्थिति में थे और उन्हें अपनी नमाज़ अदा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था।
तफ़सीर:
1. क़स्र नमाज की इजाज़त: इस आयत में अल्लाह तआला ने मुसलमानों को यात्रा के दौरान नमाज़ छोटी करने की इजाज़त दी है, ताकि इबादत करने में आसानी हो और युद्ध या यात्रा के दौरान ज़्यादा समय न लगे।
2. डर का जिक्र: यह रियायत खास तौर पर तब दी जाती है जब काफिरों के हमले का डर हो. हालाँकि, बाद में छोटी प्रार्थना के बाद सभी प्रकार की यात्रा के लिए सामान्य अनुमति दे दी गई।
3. काफिरों का शत्रुतापूर्ण रवैया: अल्लाह काफिरों को "अदु' मुबीन" यानी खुले दुश्मन के रूप में वर्णित करता है, जो हर मौके पर मुसलमानों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु:
1. सहजता का सिद्धांत: इस्लाम पूजा में कठोरता का नहीं, बल्कि सहजता और सुविधा का धर्म है, खासकर जब परिस्थितियां कठिन हों।
2. इबादत और सुरक्षा का संतुलन: युद्ध और यात्रा के दौरान पूजा जारी रखना जरूरी है, लेकिन अपने जीवन की रक्षा करना भी उतना ही जरूरी है।
3. काफिरों की दुश्मनी को स्वीकार करना: मुसलमानों से आग्रह किया जाता है कि वे अपने दुश्मनों से सावधान रहें ताकि वे किसी धोखे या हमले का शिकार न हों।
परिणाम:
यह आयत मुसलमानों के लिए एक व्यावहारिक सबक है कि इबादत के साथ-साथ स्थिति के अनुसार योजना और बुद्धि भी जरूरी है। इस्लाम जीवन की एक संतुलित प्रणाली है जो सभी स्थितियों में सहजता और सुविधा प्रदान करती है।
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