हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, यह रिवायत "बिहार उल-अनवार" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال أمیرالمؤمنین علی علیه السلام:
لا تَتِمُّ مُرُوَّةُ الرَّجُلِ حَتّى: يَتَفَـقَّهَ فى ديـنِهِ، وَ يَقْتَـصِدَ فى مَعيشَتِهِ، وَيَصْبِرَ عَلى النّائِبَةِ اِذا نَزَلَتْ، وَ يَسْتِعْذَبَ مَرارَةَ اِخْـوانِهِ
अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) ने फ़रमया:
पुरुषत्व और शिष्टता तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक व्यक्ति:
अपने धर्म में ज्ञान की तलाश न करे,
अपने जीवन में औसत दर्जे का न बने।
यदि कोई समस्या आये तो अधीर न हों।
और जब वह अपने भाइयों को संकट में देखे, तो उसके मन में उनका दुख न हो।
बिहार उल-अनवार, भाग 78, पेज 16
आपकी टिप्पणी