सोमवार 21 जुलाई 2025 - 22:14
हज़रत इमाम अली इब्नुल हुसैन ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम की कर्बला की घटना के बाद अहम भूमिका

हौज़ा / कर्बला की घटना के बाद कर्बला आन्दोलन को लोगों तक पहुंचाने में इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी कर्बला की घटना के बाद वे 35 वर्षों तक जीवित रहे। इस अवधि में उन्होंने इस्लामी समाज के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली और विभिन्न मार्गों से अत्याचार व अज्ञानता के प्रतीकों से मुक़ाबला किया। इमाम सज्जाद (अ) को, जिन्हें ज़ैनुल आबिदीन के नाम से भी जाना जाता है, वर्ष 95 हिजरी में तत्कालीन उमवी शासक वलीद इब्ने अब्दुल मलिक बिन मरवान मलऊन के आदेश पर एक षड्यंत्र द्वारा ज़हर देकर शहीद कर दिया गया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,कर्बला की घटना के बाद कर्बला आन्दोलन को लोगों तक पहुंचाने में इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी कर्बला की घटना के बाद वे 35 वर्षों तक जीवित रहे।

इस अवधि में उन्होंने इस्लामी समाज के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली और विभिन्न मार्गों से अत्याचार व अज्ञानता के प्रतीकों से मुक़ाबला किया। इमाम सज्जाद (अ) को, जिन्हें ज़ैनुल आबिदीन के नाम से भी जाना जाता है, वर्ष 95 हिजरी में तत्कालीन उमवी शासक वलीद इब्ने अब्दुल मलिक बिन मरवान मलऊन के आदेश पर एक षड्यंत्र द्वारा ज़हर देकर शहीद कर दिया गया।

इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम का यज़ीद मलऊन के दरबार में ख़ुत्बा

ऐ लोगों! जिसे मैं जानता हूं वह मुझे जानता है और जो मुझे नहीं जानता मैं उसे अपना परिचय कराता हूं: मैं मक्का और मिना का बेटा हूं। मैं ज़मज़म और सफ़ा का बेटा हूं। मैं उसका बेटा हूं जिसने हजरे असवद को अपनी चादर के कोने से उठाया। मैं उसका बेटा हूं जो बेहतरीन लिबास पहनने वालों और बिना लिबास के रहने वालों में सबसे ऊंचा था।

मैं उसका बेटा हूं जिसे मेअराज की रात मस्जिदुल हराम से मस्जिदुल अक़्सा तक ले जाया गया। मैं उसका बेटा हूं जिसने फ़रिश्तों को नमाज़ पढ़ाई। मैं मुहम्मदे मुस्तफ़ा (स) का बेटा हूं। मैं अली ए मुरतज़ा (अ) का बेटा हूं। मैं फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) का बेटा हूं। मैं ख़दीजतुल कुबरा (स.अ) का बेटा हूं। मैं उस मज़लूम का बेटा हूं जिसे करबला में बेगुनाह शहीद किया गया।

मैं उस प्यासे का बेटा हूं जिसे फ़ुरात के किनारे प्यासा शहीद किया गया। मैं उस शहीद का बेटा हूं जिसके शरीर को दफ़न करने के बजाय घोड़ों के खुरों तले पामाल किया गया। मैं उसका बेटा हूं जिसका सर नैज़े पर बुलंद किया गया।

ऐ लोगों! अल्लाह ने हमें छह फ़ज़ीलतें अता की हैं और सात चीज़ों में हमें दूसरों पर फ़ज़ीलत दी है: इल्म, हिल्म, सख़ावत, फ़साहत, शुजाअत और मोमिनों की मुहब्बत हमारे लिए है, और अल्लाह ने हमें यह फ़ज़ीलतें दी हैं कि हमारे ख़ानदान से मुहम्मदे मुस्तफ़ा (स) हैं, हमारे ख़ानदान से सिद्दीक़ (अली अलैहिस्सलाम) हैं, हमारे ख़ानदान से जाफ़रे तैयार हैं, हमारे ख़ानदान से हमज़ा सय्यदुश्शोहदा हैं, हमारे ख़ानदान से हसन और हुसैन जन्नत के जवानों के सरदार हैं, और हमारे ख़ानदान से ही (इमाम) महदी (अ) हैं।

ऐ लोगों! मैं तुम्हें अल्लाह की क़सम देता हूं, क्या तुम्हें मालूम है कि तुमने मेरे वालिद को क़त्ल किया? क्या तुमने मेरी इज़्ज़त को पामाल किया? क्या तुमने मेरे अहलबैत को क़ैदी बनाया? क्या तुमने मेरा माल लूटा?

