हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, आयतुल्लाह फाज़िल लंकरानी ने कहा कि आयतुल्लाह हाईरी न केवल एक धार्मिक सुधारक थे बल्कि वे उसूल-ए-फिक़्ह (धार्मिक न्यायशास्त्र के सिद्धांत) के संस्थापकों में गिने जा सकते हैं। उनके विचार पुराने विचारों की पुनरावृत्ति नहीं थे, बल्कि उन्होंने उसूल-ए-फिक़्ह में नए सिद्धांत और चर्चाओं की नींव रखी, जिनसे बाद के विद्वानों ने लाभ उठाया।
आयतुल्लाह फाज़िल लंकरानी ने जोर देकर कहा कि आयतुल्लाह हाईरी के उसूली विचारों में तर्कसंगतता स्पष्ट थी, लेकिन उनकी अभिव्यक्ति सरल और समझने योग्य थी। उनके विचारों से इमाम ख़ुमैनी जैसे शिष्यों ने गहराई से लाभ उठाया और स्वयं भी इज्तिहादी (धार्मिक निर्णयन) तथा उसूली क्षेत्र में नए सिद्धांत प्रस्तुत किए।
उन्होंने कहा कि मरहूम हाईरी का यह दृष्टिकोण कि इनशा वास्तव में हिकायत (वर्णन) है, न कि इजाद (निर्माण)", अत्यंत महत्वपूर्ण है और इससे उसूली चर्चाओं में कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। उनके अनुसार, "इनशा, वर्तमान इरादे का वर्णन है, न कि बाहरी दुनिया में किसी चीज़ को बनाने वाला शब्द।
आयतुल्लाह फाज़िल लंकरानी ने आगे कहा कि मरहूम हाईरी ने इरादे और स्वतंत्र इच्छा के मुद्दे पर भी एक अनूठा सिद्धांत प्रस्तुत किया और ज़बर (नियतिवाद) व इख़्तियार (स्वतंत्र इच्छा) के दार्शनिक प्रश्न को गहराई से समझाया, जिससे पता चलता है कि वे केवल एक फ़क़ीह (धार्मिक न्यायविद) ही नहीं, बल्कि एक गहरे विचारक भी थे।
उन्होंने यह आशा व्यक्त की कि हौज़ा-ए-इल्मिया में मरहूम आयतुल्लाह हाईरी की विचारधारा और शैक्षणिक विरासत को जीवित रखा जाएगा और उनके सिद्धांतों पर और शोध किया जाएगा ताकि आज के शैक्षणिक प्रश्नों का बेहतर समाधान प्रस्तुत किया जा सके।
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