सोमवार 24 मार्च 2025 - 18:46
हज़रत अमीरुल मोमिनीन अ.स. मुताज़ाद सिफ़ात के मालिक और मुरव्वत व अख़लाक़ी औसाफ़ का मुजस्समा हैं

हौज़ा / अय्याम ए शहादत हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अ.स.की मुनासिबत से बुनियाद अख्तर ताबान में मजलिस-ए-अज़ा आयोजित कि गई।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,शहादत-ए-अमीरुल मोमिनीन मौला-ए-मुत्तक़ीन अली इब्ने अबी तालिब अ.स की मुनासिबत से बुनियाद अख्तर ताबान की जानिब से मजलिस-ए-अज़ा और इफ्तार का एहतमाम किया गया।

इस मजलिस को हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद ज़फर अब्बास साहब ने खिताब फरमाया। खतीब-ए-मोहतरम ने मजलिस में मुरव्वत की अज़मत और फज़ीलत के सिलसिले में मुतअद्दिद अहादीस पेश फरमाते हुए बयान किया कि इमाम अली अ.स ने फरमाया:

مِنْ أَفْضَـلِ الدّينِ أَلْمُـرُوَّةُ، وَلاخَيْرَ فى دينٍ لَيْسَ لَهُ مُرُوَّةٌ
(मीज़ानुल हिक्मा, जिल्द 9, सफ़हा 117)

मुरव्वत बेहतरीन और अफज़ल दीन में से है, और उस दीन में कोई खैर नहीं जिसमें मुरव्वत न हो।

इसी तरह इमाम अली अ.स के फज़ाइल बयान करते हुए हदीस का ज़िक्र किया कि,

لَوْ أَنَّ اَلْغِیَاضَ أَقْلاَمٌ وَ اَلْبَحْرَ مِدَادٌ وَ اَلْجِنَّ حُسَّابٌ وَ اَلْإِنْسَ کُتَّابٌ مَا أَحْصَوْا فَضَائِلَ أَمِیرِ اَلْمُؤْمِنِینَ عَلِیِّ بْنِ أَبِی طَالِبٍ (عَلَیْهِ اَلسَّلاَمُ )
(कंज़ुल फ़वाइद, जिल्द 1, सफ़हा 280)

अगर तमाम दरख़्त क़लम बन जाएँ, तमाम समंदर सियाही, तमाम जिन्नात फज़ाइल का हिसाब करने वाले और तमाम इंसान लिखने वाले बन जाएँ, तब भी अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अ.स के फज़ाइल को शुमार नहीं कर सकते।

बुनियाद अख्तर ताबान,क़ुम के दफ़्तर में मुनअक़िद इस मजलिस में खतीब-ए-मोहतरम ने मजीद कई अहादीस बयान करते हुए मुरव्वत, जवानमर्दी और लोगों को माफ़ करने के हवाले से मुख्तलिफ़ मतालिब का ज़िक्र फरमाया।

इस सिलसिले में अहलुल बैत अ.स, ख़ास तौर पर इमाम अली अ.स की सीरत से मुतअद्दिद वाक़िआत और मिसालों को भी पेश किया।

उन्होंने बयान किया कि अहलुल बैत अ.स की ज़िंदगी में दोस्त और दुश्मन दोनों के लिए मुरव्वत पाई जाती थी यह बुज़ुर्ग दुश्मनों के हक़ में भी किसी तरह की ज़ियादती को रवा नहीं समझते थे और हमेशा ही ज़रूरतमंदों, ग़रीबों, यतीमों और मुश्किलात में गिरफ़्तार लोगों की मदद के लिए आगे रहते थे।

हौज़ा इल्मिया क़ुम के मायानाज़ खतीब मौलाना ज़फर अब्बास साहब ने मजीद फज़ाइल ए अमीरुल मोमिनीन अ.स का ज़िक्र करते हुए सफ़ीउद्दीन हिली के अशआर का हवाला दिया, जिनमें इमाम अली अ.स की जात में पाए जाने वाले मुतज़ाद सिफ़ात का तज़किरा आया है।

यानी इमाम आली मक़ाम ज़ाहिद होने के साथ हाकिम भी थे, हलीम होने के साथ शुजा भी थे, खुद फ़क़ीर व ज़रूरतमंद थे लेकिन सख़ी और बख़्शिश करने वाले भी थे इसी तरह अल्लाह के अलावा किसी से भी ख़ौफ़ नहीं खाते थे, लेकिन जब बारगाह-ए-इलाही में हाज़िर होते थे तो ज़ार ओ-क़तार गिरया फरमाते थे।

मजलिस का इख़्तिताम मसाइब-ए-शहादत-ए-अमीरुल मोमिनीन, नौहा और मातम के साथ हुआ और आख़िर में इफ्तार और तबर्रुक-ए-मौला तक़सीम किया गया।

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