हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,उलेमा की नज़र में हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत:
पहला नज़रिया:तसबीत अल-इमामा
इस क्षेत्र में सबसे पुराना स्रोत "तसबीत अल-इमामा" नामक पुस्तक है, जिसे "सैयद क़ासिम इब्ने इब्राहिम अल-रसी" ने लिखी थी, जिनका निधन वर्ष 246 में हुआ था। वह जो स्वयं इमाम हसन अल मुजतबा (अ) के वंशज थे, अपने समय के मुत्तक़ी, इबादत गुज़ार और विद्वानों में से एक थे, जिन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं। उल्लेखनीय है कि वह हदीसों के रावी भी थे और उन्होंने सीधे इमाम मूसा काज़िम (अ) से रिवायत की थी। उन्होंने अपनी पुस्तक में निम्नलिखित बातें कहीं: “इमाम अल-हसन (अ) के पिता इमाम अली (अ) हैं, उनकी माता फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) हैं, उनका जन्म: हिजरी के तीसरे वर्ष में रमज़ान के महीने के मध्य की रात को मदीना में हुआ था, उनकी उपाधि: अल-तक़ी, अल-ज़की, अल-सिब्त है, उनकी मृत्यु: हिजरी के पचासवें वर्ष, सफ़र महीने की सातवीं तारीख़ को हुई।"
दूसरा नज़रिया: शहीदे अव्वल का क़ौल:
हज़रत इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत को सफ़र महीने की सातवीं तारीख़ मानने वालों में से एक शहीदे अव्वल (शहादत 786 हि.) हैं। वह महान पुस्तक "दुरूस" में कहते हैं: इमाम अल-ज़की, अबू मुहम्मद अल-हसन इब्ने अली, जन्नत के जवानों के सरदार, का जन्म मदीना में रमज़ान के महीने के मध्य में, हिजरी के दूसरे वर्ष में, मंगलवार को हुआ था... और उन्हें वहीं सफ़र के सातवें दिन, उनचासवीं हिजरी के गुरुवार को ज़हर दिया गया था।
तीसरा नज़रिया: "मरहूम कफ़अमी
सफ़र के सातवें दिन इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत में विश्वास रखने वालों में से एक महान आलिम और हदीस के महान विद्वान, मरहूम कफ़अमी, महान पुस्तक "मिस्बाह" के लेखक हैं। वह इस पुस्तक में कहते हैं: "उनका जन्म रमज़ान के मध्य में, हिजरी के तीसरे वर्ष में, मंगलवार को हुआ था, और उनका निधन सफ़र के सातवीं तारीख़, हिजरी के पचासवें वर्ष में, गुरुवार को हुआ था।"
चौथा नज़रिया: शेख बहाई के आदरणीय पिता
एक और महान व्यक्ति जो सफ़र की सातवीं तारीख को इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत में विश्वास रखते हैं, वे हैं मरहूम अल्लामा शेख़ हुसैन, जो आदरणीय शेख़ बहाई के पिता हैं, जिन्होंने अपनी पुस्तक "वुसूल अल-अख़बार इला उसूल अल-अख़बार" में इसका उल्लेख किया है। उनका निधन 984 हिजरी में हुआ और उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है: "वह इमाम अल-ज़की अबू मुहम्मद हैं, जन्नत के जवानों के सरदार, उनका जन्म मदीना में रमज़ान के महीने के मध्य में, दूसरी हिजरी के वर्ष, मंगलवार को हुआ था। उन्हें मदीना में गुरुवार, सफ़र की सातवीं तारीख़ को ज़हर दिया गया था...
शीआ उलमा का नज़रिया और सीरत:
उलमा और विद्वानों की जीवन शैली और उनकी व्यावहारिक परंपरा ऐसी है कि सफ़र की सातवीं तारीख़ को सभी शीआ देश शोक मनाते थे। यह सुन्नत व परंपरा विशेष रूप से नजफ़ ए अशरफ़ और शहर ए क़ुम में हज़रत आयतुल्लाह शेख़ अब्दुल करीम हाएरी (र) की शहरे क़ुम में आगमन और हौज़ ए इल्मिया की स्थापना के बाद मनाई गई, जिन्होंने बाज़ार, हौज़ ए इल्मिया को बंद करने और शोक मनाने का आदेश दिया और उनके बाद, इस परंपरा का संरक्षण हज़रत आयतुल्लाह मुहम्मद बुरूजर्दी, आयतुल्लाह गुलपायगानी जैसे महापुरुषों द्वारा किया गया।
Ref.स्रोत:
1) शहीदे अव्वल, दुरूस, जिल्द 2, पेज 7
2) कफ़अमी, अल-मिस्बाह, पेज 509
3) अल्लामा शेख हुसैन बहाई, वुसूल अल-अख़बार, पेज 42
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