हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, रईस जामिया रूहानियत ख़ैबर पख्तूनख्वा क़ुम मुक़द्देस ने रमज़ानुल मुबारक की मुनासिबत से एक पैग़ाम में रोज़े का मकसद तक़वा हासिल करना क़रार दिया है।
उन्होंने कहा कि माहे मुबारक रमज़ान की ख़ुशी में पूरी उम्मत-ए-मुस्लिमा को दिली मुबारकबाद पेश करते हैं और अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि वह हमें सच्चे रोज़ेदारों में शामिल करे।
मौलाना आदिल हसन ने कहा कि कुरआन-ए-करीम की इस आयत से हमें अहम नुक्तों पर ग़ौर करने की ज़रूरत है:
يٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا کُتِبَ عَلَیۡکُمُ الصِّیَامُ کَمَا کُتِبَ عَلَی الَّذِیۡنَ مِنۡ قَبۡلِکُمۡ لَعَلَّکُمۡ تَتَّقُوۡنَ" (बक़रा: 183)
ऐ ईमान वालों! तुम पर रोज़ा फ़र्ज़ किया गया है, जिस तरह तुमसे पहले लोगों पर फ़र्ज़ किया गया था ताकि तुम तक़वा अपनाओ।
इस आयत से हमें कुछ अहम बातें सीखने को मिलती हैं:
ख़िताब मोमिनीन से है रोज़ा सिर्फ़ मोमिन पर वाजिब किया गया है।
या अय्युहल्लज़ीन आमनू से अल्लाह तआला का खास प्यार ज़ाहिर होता है जिससे मोमिन को अमल करने की और ज्यादा रग़बत होती है।रोज़ा सिर्फ़ उम्मत ए मुहम्मदिया पर वाजिब नहीं बल्कि इससे पहले की उम्मतों पर भी वाजिब था।
इस आयत में रोज़े का नतीजा तक़वा बताया गया है जब इंसान को किसी अमल का मकसद और फल बताया जाता है तो वह उसे हासिल करने की पूरी कोशिश करता है तक़वा एक व्यापक अवधारणा है जो व्यक्तिगत और सामाजिक सभी कार्यों आस्थाओं और नैतिकताओं को शामिल करता है।
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