हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के मशहूर कुरआन के मुफ़स्सिर और अहलेबैत के फक़ीह आयतुल्लाहिल उज़मा जावादी आमुली ने तालिबे इल्म और बुद्धिजीवियों को सलाह देते हुए फरमाया कि अगर कोई शख्स इल्म हासिल करे मगर दूसरों को तालीम देने वाला अच्छा मुदर्रिस व मुआल्लिम न बन सके तो यक़ीनन उसने अपनी उम्र जाया कर दी क्योंकि यह दरुस दरअस्ल अमानते इलाही हैं।
उन्होंने कहा,हमें सिखाया गया है कि दरस को अमानत समझकर हासिल करें पेश मुताला करें, मुबाहिसा करें, सवालात उठाएं, नोट्स तैयार करें और खुद एक बेहतरीन उस्ताद बनें। अगर कोई शख्स एक किताब से दूसरी किताब की तरफ बढ़ जाए लेकिन पहली किताब को दूसरों को सिखाने के काबिल न हो तो उसे यक़ीन रखना चाहिए कि उसने उम्र बर्बाद कर दी।
आयतुल्लाह जावादी आमोली ने आगे फरमाया कि जो उलेमा व असातिजा हमारे लिए किताबें लिख गए या हमें पढ़ाया, उन्होंने यह सब कुछ ख़ालिसतन ख़ुदा के लिए किया, इसलिए हमारी भी ज़िम्मेदारी है कि हम इन उलूम को अमानत समझकर आने वाली नस्लों तक पहुंचाएं।
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