हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, इरानी कैलेंडर का पाचवा महीना, मुरदाद का महीना सन् 1288, आयतुल्लाह शेख फ़ज़लुल्लाह नूरी की शहादत की बरसी का दिन है, और मौलाना ज़बिहुल्लाह क़वामी, जिन्हें मशहूर नाम “हाजी आगा फख़र तेहरानी” से जाना जाता है, एक बड़े आरिफ़ और सूफी संत थे जिनकी कद्र और महत्ता अब भी छुपी हुई है।
हाजी आगा फख़्र तेहरानी, तेहरान के बड़े विद्वानों में से एक थे और उन्होंने कुम में निवास किया। वह हौज़ा ए इल्मिया के सम्मानित उस्ताद थे, और खास तौर पर तेहरानी छात्र उनसे गहरी श्रद्धा रखते थे।
उन्होंने शहीद मरजअ अल्लामा शेख फ़ज़लुल्लाह नूरी, चौथे शहीद (अल्लाह उन पर रहम करे) के करामतो और महानता के बारे में कुछ बातें कही हैं, जिनमें से कुछ का हम उल्लेख करेंगे:
"बुज़र्गान ने कहा है कि शहीद शेख फ़ज़्लुल्लाह (र) हज़रत मासूमा (स) की सेवा में पहला दरजा रखते हैं, इसका कोई अंत नहीं है। बुज़र्गान ने यहा तक भी कहा है कि हमारा सलाम शहीद शेख फ़ज़्लुल्लाह (र) तक पहुंचाइए, वह हज़रत मासूमा (स) तक पहुंचा देते हैं, इसका कोई हिसाब नहीं।"
पहली बार शेख़ फ़ज़्लुल्लाह नूरी की रूहे मुकद्दस के वसीले की ताकत को आरिफ़ आगा फख्र तेहरानी की जुबान से बताया गया।
वे अपने करीबी लोगों को कहा करते थे: "शेख़ मुस्तजाबुद दावा है सूर ए 'फ़ज्र' को शेख फ़ज़्लुल्लाह की रुह को हदिया करें।"
बहुत से लोग इस फरमान का पालन करके आखिरकार शेख़ फ़ज़्लुल्लाह की दुआ से अपनी मुराद पूरी कर चुके हैं। अब यह काम आम और खास के बीच मशहूर हो गया है और कुछ ज़ायर, जो हज़रत मासूमा (स) के दर पर आते हैं, रोज़ाना शेख़ फ़ज़्लुल्लाह नूरी की कब्र पर जाकर सूर ए "वल फज्र" को हदिया करते हैं और अपनी मुरादें मांगते हैं। शेख़ का जो शव सुरक्षित रहा, हो सकता है कि वह सूर ए "फज्र" की भी तिलावत करने से रहा हो क्योकि वह उसकी तिलावत करते थे!
अजब किस्से
स्वर्गीय आयतुल्लाह हाजी शेख अबुल फ़ज़्ल ख़ुरासानी (र):
तेहरान के गुलशन स्नानागार मोहल्ले के ट्रस्टियों में से एक, स्वर्गीय उस्ताद अबुल हसनी मुन्ज़र, हाज अहमद शाहमतपुर, जिन्हें "अंगुशतर साज़" के नाम से जाना जाता है, का हवाला देते हुए उन्होंने कहा: "मैंने तुर्क मस्जिद (तेहरान के बाज़ार में स्थित) के इमाम स्वर्गीय हाज शेख अबुलफ़ज़ल खुरासानी की उन्नीस वर्षों तक सेवा की। आयतुल्लाह शेख अबुलफ़ज़ल खुरासानी के पद की महानता ही इतनी थी कि नजफ़ के स्वर्गीय आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद मोहसिन हकीम जैसे व्यक्ति ने उन्हें पत्र लिखकर धर्मोपदेश का अनुरोध किया।"
हाजी ख़ुरासानी बताते थे कि, उस अधिकारी ने जो शहीद शेख़ फ़ज़्लुल्लाह नूरी के फाँसी के बाद उनकी लाश की सुरक्षा करता था, मुझसे कहा: "जो रातें मैं लाश के पास गुज़ारता था, मुझे कई बार कुरआन की तिलावत सुनाई देती थी, लेकिन मैं उस क़री' को देख नहीं पाता था।"