फिर इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम ने सूरए अहज़ाब की आयत 33 की तिलावत की और फ़रमाया:
اِنَّمَا یُرِیۡدُ اللّٰہُ لِیُذۡہِبَ عَنۡکُمُ الرِّجۡسَ اَہۡلَ الۡبَیۡتِ وَ یُطَہِّرَکُمۡ  تَطۡہِیۡرًا...
"अल्लाह चाहता है कि ऐ नबी के अहलबैत! तुमसे हर तरह की नापाकी को दूर रखे और तुम्हें ख़ूब पाक व पाकीजा रखे।

जब इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम का ख़ुत्बा सुनकर लोग रोने लगे और दरबार में शोर मच गया तब इमाम के ख़ुत्बे को रोकने की ख़ातिर यज़ीद मलऊन ने अज़ान कहने का हुक्म दिया ताकि इमाम का कलाम मुनक़तअ हो जाए।

जब मुअज़्ज़िन ने कहा: "अशहदु अन्न मुहम्मदन रसूलुल्लाह" तब इमाम ने यज़ीद से फ़रमाया: "ऐ यज़ीद! यह मुहम्मद (स) तेरे नाना हैं या मेरे नाना? अगर तुम कहो कि तुम्हारे नाना हैं तो झूठे हो, और अगर तुम कहो कि मेरे नाना हैं तो फिर तुमने उनकी औलाद को क्यों क़त्ल किया और उनकी इतरत (आल व नस्ल) को क्यों क़ैदी बनाया?

यह ख़ुत्बा यज़ीद मलऊन के दरबार में एक ज़लज़ला बनकर आया। शामी लोगों पर हक़ीक़त खुल गई और बहुत से दिल पशिमान हो गए और यज़ीद मलऊन की ज़ालिम हुकूमत के ख़िलाफ़ क्रांति के आसार ज़ाहिर होने लगे।

इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम के फ़ज़ाएल मशहूर अरब शायर फ़रज़'दक़ की ज़बानी

रिवायत में है कि जब हिशाम बिन अब्दुल मलिक (जो कि बनी उमैया के हुक्मरानों में से था) हज की अदायगी के लिए मक्का मुकर्रमा आया, तो तवाफ़ ए काबा के दौरान हजरे असवद को बोसह देने का इरादा किया लेकिन हाजियों की भारी भीड़ इतनी थी कि वह हजरे असवद तक पहुंच न सका। चुनांचे उसके बैठक के लिए एक तख़्त लगाया गया और वह उस पर बैठ गया जबकि उसके सिपाही अगल बगल में खड़े हो गए।

इसी बीच इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम वारिद हुए आप के मुबारक कंधों पर अबा थी, चेहरे पर नूर की किरने और आप का वजूद ख़ुशबू से मुअत्तर था और पेशानी मुबारक पर सजदों का निशान साफ़ ज़ाहिर व वाज़ेह था। जब इमाम अलैहिस्सलाम हजरे असवद के क़रीब पहुंचे तो तमाम लोग आपकी हैबत व अज़मत को देखकर ख़ुद ब ख़ुद पीछे हट गए ताकि इमाम सलामती से इस्तिलाम करें। यह मंज़र देखकर हिशाम को सख़्त ग़ुस्सा आया।

उसके एक दरबारी ने सवाल किया: "यह कौन है? जिसके लिए लोग यूं रास्ता छोड़ रहे हैं?" इसी लम्हें में फ़रज़'दक़ दरबारी शायर जो कि वहां मौजूद था और इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम को पहचानता था, बरजस्ता खड़ा हुआ और बदीहा तौर पर एक मशहूर क़सीदा पढ़ना शुरू किया, जिसमें इमाम अलैहिस्सलाम के फ़ज़ाइल को बड़ी फ़साहत व बलाग़त से बयान किया। उस के चंद अशआर:

هَذا الذي تَعرِفُ البَطحاءُ وَطأَتَهُ
وَالبَيتُ يَعرِفُهُ وَالحِلُّ وَالحَرَمُ

यह वह हस्ती है कि बतहा की ज़मीन भी जिसके क़दमों को पहचानती है काबा, हिल और हरम सब इन्हें जानते हैं।

هَذا ابنُ خَيرِ عِبادِ اللَهِ كُلِّهِمُ
هَذا التَّقيُّ النَّقيُّ الطاهِرُ العَلَمُ

यह अल्लाह के तमाम बंदों में सबसे बेहतर के फ़रज़ंद हैं, यह मुत्तक़ी, पाकीज़ा, ताहिर और इल्म व हिदायत का परचम हैं।

إِذا رَأَتهُ قُرَيشٌ قالَ قائِلُها
إِلى مَكارِمِ هَذا يَنتَهي الكَرَمُ

जब क़ुरैश इन्हें देखते हैं, तो कहने वाला कहता है: "करम व बुज़ुर्गी की इन्तेहा तो बस इस पाकीज़ा हस्ती पर ख़त्म होती है!"

यह सुनकर हिशाम बिन अब्दुल मलिक मलऊन ग़ैज़ व ग़ज़ब से भड़क उठा और अपने ही दरबार के इस दरबारी शायर फ़रज़'दक़ को गिरफ़्तार करके "उसफ़ान" के मक़ाम पर क़ैद कर दिया, जो मक्का और मदीना के दरमियान वाक़ेअ है।

सलाम हो उस इमाम पर जो आगे देखता तो कटे हुए सर होते थे और पीछे देखता तो नंगे सर होते थे।

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