۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा /  इस्लाम में व्यक्तिगत और सामाजिक नियम हैं। कर्म के बिना विश्वास और विश्वास के बिना कर्म, एक व्यक्ति धर्मनिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

तफ़सीर; इत्रे क़ुरआन: तफसीर सूरा ए बक़रा 

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्राहीम

الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالْغَيْبِ وَيُقِيمُونَ الصَّلوةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ  अल-लज़ीना युमेनूना बिल ग़ैबे वा योक़ीमूनस सलाता वा मिम्मा रज़क़्नाहुम युनफ़ेकून (सूरा ए बक़रा 3)

अनुवाद: जो ग़ैब पर ईमान रखते हैं। वे बड़ी शिद्दत से नमाज़ अदा करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से हमारे रास्ते में ख़र्च करते हैं।

📕 कुरआन की तफ़सीर 📕

1️⃣    अल्लाह पर विश्वास करना, नमाज़ स्थापित करना और अल्लाह के मार्ग मे खर्च करना मुत्तक़ी लोगों के गुणों में से हैं।
2️⃣    धर्म के व्यवहारिक तत्त्वों में प्रार्थना और दान को सभी कर्त्तव्यों की अपेक्षा प्रधानता देना उनके विशेष महत्व की ओर इशारा है।
3️⃣    इंसान को मिलने वाले संसाधन और सुविधाएं अल्लाह तआला का दिया हुआ प्रावधान है, इसलिए खर्च करना किसी खास तरह के संसाधनों या सुविधाओं तक ही सीमित नहीं है।
4️⃣    जरूरतमंदों की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करना हर किसी का कर्तव्य है और तक़वे के लक्षणों में से एक है।
5️⃣    इस्लाम में व्यक्तिगत और सामाजिक नियम हैं।
6️⃣    कर्म के बिना ईमान और ईमान के बिना कर्म, ऐसे व्यक्ति तक़वा प्राप्त नहीं कर सकता।
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📚 तफ़सीरे राहनुमा, सूरा ए बक़रा
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