हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मुसलमानों के बीच मतभेद इस्लामी दुनिया की सबसे दुखद वास्तविकताओं में से एक है। ये मतभेद, जो अल्लाह और अल्लाह के रसूल (स) की शिक्षाओं के विपरीत उत्पन्न हुए हैं, विभिन्न कारकों जैसे कि जनजातीय पूर्वाग्रह, धार्मिक अवधारणाओं की समझ की कमी, हदीस के संकलन और प्रसारण पर प्रतिबंध, सरकारी षड्यंत्र और मुनाफ़िक़ो की उपस्थिति आदि के आधार पर उत्पन्न हुए हैं।
सवाल:
मुसलमान आपस में मतभेद क्यों रखते हैं जबकि वे सभी एक ही धर्म का पालन करते हैं?
उत्तर:
वास्तव में, इस्लाम की निर्विवाद और दर्दनाक वास्तविकताओं में से एक यह है कि अल्लाह और अल्लाह के रसूल (स) की मनाही के बावजूद मुस्लिम समाजों और राष्ट्रों के बीच मतभेद और विभाजन पैदा हो रहे हैं।
ये मतभेद कभी-कभी राजनीतिक संप्रदायों, धार्मिक समूहों, सामाजिक प्रतिक्रिया, गृहयुद्ध और रक्तपात के रूप में प्रकट होते हैं। पवित्र पैगंबर (स) और उनके बाद के इमाम (अ) ने हमेशा मुसलमानों की एकता और एकजुटता के लिए प्रयास किया और कलह और झगड़े से बचने के लिए हर संभव प्रयास किया। यहां तक कि खुद इमाम (अ) ने भी इमामत के अपने निर्विवाद अधिकार के बावजूद मुसलमानों के बीच मतभेदों से बचने के लिए धैर्य और चुप्पी का प्रयोग किया, लेकिन इसके बावजूद, कुछ ऐसे कारक थे जो स्वाभाविक रूप से मतभेदों का मार्ग प्रशस्त करते थे।
इस्लामी विचारकों ने इन मतभेदों के लिए कई कारण बताए हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
1. जनजातीय पूर्वाग्रह और समूह झुकाव: उदाहरण के लिए, कुरैश के कबीले ईर्ष्या और प्रतिद्वंद्विता के कारण बनि हाशिम के प्रति शत्रुतापूर्ण थे और उन्हें कमजोर करने की कोशिश करते थे।
2. धार्मिक अवधारणाओं की खराब समझ: कुछ मुसलमान धार्मिक शिक्षाओं को सही ढंग से समझने में असमर्थ थे, खासकर जब विभिन्न राष्ट्र तेजी से इस्लाम में परिवर्तित हो गए, जिसके कारण धार्मिक समझ में विचलन हुआ।
3. हदीस के संकलन और प्रसारण पर प्रतिबंध: पहले, दूसरे और तीसरे खलीफा द्वारा हदीस के लेखन और प्रसार पर प्रतिबंध से गंभीर नुकसान हुआ, उदाहरण के लिए:
क) कई हदीसें खो गईं।
ख) झूठी हदीसें गढ़ी गईं।
ग) हदीस में मतभेद था।
घ) सुन्नत पर संदेह उत्पन्न हुआ
ड) अहले बैत (अ) को दरकिनार कर दिया गया।
4. सरकारी षडयंत्र: दमनकारी शासकों ने अपनी सरकार को मजबूत करने के लिए जनता को अनावश्यक मुद्दों में उलझाया तथा दुष्प्रचार, लालच और धमकी के माध्यम से मतभेदों को बढ़ावा दिया।
5. मुनाफ़िक़ो की उपस्थिति: कुछ लोग बाहरी तौर पर तो इस्लाम स्वीकार करते थे लेकिन अंदर ही अंदर इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ साजिश रचते रहते थे।
इन सभी कारकों के कारण अल्लाह के रसूल (स) के स्वर्गवास के बाद मतभेद और संप्रदायों का उदय हुआ। बहरहाल, आज के दौर में मुसलमानों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी एकेश्वरवाद, कुरान, सुन्नत और समानता के आधार पर एकता स्थापित करना और इस्लाम के दुश्मनों के खिलाफ खुद को और इस्लामी उम्मत को मजबूत करना है।
आगे के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण स्रोतों का परिचय:
1. शबहाय पेशावर, सुल्तानुल वाएज़ीन शिराज़ी
2. नक्श ए आइम्मा दर एहया ए दीन, अल्लामा सय्यद मुर्तजा अस्करी
3. मनाकिब अल-ख्वारिज्मी, खतीब अल-ख्वारिज्मी, सय्यद अबुल-हसन हकीकी द्वारा अनुवादित
स्रोत: मरकज़े मुतालेआत व पासुखगोई बे शुबहाते हौज़ा हाए इल्मिया
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