रविवार 30 मार्च 2025 - 08:06
शरई अहकाम । ज़कात-ए-फ़ित्रा के अहकाम

हौज़ा | रमजान के महीने के अंत में जकात-ए-फित्रा अदा करना होता है, जिसके कुछ अहकाम बताए गए हैं और उन्हें जानना महत्वपूर्ण है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी |

ज़कात-ए-फ़ित्रा का हुक्म

1- प्रत्येक मुसलमान जो समझदार और वयस्क है और ईद-उल-फित्र का चाँद देख लेता है, और गरीब नहीं है, उस पर अपने लिए और अपनी देखभाल में आने वाले सभी लोगों के लिए ज़कात-ए-फित्रा देना वाजिब है।
अर्थात प्रत्येक व्यक्ति के लिए तीन किलो गेहूं, खजूर या चावल या उसका पैसा किसी पात्र व्यक्ति को दिया जाना चाहिए।

2- जो व्यक्ति गरीब न हो, लेकिन उसके पास फित्रा अदा करते समय कुछ न हो, उसे किसी से उधार लेकर किसी गरीब को फित्रा देना चाहिए।

3- किसी व्यक्ति के लिए ज़कात-ए-फ़ित्रा (अपने अलावा उन लोगों के लिए जिनकी वह मदद करता है) और उन लोगों के लिए भी जो ईद की रात उससे मिलने आते हैं, देना वाजिब है (यह एक विवादास्पद मुद्दा है)।

4- सूर्यास्त के बाद किसी के घर आए मेहमान का फित्रा मेज़बान के लिए निकालना वाजिब नहीं है।

5- फित्रा उस व्यक्ति पर वाजिब नहीं है जो अपने और अपने परिवार के लिए खर्च करने में सक्षम नहीं है।

6- चाँद दिखने पर पैदा हुए बच्चे पर फ़ित्रा देना वाजिब नहीं है। हालाँकि, यदि बच्चा चाँद दिखने से पहले पैदा होता है, तो माता-पिता पर उसके लिए फ़ित्रा देना वाजिब होगा।

7- जकात के लिए जिन आठ मामलों का उल्लेख किया गया है, उनमें भी फित्रा का इस्तेमाल किया जाएगा। लेकिन इसमें एहतियात यह है कि अगर कोई गरीब शिया हो तो उसे दे दिया जाए।

8- जो व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के संरक्षण में है, उस पर अपना फ़ित्रा निकालना वाजिब नहीं है, यहाँ तक कि यदि वह व्यक्ति भी जो उसके अधीन है, उसका फ़ित्रा न निकाले, तो भी उस पर फ़ित्रा निकालना वाजिब नहीं है।

9- अगर फ़ित्रा देने वाला व्यक्ति सय्यद न हो तो वह अपना फ़ित्रा सादात को नहीं दे सकता, चाहे वे सादात उसके संरक्षण में ही क्यों न हों।

10- हलाल माल से फ़ित्रा अदा करना वाजिब है। फ़ित्रा हराम धन से नहीं दिया जा सकता, जैसे कि चोरी की गई संपत्ति, हड़पी गई संपत्ति या अन्य हराम तरीकों से प्राप्त की गई संपत्ति।

11- फ़ित्रा उस व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता जो इसका इस्तेमाल हराम कार्यों के लिए करता हो।

12 किसी गरीब को साल भर के खर्च से ज़्यादा नहीं दिया जा सकता और एक आदमी के फ़ित्रे से कम नहीं दिया जा सकता, यानी एक आदमी का पूरा फ़ित्रा दिया जाना चाहिए।

13- यदि किसी व्यक्ति ने ईद-उल-फित्र से पहले किसी गरीब व्यक्ति को कर्ज दिया है, तो वह ईद के दिन इसे फित्रे के रूप में गणना कर सकता है और गरीब व्यक्ति से पैसा वापस नहीं ले सकता है।

14- जो व्यक्ति ईद-उल-फित्र की नमाज़ अदा करता है, उसे (एहतियात के तौर पर) ईद-उल-फित्र की नमाज़ से पहले ज़कात-ए-फित्र अदा करना चाहिए। यदि वह ईद-उल-फित्र की नमाज़ अदा नहीं करता है, तो वह ईद-उल-फित्र की नमाज़ दोपहर तक टाल सकता है।

15- अगर फ़ित्रा निकाल कर अलग कर दिया गया हो तो उसे न तो ले सकता है और न ही उसकी जगह कोई दूसरा माल रख सकता है।

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