हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हौज़ा इल्मिया के निदेशक आयतुल्लाह अली रज़ा अराफी ने कंप्यूटर रिसर्च सेंटर ऑफ इस्लामिक साइंसेज "नूर" में आयोजित «जामिउल अहादीस 4» की लॉन्चिंग कार्यक्रम में संबोधन के दौरान, पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मिलाद और इमाम सादिक अलैहिस्सलाम और हफ्ता-ए-वह्दत की उपलक्ष्य में बधाई देते हुए कहा,
रसूल-ए-ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का स्थान इतना उच्च है कि कोई भी वहां तक नहीं पहुंच सकता। हालांकि वह अनबिया की सिलसिले के अंत में भेजे गए, फिर भी उन्होंने सबसे उच्च स्थान हासिल किया और «क़ाब व कौसैन औ अद्ना» के स्थान यानी अल्लाह के निकटतम दर्जे तक पहुँच गए। आपका का नूर सभी दुनियाओं में चमका और वह क़यामत तक चमकता रहेगा।
उन्होंने पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की नोबुवत की अद्भुत पहलों की ओर इशारा करते हुए कहा,उस समय कोई मीडिया या संचार के साधन नहीं थे, फिर भी इस्लाम का प्रकाशमान संदेश 23 वर्षों से भी कम समय में पूरी दुनिया में फैल गया और रसूल-ए-ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक विचारधारा के लिहाज से बेसिर-पैर और असभ्य समाज में एक नई सभ्यता की स्थापना की।
आयातुल्लाह आराफी ने आगे कहा,नबी स.ल. का करिश्मा यह है कि बिना किसी संचार माध्यम के इस्लाम का नूर पूरी दुनिया को रोशन कर गया, यहां तक कि पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जीवन के अंतिम दिनों में इस्लाम के झंडे यूरोप और अफ्रीका की सीमाओं तक पहुँच चुके थे।
हौज़ा के निदेशक ने कहा,इस्लाम का यह प्रसार तलवार के बल पर नहीं था, हालांकि इस्लाम ज़रूरत के समय जिहाद और संघर्ष का धर्म है, लेकिन इसकी नींव ज्ञान आध्यात्मिक और नैतिक खजाने और शुद्ध और विशुद्ध सभ्यतापूर्ण आकर्षण पर आधारित थी। यही उच्च सोच, रसूल-ए-ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का महान चरित्र और उनके प्रशिक्षित लोग थे जिन्होंने सभी बाधाओं को तोड़कर नई राहें खोलीं।
उन्होंने इस्लाम के तेज़ी से फैलने को एक चमत्कार बताया और कहा, उस समय जब कोई संचार साधन नहीं था, इस्लाम का संदेश बहुत तेजी से पूरी दुनिया तक पहुंच गया। उस समय ईरान, यूनान, मिस्र, भारत और चीन जैसी बड़ी सभ्यताएं मौजूद थीं, लेकिन अरब के टापू में उनका कोई प्रभाव नहीं बचा था।
आयातुल्लाह आराफी ने कहा,उस समय का अरब समाज ज्ञान, संस्कृति और राजनीतिक संरचना से बिल्कुल खाली था कोई सशक्त सरकार नहीं थी। रसूल-ए-ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहली सरकार की स्थापना की। समाज बिखरा हुआ था और आपने एकता और सामंजस्य कायम किया। यदि सभ्य समाज के नियमों को देखा जाए तो मक्का उस वक्त उनसे बिल्कुल दूर था।
उन्होंने कहा,हालांकि अरबी साहित्य में कभी-कभी कुछ नवाचार दिखते थे, लेकिन कुल मिलाकर समाज खाली था। ऐसे हालात में हज़रच रसूल-ए-ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने ज्ञान और नैतिक संसाधनों और सूक्ष्म रणनीतियों से इस्लाम को वैश्विक धर्म बनाया और एक नई सभ्यता की नींव रखी।
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