गुरुवार 12 दिसंबर 2024 - 09:19
अल्लाह के रसूल (स) की आज्ञाकारिता और उसका महत्व

हौज़ा / यह आयत इस बात पर जोर देती है कि इस्लाम धर्म में अल्लाह के रसूल (स) की आज्ञाकारिता वाजिब है, क्योंकि यही अल्लाह की आज्ञाकारिता का साधन है। अल्लाह का न्याय उन लोगों के लिए निर्धारित है जो भटकते हैं, और रसूल को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया था।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم  बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

مَنْ يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ اللَّهَ ۖ وَمَنْ تَوَلَّىٰ فَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا  मय योतिइर रसूला फ़क़द अताअल्लाहा व मन तवल्ला फ़मा अरसलनाका अलैहिम हफ़ीज़ा (नेसा 80)

अनुवाद: जिसने रसूल की आज्ञा का पालन किया उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया और जिसने मुँह मोड़ा तो हमने तुम्हें उसका उत्तरदायित्व लेने के लिए नहीं भेजा है।

विषय:

रसूल की आज्ञाकारिता: विश्वास की आवश्यकता और अल्लाह की प्रसन्नता का स्रोत

पृष्ठभूमि:

यह आयत सूरह अल-निसा से है और इस्लामी शिक्षाओं में अल्लाह के रसूल (स) की आज्ञाकारिता को अल्लाह की आज्ञाकारिता से जोड़ने की व्याख्या करती है। इस आयत का उद्देश्य मुसलमानों को यह विश्वास दिलाना है कि अल्लाह के रसूल (स) की आज्ञाकारिता केवल एक व्यक्तिगत कार्य नहीं है, बल्कि अल्लाह के आदेश का पालन करने का एक साधन है।

तफ़सीर:

1. रसूल की आज्ञाकारिता, अल्लाह की आज्ञाकारिता: टिप्पणीकारों के अनुसार, इस आयत में, रसूल की आज्ञाकारिता को अल्लाह की आज्ञाकारिता के बराबर माना गया है, क्योंकि अल्लाह के दूत (PBUH) रहस्योद्घाटन के अनुसार कार्य करते हैं और उनकी आज्ञाएँ आज्ञाएँ हैं अल्लाह के हैं

2. मुँह मोड़ने वालों के लिए स्पष्टीकरण: जो लोग रसूल की आज्ञा का पालन करने से इनकार करते हैं, उनके लिए कहा गया कि रसूल उन पर दबाव डालने या उनके कार्यों का हिसाब लेने के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं। उनके मामले अल्लाह को सौंपे गए हैं।

3. संदेश का सामान्य पहलू: यह आयत मुसलमानों को सिखाती है कि रसूल का अनुसरण किए बिना अल्लाह के धर्म पर विश्वास करना और उसका पालन करना संभव नहीं है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

1. रसूल की आज्ञाकारिता अल्लाह की आज्ञापालन के बिना पूरी नहीं होती।

2. पवित्र पैगंबर (स) के आदेशों और सुन्नत को समझना और उनका पालन करना आस्था का हिस्सा है।

3. किसी भी व्यक्ति के गुमराह होने या भटकाव के लिए मैसेंजर को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

4. इस्लाम में मार्गदर्शन का मुख्य स्रोत ईश्वरीय रहस्योद्घाटन और पवित्र पैगंबर (स) की शिक्षाएं हैं।

परिणाम:

यह आयत इस बात पर जोर देती है कि इस्लाम धर्म में अल्लाह के स (स) की आज्ञाकारिता अनिवार्य है, क्योंकि यही अल्लाह की आज्ञाकारिता का साधन है। अल्लाह का न्याय उन लोगों के लिए निर्धारित है जो भटकते हैं, और रसूल को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया था।

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सूर ए नेसा की तफसीर

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