सोमवार 30 जून 2025 - 17:58
हक़ीकी शुक्र पापों से बचना और ईश्वरीय मार्ग में दी गई नेमतों का उपयोग करना है

हौज़ा / हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मीरबाक़री ने मुहर्रम के पहले दशक के चौथे दिन सूरह इब्राहीम की आयत " وَإِن تَعُدُّوا نِعْمَةَ اللَّهِ لَا تُحْصُوهَا (और यदि तुम अल्लाह की नेमतों को गिनने लगो तो उन्हें गिन नहीं सकते का उल्लेख करते हुए कहा कि अल्लाह की नेमतें अनगिनत हैं, लेकिन शुक्र की शुरुआत तब होती है जब इंसान नेमत को पहचान ले और उसे अल्लाह की ओर समर्पित करे, न कि अपनी ओर या किसी अन्य कारण की ओर। यदि इंसान स्वयं को नेमत का स्रोत समझे तो वह क़ारून के अहंकार में फंस जाएगा।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मीरबाक़री ने मुहर्रम के पहले दशक के चौथे दिन सूरह इब्राहीम की आयत " وَإِن تَعُدُّوا نِعْمَةَ اللَّهِ لَا تُحْصُوهَا (और यदि तुम अल्लाह की नेमतों को गिनने लगो तो उन्हें गिन नहीं सकते का उल्लेख करते हुए कहा कि अल्लाह की नेमतें अनगिनत हैं, लेकिन शुक्र की शुरुआत तब होती है जब इंसान नेमत को पहचान ले और उसे अल्लाह की ओर समर्पित करे, न कि अपनी ओर या किसी अन्य कारण की ओर। यदि इंसान स्वयं को नेमत का स्रोत समझे तो वह क़ारून के अहंकार में फंस जाएगा। 

नेतृत्व विशेषज्ञ परिषद के सदस्य ने इस बात पर जोर दिया कि बहुत से लोग नेमतों में डूबे हुए हैं लेकिन उनसे अनजान हैं। उन्होंने कहा कि नेमत पर ध्यान देना शुक्र की पहली शर्त है, और यदि कोई नेमत का लाभ उठाए लेकिन उसके स्रोत पर ध्यान न दे तो वास्तव में उसने शुक्र अदा नहीं किया। 

क़ुम के शिक्षक ने इमाम सादिक़ अ.स.के कथन ما کثر مال رجل قط إلا عظمت علیه الحجة»؛ (जिस व्यक्ति के पास धन अधिक हो जाए, उस पर उतना ही अधिक दायित्व भी होता है) की व्याख्या करते हुए कहा कि नेमत के साथ जिम्मेदारी भी होती है, और जितनी बड़ी नेमत होगी, उतना ही अल्लाह की ओर से उत्तरदायित्व भी बढ़ जाता है। 

उन्होंने आगे कहा कि नेमत का शुक्र केवल अलहम्दुलिल्लाह कहने से पूरा नहीं होता, बल्कि हराम कार्यों से बचना भी शुक्र में शामिल है। हदीस में आया है कि अश-शुक्रु इज्तिनाबुल मुहारिम"* (शुक्र हराम चीजों से बचना है)। अर्थात यदि कोई अल्लाह की दी हुई नेमत को पाप के मार्ग में उपयोग करे तो वह शुक्रगुज़ार नहीं है। 

शिक्षक ने पाप के बाहरी और आंतरिक पहलुओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि बाहरी पाप जैसे झूठ, चुगली, हराम माल खाना आदि हैं, जबकि आंतरिक पाप ताग़ूत की अधीनता में प्रवेश करना और अल्लाह के दुश्मनों के मार्ग पर चलना है। वास्तविक शुक्र यह है कि इंसान बाहरी और आंतरिक दोनों प्रकार के पापों से बचे। 

परिषद के प्रतिनिधि ने कहा कि इंसान को चाहिए कि नेमत को अल्लाह के मार्ग में खर्च करे। यदि हम अल्लाह की दी हुई नेमत को शैतान के मार्ग में खर्च न करें तो यही शुक्र का उच्चतम स्तर है। इस मार्ग में इंसान प्रगति करता है, पवित्र होता है और नेमत के माध्यम से अल्लाह के निकट आता है। 

उन्होंने इंसान की उदाहरण नहर के पानी से देते हुए कहा कि यदि नेमत इंसान से गुजरकर अल्लाह के उद्देश्य तक पहुंच जाए तो पेड़ों के लिए पानी की तरह लाभदायक होगी, लेकिन यदि इंसान में ही रुक जाए तो यह कीचड़ के तालाब में बदल जाएगी। 

अंत में उन्होंने स्पष्ट किया कि शुक्र केवल भावनात्मक या मौखिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक शैक्षिक और वलायती मार्ग है जो नेमत की पहचान, उसे अल्लाह की ओर समर्पित करने, उसे ईश्वरीय मार्ग में खर्च करने और पाप व अवज्ञा से बचने से पूर्ण होता है।

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