सोमवार 21 जुलाई 2025 - 17:31
कौम व मिल्लत की इज़्ज़त को पामाल करना और समाज को दो हिस्सों में बांटना नाकाबिले क़बूल है

हौज़ा / मरजय तक़लीद हज़रत आयतुल्लाह हुसैन नूरी हमदानी ने क़ुम में कुछ उलेमा और फुज़ला से मुलाक़ात के दौरान फ़रमाया कि अय्याम-ए-मुहर्रम व सफ़र तबलीग-ए-दीन का सुनहरी मौक़ा हैं और इन दिनों से भरपूर लाभ उठाया जाना चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , मरजए तक़लीद हज़रत आयतुल्लाह हुसैन नूरी हमदानी ने क़ुम में कुछ उलेमा और फुज़ला से मुलाक़ात के दौरान फ़रमाया कि अय्याम-ए-मुहर्रम व सफ़र तबलीग-ए-दीन का सुनहरी मौक़ा हैं और इन दिनों से भरपूर इस्तिफ़ादा किया जाना चाहिए।

उन्होंने ताक़ीद की कि हौज़ा-ए-इल्मिया को अस्र-ए-हाज़िर की तक़ाज़ों (मांगों) से हम आहंग (तालमेल) होना चाहिए और इल्मी व मजाज़ी मैदानों में पीछे नहीं रहना चाहिए। 

उन्होंने कहा,आज का मुबल्लिग न सिर्फ़ इल्म व तक़वा से आरास्ता हो, बल्कि मुहाज़िब बा-अमल और ज़माने के हालात से वाक़िफ़ भी हो ताकि नौजवान नस्ल (युवा पीढ़ी) के सवालात और शुबहात का मौअस्सिर अंदाज़ में जवाब दे सके। 

आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने स्पष्ट किया,आज जनता हम से सिर्फ़ वअज़ व नसीहत नहीं बल्कि मुस्तनद दीनी मआरिफ़ और अपनी रोज़मर्रा की मुश्किलात का अमली हल चाहते हैं। ग़ैर-मुस्तनद अशआर या ग़ैर-मोतबर हिकायात के ज़रिए लोगों को मशग़ूल रखना दुरुस्त नहीं। हमें अहले बैत (अ.स.) को उन्हीं के कलिमात की रौशनी में मुतअर्रिफ़ (परिचित) करवाना चाहिए 

उन्होंने कहा,अवाम यह चाहते हैं कि उलेमा उनकी ज़बान (आवाज़) बनें, उनके हुक़ूक़ (अधिकारों) का दिफ़ा (बचाव) करें सिर्फ़ अम्मामा पहन लेना और नमाज़ पढ़ा देना काफ़ी नहीं, उलेमा को अवामी मसाइल जनता के मुद्दों में उनके शाना-ब-शाना खड़ा होना चाहिए।

मरजए-ए-आली-क़द्र ने मज़ीद आगे कहा, इस्लामी जम्हूरी (ईरान) में किसी को यह हक़ नहीं कि वह कमज़ोरी की ज़बान भाषा इस्तेमाल करे या दुश्मन पर भरोसा करे, ऐसा दुश्मन जो बार-बार मिल्लत-ए-ईरान (ईरानी राष्ट्र) की इज़्ज़त व वक़ार पर हमलावर हो चुका है।

उन्होंने आलिम-ए-बे-ज़माना की अहमियत को अजागर (उजागर) करते हुए कहा,जो शख़्स ज़माने की ज़रूरतों से ना-आशना (अनजान) हो और दीन पर ख़तरा देख कर ख़ामोश रहे वह हक़ीक़ी आलिम नहीं कहला सकता। 

आयतुल्लाह हमदानी ने मिल्लत-ए-ईरान के सब्र, मुज़ाहिमत और दुश्मन के मुक़ाबले में इस्तिक़ामत को सराहते हुए कहा,इस बहादुर मिल्लत ने दुश्मन के मुंह पर तमाचा मारा और दुनिया को यह पैग़ाम दिया कि वह इस्लाम और अहले बैत (अ.स.) के साथ खड़ी है। 

उन्होंने दो टूक अल्फ़ाज़ में कहा,मुल्क में तफ़रक़ा (फूट) और दो-कुत्बी फ़ज़ा (माहौल) पैदा करना नाकाबिल-ए-क़बूल (अस्वीकार्य) है। इत्तेहाद व वहदत (एकता) ही हमारी सबसे बड़ी ताक़त है, और हमें उन अनासिर का रास्ता रोकना होगा जो क़ौम को तक़्सीम (विभाजित) करना चाहते हैं। 

आख़िर में उन्होंने सिपाह-ए-पासदारान रिवोल्यूशनरी गार्ड्स और दूसरे दिफ़ाई सुरक्षा इदारों की ख़िदमात (सेवाओं) को ख़िराज-ए-तहसीन पेश करते हुए कहा,यही इख़लास (ईमानदारी) और तवक्कुल (ईश्वर भरोसा) है जिसकी बरकत से हमारा दिफ़ा मज़बूत हुआ और दुश्मन पसपा पीछे हट गया हुआ।

उन्होंने कहा,आज निज़ाम की क़ियादत ऐसे इलाही और बा-अमल शख़्स के हाथ में है जो शब-ए-ज़िंदगीदारी तवस्सुल और तक़वा की राह पर गामज़न है, और अल्लाह तआला ने उसे इज़्ज़त व वक़ार अता फ़रमाया है।

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