शुक्रवार 25 जुलाई 2025 - 14:27
महदवीयत को स्थानीय और जातीय सीमाओं से ऊपर क्यों देखना चाहिए?

हौज़ा / जरूरी है कि महदवीयत को केवल एक बच्चों की इच्छा या एक खास जाति और इलाके तक सीमित मुद्दा न समझा जाए, बल्कि इसे एक वैश्विक दर्शन और मानव सभ्यता की विकास यात्रा में एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में देखा जाए, जो ईश्वरीय मार्गदर्शन के प्रकाश में होता है। जैसे इंसान का व्यक्तिगत जीवन बचपन से लेकर परिपक्वता तक बढ़ता है, वैसे ही मानव समाज भी इस विकास की प्रक्रिया से गुजरता है। इसलिए, महदवियत मानव की परिपक्वता और पूर्णता का प्रतीक है और एक महत्वपूर्ण मोड़ है जो सच्चे मानव जीवन की प्राप्ति में निर्णायक होता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, शहीद मुताहरी ने अपनी एक व्याख्यान में "महदवीयत और वैश्विक विकास के दर्शन" पर बात की, जिसे हम अपने प्रिय पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे है।

हमें कोशिश करनी चाहिए कि अपने सोच और विचार को हज़रत हुज्जत (अ.त.फ़.श) के विषय में उसी नजरिए से विकसित करें, जो इस्लाम के मूल ग्रंथ में दिया गया है।

इस मुद्दे को एक बच्चे की इच्छा के रूप में या किसी ऐसे व्यक्ति की भावना के रूप में नहीं देखना चाहिए, जो अपने मन में चोट या बदले की भावना रखता हो और इसे सरल बनाना सही नहीं है। यह ऐसा नहीं है कि हज़रत हुज्जत सिर्फ़ अल्लाह की अनुमति का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे आएं और केवल ईरानी जनता या सिर्फ़ शिया समुदाय को खुशहाल बना दें। यह दृष्टिकोण बहुत सीमित और कमतर समझ है।

हम एक ऐसे विषय से संबंधित हैं जिसकी एक बड़ी और विश्वव्यापी फिलॉसफी (दार्शनिकता) है।

इस्लाम एक जहानी दीन है और हज़रत मोहम्मद के असली और सच्चे अर्थ में शिया मत भी एक वैश्विक अवधारणा है। इसलिए, महदी की अवधारणा को भी एक बड़े वैश्विक सोच और दर्शन के रूप में समझना चाहिए।

क़ुरआन कहता है:
وَلَقَدْ کَتَبْنَا فِی الزَّبُورِ مِن بَعْدِ الذِّکْرِ أَنَّ ٱلْأَرْضَ یَرِثُهَا عِبَادِیَ ٱلصَّٰلِحُونَ वलक़द कत्बना फ़िज़ ज़बूरे मिन बादज़्ज़िक्रे अन्नल अर्ज़ा यरेसोहा ऐबादेयस सालूहून
हमने ज़बूर के बाद लिखा कि धरती को मेरे नेक बंदे विरासत में पाएंगे

यहाँ बात “धरती” की हो रही है, किसी विशेष क्षेत्र, जाति या नस्ल की नहीं। पूरी धरती (संपूर्ण पृथ्वी) की बात हो रही है, न कि सीमित भूगोल या किसी एक राष्ट्र की।

पहली बात यह है कि पश्चिमी दुनिया में प्रचलित कुछ मान्यताओं के विपरीत, मानवता का भविष्य विनाश की ओर नहीं जाएगा। पश्चिमी सभ्यता में भविष्य को लेकर एक तरह का निराशावाद बना है; ऐसा लगता है कि आधुनिक इंसान, उसी सभ्यता के अंदर जहां वह खुद रहता है, अपने लिए कब्र खोद रहा है और गिरावट के बहुत करीब है।

हालांकि, बाहरी परिस्थितियाँ ऐसा ही संकेत देती हैं, लेकिन दीन और ईमान हमें यह सिखाती हैं कि मानवता का भविष्य उज्जवल और जीवित है।

सच्चा मानव जीवन भविष्य से जुड़ा होता है। जो कुछ हम अभी देख रहे हैं, वह केवल एक प्रारंभिक चरण है।
भविष्य वह समय होगा जब अक़्ल, न्याय और ज्ञान का शासन होगा। अगर हम किसी व्यक्ति के जीवन की यात्रा देखें, तो तीन मुख्य चरण होते हैं:

  1. बचपन का दौर, जो कल्पनाओं से भरा होता है।

  2. युवावस्था का दौर, जहाँ क्रोध और वासना का प्रभाव ज्यादा होता है।

  3. और अंत में बुढ़ापा, जो परिपक्वता का समय होता है और तब बुद्धि भावनाओं पर काबू पाती है।

मानव समाज भी इसी तरह के विकास की प्रक्रिया से गुजरता है।

अब हमें पूछना चाहिए: हमारा युग, हमारी ज़माना किस केंद्र के इर्द-गिर्द घूम रहा है?
अगर ध्यान से देखें, तो इस युग का केंद्र या तो "हशर" (पुनरुत्थान) है, या "क़हर" (क्रोध/विनाश)। आज की ज़िंदगी में जो महक सबसे ज़्यादा महसूस होती है, वह बारूद और बमों की खुशबू है।

लेकिन भविष्य ऐसा समय होगा जब ज्ञान का शासन होगा, न्याय का शासन होगा, मानवता और आध्यात्म का शासन होगा।

क्या हम यह सोच सकते हैं कि अल्लाह ने इस दुनिया को बनाया, इंसान को सबसे श्रेष्ठ मखलूक के रूप में पैदा किया, लेकिन यह इंसान कभी अपनी परिपक्वता और पूर्णता तक न पहुंचे और अचानक सब कुछ खत्म हो जाए और नष्ट हो जाए?
यह सोच दैवीय बुद्धिमत्ता के खिलाफ है।

इसलिए, महदी की अवधारणा एक बहुत गहरी, वैश्विक और व्यापक दर्शन है। यह केवल व्यक्तिगत या क्षेत्रीय मसला नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के विकास के मार्ग में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक चरण है, जो ईश्वरीय मार्गदर्शन की रोशनी में है।

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