रविवार 2 मार्च 2025 - 23:05
मौत के जमाल और जलाल से वाकिफ होना जरूरी है, हुज्जतुल इस्लाम सय्यद अक़ीलुल ग़रवी

हौज़ा / ईसाल ए सवाब की मजलिस को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मौत के जमाल और जलाल को समझना महत्वपूर्ण है। हम अपने छोटे से जीवन में ज्ञान और अनुभव के माध्यम से महिमा और सौंदर्य का आनंद लेते हैं, लेकिन वास्तव में, जीवन की शाश्वत वास्तविकता की सुंदरता और महिमा केवल मृत्यु के बाद ही संभव है। दुर्भाग्यवश, सामान्यतः लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ रहते हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, विश्व प्रसिद्ध धर्म प्रचारक एवं धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सय्यद अक़ीलुल ग़रवी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के परिसर बैतुस सलात में आयोजित मजलिस-ए-इस्लाम-ए-सवाब को संबोधित करते हुए कहा कि मौत के जमाल और जलाल को समझना महत्वपूर्ण है। हम अपने छोटे से जीवन में ज्ञान और अनुभव के माध्यम से महिमा और सौंदर्य का आनंद लेते हैं, लेकिन वास्तव में, जीवन की शाश्वत वास्तविकता की सुंदरता और महिमा केवल मृत्यु के बाद ही संभव है। दुर्भाग्यवश, सामान्यतः लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ रहते हैं।

स्वर्गीय कनीज़ सय्यदा बिन्त सय्यद मुहम्मद हाशिम रिजवी की याद में आयोजित मजलिस को संबोधित करते हुए मौलाना ने कहा कि मजलिस एक संस्था, इबादत और जरिया है जो इंसान को इस दुनिया में रहते हुए भी आखिरत से लगातार जोड़े रखता है। यह एक विचारोत्तेजक और जीवनदायी स्रोत है, जो इस नश्वर संसार से लेकर परलोक तक शाश्वत जीवन प्रदान करता है। 61 हिजरी से अब तक लाखों-करोड़ों मजलिसे हो चुकी हैं और कौन जाने कि कितने और होंगे, लेकिन न तो शोक मनाने का अधिकार पूरा होगा और न ही सय्यदुश शोहदा (अ) का सम्मान करने का अधिकार पूरा होगा। यह अफ़सोस की बात है कि लोग मजलिस की बरकत और उसकी अहमियत को पूरी तरह से नहीं समझ पाते।

हुज्जतुल इस्लाम सय्यद अक़ीलुल ग़रवी ने आगे कहा कि मृत्यु का सौंदर्य एक बहुत ही सुंदर, गौरवशाली और गरिमापूर्ण वास्तविकता है, जिसकी महिमा और सुंदरता जीवन की सुंदरता और महिमा से कहीं अधिक है। इंसान पूरी जिंदगी इमाम (अ) की जियारत की चाहत रखता है और इबादत, आर्थिक और शारीरिक त्याग में लगा रहता है, लेकिन आखिरी वक्त में यानी मौत के वक्त उसे इमाम (अ) की जियारत नसीब होती है। यह इमाम (अ) का वादा है और यह मौत की खूबसूरती का वह पहलू है जिसे हर इंसान को जानना चाहिए।

मजलिस मे प्रसिद्ध मरसिया खान उस्ताद हसन अली मुजफ्फर नागरी ने अपनी अनूठी शैली में मरसिया पढ़ा। मजलिस की शुरुआत प्रसिद्ध कुरान शरीफ के तिलावत मौलाना मुहम्मद मजलिसी द्वारा की गई।

बैठक में एएमयू के शिया धर्मशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सय्यद मुहम्मद असगर, मौलाना सय्यद जाहिद हुसैन रिजवी, प्रोफेसर असगर एजाज कानी, शबिया हैदर, काजिम आबिदी, एडवोकेट जवाद नकवी, हैदर नकवी, मुंसिफ आबिदी, मुबारक जैदी, फिरदौस जैदी, दानिश जैदी, डॉ. शुजात हुसैन सहित बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, डॉक्टर और महत्वपूर्ण हस्तियां उपस्थित थीं।

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