शुक्रवार 9 मई 2025 - 16:22
हौज़ा ए इल्मिया की पुनः स्थापना की सौवीं सालगिरह का आयोजन एक उपयोगी प्रभावशाली और रचनात्मक क़दम है

हौज़ा / हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की ताज़ा बुनियाद के सौ साल पूरे होने के मौके पर क़ुमे मुक़द्दसा में एक भव्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें दुनिया भर से उलमा, शोधकर्ता और धार्मिक संस्थाओं के ज़िम्मेदारों ने शिरकत की इस अवसर पर लखनऊ की जामिअतुज़्ज़हरा की निदेशिका ख़ानूम सैयदा रूबाब ज़ैदी ने भी विशेष संबोधन किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की ताज़ा बुनियाद के सौ साल पूरे होने के अवसर पर क़ुम अलमुक़द्दसा में एक भव्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें दुनिया भर से उलमा, शोधकर्ता और धार्मिक संस्थाओं के ज़िम्मेदारों ने भाग लिया। इस मौके पर लखनऊ स्थित जामिअतुज़्ज़हरा की निदेशिका ख़ानूम सैयदा रोबाब ज़ैदी ने भी विशेष भाषण दिया।

अपने भाषण की शुरुआत में उन्होंने हज़रत फ़ातेमा मअसूमा सलामुल्लाह अलैहा और हज़रत इमाम अली बिन मूसा रज़ा अलैहिस्सलाम की पवित्र पैदाइश की बधाई पेश की और इस मुबारक मौके पर इस सम्मेलन के आयोजन को बेहद उपयोगी, प्रभावशाली और रचनात्मक क़दम बताया।

ख़ानूम ज़ैदी ने अपनी शैक्षणिक यात्रा पर रौशनी डालते हुए कहा,मैंने 1987 में दीन की तालीम की शुरुआत की और उसी साल ईरान आई उस वक्त लड़कियों की दीनी तालीम को समाज में अच्छा नहीं माना जाता था, ख़ास तौर पर जब कोई लड़की अकेले पढ़ाई के लिए बाहर जाती। ऐसे माहौल में हौज़ा इल्मिया क़ुम में जामिअतुज़्ज़हरा की बुनियाद रखी गई और मैं भारत से उस संस्थान में दाख़िला लेने वाली पहली तालिबा थी।

उन्होंने बताया कि पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपने शौहर मौलाना हैदर मेहदी ज़ैदी के साथ मिलकर लखनऊ में महिलाओं के लिए सबसे पहले एक दीनी मदरसे की बुनियाद रखी, जो आज "जामिअतुज़्ज़हरा" के नाम से मशहूर है।

ख़ानूम ज़ैदी ने कहा,शुरुआत में हमें बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी। परेशानियों को सहा, मगर ना कभी डरी और ना थकी। मैं लगातार मदरसे की सेवा और उसकी तरक़्क़ी में लगी रही।

उन्होंने इस बात पर गर्व जताया कि आज उनके शागिर्द पूरे भारत में तबलीगी और तालीमी सेवाएं अंजाम दे रहे हैं और यही हौज़वी तालीम का असली नतीजा है।

अंत में उन्होंने हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की सौवीं सालगिरह पर आयोजनकर्ताओं को मुबारकबाद दी और इस महान इल्मी विरासत को आने वाली नस्लों तक पहुंचाने के अपने संकल्प को दोहराया।

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