हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के हौज़ाते इल्मिया लंबे समय से इस्लामी समाज की धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान के निर्माण में भूमिका निभाते आ रहा हैं। इन धार्मिक संस्थानों ने न सिर्फ देश के स्तर पर रब्बानी उलमा और प्रभावशाली विचारकों की तरबियत की है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इनकी अहम मौजूदगी रही है।
इसी सिलसिले में, हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के मशहद स्थित प्रतिनिधि ने हौज़ाते इल्मिया के ऐतिहासिक और सभ्यतागत पहलुओं को ध्यान में रखते हुए हौज़ा इल्मिया क़ुम से फ़ारिग़ और अर्जेंटीना से ताल्लुक रखने वाले अंतरराष्ट्रीय प्रचारक सुहैल असअद से ख़ास मुलाक़ात की।
उन्होंने इस इंटरव्यू में इस्लामी आधुनिक सभ्यता की तामीर, शिया समाजों की राजनीतिक रहनुमाई और दुनियावी सतह पर हौज़े के असर पर रौशनी डाली।
सुहैल असअद ने हौज़ा इल्मिया क़ुम को एक शिया इल्मी मरकज़ (शैक्षणिक केंद्र) और फिक्री व रूहानी रहनुमाओं की तरबियत का अहम स्रोत बताया और कहा,हौज़ा इल्मिया क़ुम ने इंसानी दिलों और जानों की तरबियत में ख़ास कर प्रतिरोध की राह में गहरा असर छोड़ा है।
उन्होंने कहा कि सैय्यद हसन नस्रुल्लाह और सैय्यद हाशिम सफीउद्दीन जैसी शख्सियतें हौज़े के फिक्री माहौल की ही परवरिश हैं। हौज़ा दूसरे शैक्षिक संस्थानों की तरह सिर्फ इंसान की ज़ाती शख्सियत के एक हिस्से को तराशता है, लेकिन इतनी बड़ी हस्तियों की तामीर सही मायनों में दीन के गहरे समझ, अमली ज़िंदगी में उस पर अमल, और हौज़े से ठीक तरीक़े से फ़ायदा उठाने पर निर्भर है।
सुहैल असअद ने आगे कहा,हौज़ा इल्मिया खुद एक "अधूरी वजह" है इंसान की जद्दोजहद, सोच, अमल और इख़लास ही इसे "कामिल नतीजा" तक पहुंचाते हैं।
उन्होंने कहा, हौज़ा किसी की कामयाबी की गारंटी नहीं है जब तक कि तालिबे इल्म ख़ुद शऊर, इख़लास और अमल के साथ अपनी राह तय न करे।
इस अंतरराष्ट्रीय दावात-ओ-तबलीग़ के कार्यकर्ता ने क़ुम में अपने तालीमी तजुर्बात का ज़िक्र करते हुए कहा,मैं जो कुछ भी एक तालिबे इल्म, मुबल्लिग़, रूहानी और सांस्कृतिक सरगर्म कारकुन की हैसियत से हूं, उसकी बुनियाद हौज़ा इल्मिया क़ुम में ही रखी गई थी।
आपकी टिप्पणी