हौज़ा न्यूज़ एजेसी की रिपोट के अनुसार आयतुल्ला मुसवी ने कहा कि इस्लामी क्रांति ने वैश्विक समीकरणों को बदलकर रख दिया। क्रांति से पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लाम की कोई प्रभावी आवाज़ नहीं थी, लेकिन इमाम खुमैनी की नेतृत्व में इस्लामी क्रांति ने इस्लाम को वैश्विक स्तर पर एक प्रभावी ताकत के रूप में फिर से प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि अमेरिका ने इस्लामी क्रांति को कमजोर करने के लिए इराक़ की बाथ पार्टी सरकार की मदद की और उसे ईरान के खिलाफ युद्ध के लिए हथियार दिए। इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, सद्दाम हुसैन की सरकार ने इराक़ के शिया लोगों पर दबाव बढ़ा दिया क्योंकि वे क्रांति के प्रभाव से डरे हुए थे। बगदाद के शिया इलाकों, खासकर शहर सदर में न तो कोई हुसैनिया थी और न ही कोई मस्जिद, और जो एकमात्र मस्जिद शिया समुदाय ने बनवाई थी, उसे भी सद्दाम सरकार ने जब्त कर लिया था और उसे अहल-ए-सुन्नत को दे दिया था।
उन्होंने ईरान-इराक युद्ध के दौरान फाव की आज़ादी का जिक्र करते हुए कहा कि इमाम खुमैनी ने इस क्षेत्र को ईरान में शामिल करने से इंकार कर दिया, क्योंकि उनका इराक पर कब्ज़ा करने का इरादा नहीं था। इसी सिद्धांत के तहत, फाव के चुनाव के लिए एक इराकी शिया आलिम को नियुक्त किया गया, जिसमें मुझे चुना गया।
इराक़ में लागू किए गए आम माफी क़ानून पर आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि यह क़ानून अमेरिकी दबाव में मंज़ूर किया गया, जिसके परिणामस्वरूप कई आतंकवादी रिहा हो सकते हैं, और यह कदम इराक़ की स्थिरता और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है।
उन्होंने ट्रम्प की कुछ नीतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह कनाडा, पनामा और ग्रीनलैंड को अमेरिका में शामिल करना चाहते थे, और यहां तक कि ग़ज़ा को अमेरिकी नियंत्रण में देने और वहां के निवासियों को जबरदस्ती बाहर निकालने की बात भी की, जो कि बेहद खतरनाक योजनाएँ हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि ट्रम्प ने इराक़ को ईरान से गैस और बिजली आयात करने से रोका, जबकि इराक़ के पास इसका कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं था। ईरान को हाल ही में ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ा, जिस पर उसने इराक़ से कहा कि वह अन्य स्रोतों की तलाश करे, लेकिन इराक़ को कोई वैकल्पिक देश नहीं मिला। इसलिए, ईरान ने अपनी आवश्यकताओं के बावजूद इराक़ को फिर से गैस और बिजली प्रदान करना शुरू कर दिया।
आपकी टिप्पणी