गुरुवार 6 मार्च 2025 - 06:23
शरई अहकाम | शैतान के बहकावे में आकर मैंने रमजान के महीने में अपने रोज़े को बातिल करने का निर्णय लिया

हौज़ा / अगर कोई व्यक्ति रमज़ान उल मुबारक के महीने में दिन के दौरान नियत से पलट जाए और रोज़ा पूरा करने का इरादा ना रखता हो, तो रोज़ा बातिल है और फ़िर रोज़ा पूरा करने का इरादा करने का कोई फ़ायदा नही है...

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी|

सवाल: मुझे शैतान ने बहकाया और रमज़ान उल मुबारक के महीने में मैंने अपना रोज़ा बातिल करने का इरादा किया, लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ ऐसा कर पाता जिससे मेरा रोज़ा टूट जाता, मेरी मंशा बदल गई। अब मेरे रोज़े पर क्या हुक्म है? और अगर यही स्थिति रमज़ान उल मुबारक के महीने के अलावा किसी अन्य रोज़े के दौरान घटित हो, तो उस रोज़े का क्या हुक्म है?

जवाब: अगर कोई शख्स रमज़ान के महीने में दिन में रोज़ा रखने की नीयत बदल ले और रोज़ा पूरा करने की नीयत न करे तो रोज़ा बातिल हो जाता है और दोबारा रोज़ा पूरा करने की नीयत करने से कोई फ़ायदा नहीं है। लेकिन ज़रूरी है कि मगरिब की अज़ान तक रोज़ा बातिल करने वाले किसी भी काम से परहेज़ करे। लेकिन अगर वह हिचकिचाए और अभी तक यह तय न कर पाए कि रोज़ा जारी रखना है या नहीं, या उसने कोई ऐसा काम करने का निश्चय कर लिया हो जो रोज़े को बातिल कर देता हो, लेकिन अभी तक उसे पूरा न किया हो, तो इन दोनों सूरतों में उसके रोज़े का सहीह होना मशकूक है, और एहतियाते वाजिब यह है कि वह रोज़ा पूरा करे और बाद में उसकी क़ज़ा कर दे। और यही नियम हर दूसरे वाजिब रोज़ो पर भी लागू होता है, जैसे कि किसी विशिष्ट व्रत के लिए रोज़ा रखना आदि।

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