रविवार 26 जनवरी 2025 - 05:58
इख़्तियारे मूसी ए काज़िम (अ)

हौज़ा / यही पे दफ़्न है एक यादगारे मूसी ए काज़िम, है शहरे क़ुम मे क़ायम इक़्तेदारे मूसी ए काज़िम

कलामे शायर बा ज़बाने शायर

यही पे दफ़्न है एक यादगारे मूसी ए काज़िम

है शहरे क़ुम मे क़ायम इक़्तेदारे मूसी ए काज़िम

फ़लक पे रश्के जन्नत है फ़रिश्तो की निगाह मे

ज़मी पे रश्के काबा है मज़ारे मूसाी ए काजि़म

इन्हे एक गोशा ए ज़िन्दान मे मजबूर मत समझो

बताएंगे सुलैमा, इख़्तियारे मूसी ए काज़िम

मेरे ईमा की क़ुरआन भी ताईद करता है

मुझे हासिल हुआ है ऐतेबारे मूसी ए काज़िम

खुदा ए दो जहा जब बन गया खुद ज़ामिने इज़्ज़त

ज़माना क्या घटाएगा वक़ारे मूसी ए काज़िम

फरिश्ते कहके मुझ को ले गए बज़्मे मलाइक मे

रहेगा नूरीयो मे ख़ाकसारे मूसी ए काज़िम

शायर ए अहले-बैतः शफ़ीअ रिज़वी भीकपूरी

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