स्वर्गीय आयतुल्लाहिल उज़्मा शेख मुहम्मद तकी बहजत (र):
स्वर्गीय आयतुल्लाह बहजत (र) ने आगा ए अशरी को यह कहते हुए बयान किया: मेरे चाचा, जो स्वर्गीय शेख फ़ज़लुल्लाह नूरी (र) के छात्रों में से एक थे, ने उसी कक्ष में उनके शरीर से कुरान की तिलावत सुनी, जिस रात उनके शरीर को अगले दिन कक्ष में दफनाने के लिए क़ुम लाया गया था (अल्लाहु अकबर)।
स्वर्गीय आयतुल्लाहिल उज़्मा शेख मुहम्मद अली अराकी (र):
आयतुल्लाह अराकी ने कहा: खान क़ोम बाज़ार में हमारे पास मशहदी हुसैन कब्बाबी नाम का एक व्यक्ति था जो कबाब पकाने में कुशल और अद्वितीय था।
एक रात, दुकान में उसका काम लंबा चलता है। देर रात वह काम बंद कर हज़रत मासूमा (स) के आँगन में नमाज़ पढ़ने जाता है... नमाज़ पढ़ने के बाद वह सजदागाह पर सजदे में सिर रखता है और सो जाता है... थोड़ी देर बाद उसकी नींद खुलती है और देखता है कि वहाँ कोई नहीं है और सब जा चुके हैं। वह सोचता है कि हजरत शेख फ़ज़लुल्लाह नूरी (र) की मक़बरे के प्रवेश द्वार के पास जाकर घुटनों पर सिर रखकर आराम कर ले। जब वह जाता है तो उसे कुरान की आवाज़ सुनाई देती है। जब वह गौर से देखता है तो पाता है कि कुरान की आवाज़ शेख की मज़ार के अंदर से आ रही है। हालाँकि मक़बरे के अंदर कोई नहीं था!
अल्लामा शेख फ़ज़लुल्लाह नूरी (र) की शहादत के बाद, पवित्र शरीर को गुप्त रूप से उनके घर के एक कमरे में रख दिया गया था। 18 महीने बाद, जब पश्चिमी झुकाव वाले संविधानवादियों के डर से इसे गुप्त रूप से क़ुम ले जाने का निर्णय लिया गया, तो "शरीर" सुरक्षित और अक्षुण्ण पाया गया (अल्लाहु अकबर)।
क़ुम स्थित दरगाह के प्रांगण के चारों ओर सात रंगों वाली टाइलों का एक शिलालेख है, जिस पर हज़रत मासूमा (स) की प्रशंसा में एक लंबा क़सीदा और इमारत का विवरण अंकित है। दिलचस्प बात यह है कि इस क़सीदे के ये अशआर शहीद शेख़ की क़ब्र के ऊपर लगे शिलालेख पर अंकित हैं, जो ऐतिहासिक वास्तविकता का एक सच्चा बयान है:
ना जन्नत अस्त, चूँ जन्नत मकामे रहमत हक़ / ना काबा अस्त, चूँ काबा अस्त किबला ए अबरार
क़ुम में शहीद शेख़ का मकबरा वर्षों तक इमाम ख़ुमैनी (र) और हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के संस्थापक के बेटे आयतुल्लाह शेख़ मुर्तज़ा हाएरी यज़्दी का मिलन स्थान रहा।
स्रोत:
किताब "सिर्रेदार", लेखक: स्वर्गीय डॉक्टर शम्सुद्दीन तुंदर किया, शेख़ शहीद के पोते
"ख़ातेराते मर्दे दीन व सियासय", स्वर्गीय शेख हुसैन लंकरानी (र)
"महफ़िल-ए-बहजत" / बयानात स्वर्गीय शिक्षक अली दवानी
किताब "ख़ाने बर दामने आतिशफिशान", स्वर्गीय अली अबुलहसनी (मुनज़िर)
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