कलामे शायर बा ज़बाने शायर
यही पे दफ़्न है एक यादगारे मूसी ए काज़िम
है शहरे क़ुम मे क़ायम इक़्तेदारे मूसी ए काज़िम
फ़लक पे रश्के जन्नत है फ़रिश्तो की निगाह मे
ज़मी पे रश्के काबा है मज़ारे मूसाी ए काजि़म
इन्हे एक गोशा ए ज़िन्दान मे मजबूर मत समझो
बताएंगे सुलैमा, इख़्तियारे मूसी ए काज़िम
मेरे ईमा की क़ुरआन भी ताईद करता है
मुझे हासिल हुआ है ऐतेबारे मूसी ए काज़िम
खुदा ए दो जहा जब बन गया खुद ज़ामिने इज़्ज़त
ज़माना क्या घटाएगा वक़ारे मूसी ए काज़िम
फरिश्ते कहके मुझ को ले गए बज़्मे मलाइक मे
रहेगा नूरीयो मे ख़ाकसारे मूसी ए काज़िम
शायर ए अहले-बैतः शफ़ीअ रिज़वी भीकपूरी
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