हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हजरत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने "क़ुरआन से तमस्सुक" की अहमयत पर एक लेख में उन्होंने एक हदीस का जिक्र किया। इस हदीस में मआज़ बिन जबल (र) कहते हैं: "हम पैगंबर (स) के साथ सफ़र में थे। मैंने पैग़म्बर (स) से कहा, 'या रसूलल्लाह, हमें कोई ऐसी बात बताइए जो हमारे लिए फायदेमंद हो।' तो पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: 'अगर तुम खुशहाल जिंदगी, शहीदों जैसी मौत, क़यामत के दिन मुक्ति, गर्मी के दिन छांव और ग़लती के दिन मार्गदर्शन चाहते हो, तो क़ुरआन की तिलावत करो। क़ुरआन, अल्लाह का कलाम हैं, यह शैतान से सुरक्षा और अदल के दिन तुम्हारे अच्छे कर्मों का वजन बढ़ाने का कारण है।'"
इस हदीस में पैगंबर (स) ने क़ुरआन की तिलावत को एक ऐसा साधन बताया, जो हमें दुनिया और आख़िरत दोनों में सफलता और सुरक्षा देती है।
जामे अल अहादीस अल शिया, भाग 15, पेज 9
तसनीम भाग 1, पेज 243
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