शनिवार 19 जुलाई 2025 - 15:46
हश्दुश शअबी एक सरकारी तंज़ीम है आतंकवादी करार देना ना अस्वीकार्य है

हौज़ा/ इमाम ए जुमआ नजफ़ अशरफ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद सदरुद्दीन क़बानची ने तुर्की राष्ट्रपति द्वारा हश्दुश-शअबी को दहशतगर्द तंज़ीम करार दिए जाने पर शदीद रद्द-ए-अमल ज़ाहिर करते हुए कहा है कि यह एक सरकारी फ़ौजी तंज़ीम है जो मर्ज़ीयत के फ़तवे पर क़ायम हुई और कमांडर इन चीफ़ के मातहत है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,इमाम-ए-जुमआ नजफ़ अशरफ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद सदरुद्दीन क़बानची ने तुर्की राष्ट्रपति के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हश्दुश शअबी एक क़ानूनी सैन्य संगठन है जिसका गठन धार्मिक नेताओं के फतवे के आधार पर हुआ और यह इराकी सेना के अधीन कार्य करता है। 

उन्होंने जुमआ के ख़ुत्बे के दौरान स्पष्ट किया कि हश्दुश शअबी को ईरान की समर्थन प्राप्त होना इसे दहशतगर्द करार देने का जायज़ा नहीं बना सकता। अगर ईरान का समर्थन ही मापदंड है, तो ईरान ने इराक को गैस की आपूर्ति की और दाइश (आईएसआईएस) के ख़िलाफ़ जंग में इराक़ी फ़ौज की मदद की क्या यह सब भी दहशतगर्दी है? 

इमाम-ए-जुमआ नजफ़ ने कहा कि यह बयान दरअसल इराक़ के सियासी तजुर्बे को नाकाम बनाने की कोशिश है उन्होंने तुर्की राष्ट्रपति से सवाल किया कि क्या ईरान द्वारा इराक़ की बिजली आपूर्ति में मदद भी एक जुर्म है? 

ख़तीब-ए-जुमआ ने सूबा-ए-कूत में पेश आने वाले सानिहा पर गहरे दुख का इज़हार करते हुए वाक़िए की तहक़ीक़ात और ग़फ़लत के ज़िम्मेदारों के इहतिसाब का मुतालबा किया। उन्होंने इस्लामी जम्हूरी-ए-ईरान का ख़ास शुक्रिया अदा किया जिसने फ़ौरन माहिर डॉक्टर्स इराक़ भेजे। 

आगज़नी के हालिया वाक़िए पर डिफ़ा-ए-मदनी के अहलकारों का शुक्रिया अदा करते हुए उन्होंने सन 1968 के ब्लैक जुलाई क़ियाम की याद दिलाते हुए बास पार्टी की इस्लाम, इमाम हुसैन (अ.स.) और मिल्लत-ए-इराक़ से दुश्मनी की तफ़सीलात बयान कीं। 

उन्होंने कहा कि हम हर हफ़्ते बासी मज़ालिम पर मुश्तमिल एक दस्तावेज़ी मौज़ूआ अवाम के सामने पेश करेंगे इस हफ़्ते का उन्वान था बास, दीन के मुक़ाबिल। जिसमें उन्होंने एक सरकारी सनद का हवाला देते हुए बताया कि कुछ मोमिनीन को सिर्फ़ इस बिना पर फांसी दी गई कि वे मश्कूक तौर पर मसाजिद में आते थे! 

आख़िर में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन क़बानची ने मुआशरती तहफ़्फ़ुज़ सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ दीनी तहफ़्फ़ुज़ पर ज़ोर दिया और नबी-ए-अकरम (स.अ.व.व.) की हदीस याद दिलाते हुए कहा कि दीन की सलामती कुरआन व अत्रत से वाबस्ता है, जबकि ग़ैबत के ज़माने में फ़ुक़हा-ए-आदिल हिदायत के ज़िम्मेदार हैं। 

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