۳۰ شهریور ۱۴۰۳ |۱۶ ربیع‌الاول ۱۴۴۶ | Sep 20, 2024
समाचार कोड: 391302
7 सितंबर 2024 - 21:46
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हौज़ा / हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सफी हैदर ने फरमाया, हज की सआदत और मासूमीन की ज़ियारत का शरफ हासिल करने की तड़प के साथ जब कोई मोमिन हरमैन शरीफैन की मुकद्दस और पाक व पाकीज़ा फिज़ा में दाखिल होता है तो उसकी ख़ाहिश यही होती है कि उन जगहों पर मासूमीन से नक्ल होने वाली दुआयें पढ़ने के अलावा ज्यादा से ज्यादा ऐसे आमाल अन्जाम दिये जायें जो रिज़ाये परवरदिगार हासिल करने में मददगार हों।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सफी हैदर ने फरमाया,मौजूदा ज़माने में जहाँ मद्दीयत के तूफानी थपेड़ों ने मानवीयत का चेहरा बिगाड़ दिया है, वहीं यह भी हकीकत है कि सोसाइटी के एक बड़े तबके में दीनी समझ बढ़ी है जिसकी एक दलील साल-ब-साल हाजियों की तादाद में अच्छा खासा इज़ाफा है जिसकी मिसाल इससे पहले नहीं मिलती।

हज की सआदत और मासूमीन की ज़ियारत का शरफ हासिल करने की तड़प के साथ जब कोई मोमिन हरमैन शरीफैन की मुकद्दस और पाक व पाकीज़ा फिज़ा में दाखिल होता है तो उसकी ख़ाहिश यही होती है कि उन जगहों पर मासूमीन से नक्ल होने वाली दुआयें पढ़ने के अलावा ज्यादा से ज्यादा ऐसे आमाल अन्जाम दिये जायें जो रिज़ाये परवरदिगार हासिल करने में मददगार हों। लेकिन दुआओं और आमाल का मुनासिब मजमूआ न मिल पाने के बाईस अकसर हज़रात ख़ाहिश के बावजूद इस सआदत से महरूम रह जाते हैं।

अर्से से ऐसी किताब की जरूरत का एहसास किया जा रहा था जो मुसफ्रिाने राहे खुदा की ज़रूरत को पूरा कर सके मगर उर्दू में "मनासिके हज" के अलावा कोई किताब हिन्दुस्तान में नहीं पाई जाती थी। हाजी हज़रात, खुसूसन काफिलों के मुअल्लिम हज़रात इस सिलसिले में हमेशा परेशान रहते और उन्हें किताब नहीं मिलती थी। मुखतलिफ किताबों से दुआओं की फोटो कॉपी करना पड़ती थी फिर भी ज़रूरत पूरी नहीं होती थी।

अरबी, फारसी में काफी किताबें मौजूद थीं और उन्हें उर्दू में छापा जा सकता था मगर उनमें कोई भी इतनी मुकम्मल नहीं थी कि एक ही किताब काफी हो जाये। इस बीच "रहबरे इन्कलाबे इस्लामी" के हज दफ्तर की जानिब से यह किताब "अदइया व आदाबे हरमैन" फारसी में छपी जो अपने आप में बेनज़ीर है। इस किताब के बाद महसूस हुआ जैसे सफ्रे हज की तमाम रूहानी ज़रूरतें इससे पूरी हो जायेंगी।

चूंकि अरबी तहरीर अस्ल किताब से ली गई थी और उर्दूदाँ हजरात के लिये इसकी तिलावत में जहमत थी लिहाजा उर्दू आदाबे हरमैन के दूसरे एडीशन में न सिर्फ यह कि अरबी की किताबत कराई गई बल्कि मुकम्मल तौर पर सारी दुआओं का तर्जमा भी शामिल कर दिया गया और अल्लामा जवादी" के तर्जमे से फाएदा हासिल किया गया। जिन दुआओं का तर्जमा उनकी तहरीरों में न मिल सका उसके लिये मौलाना मुहम्मद अली सफवी मरहूम से गुज़ारिश की गई और उन्होंने निहायत मेहनत और खुलूस के साथ इस खिदमत को अन्जाम दिया। अल्लाह उनके दरजात को बुलन्द करे।

माइने मतलब समझकर अगर दुआ की जाये तो उसकी मानवीयत में इजाफा हो जाता है और कैफियत कुछ और ही हो जाती है।

अब आदाबे हरमैन का हिन्दी एडीशन आपके हाथों में है। हिन्दी इशाअत का मकसद यह है कि वह मोमिनीन व मोमिनात जो उर्दू नहीं पढ़ सकते वह महरूम न रहें इसलिये कि बानिये तनजीम का नजरिया यह था कि अगरचे मादरी जबान से बेखबरी बहुत बुरी चीज़ है मगर उसकी सजा यह नहीं हो सकती कि ऐसे लोगों को दीन से महरूम कर दिया जाये। इसलिये इदारा हर जबान में मज़हबी लिट्रेचर शाया करने का शरफ हासिल कर रहा है।

यकीन है कि मोमिनीन इस किताब से फाएदा हासिल करेंगे और खैर के मौकों पर इदारए तनजीमुल मकातिब को याद रखेंगे और तलबे दुआ के वक्त खादिमाने इदारा बिल्खुसूस मुतरज्जिमीने केराम को फामोश न फरमायेंगे।

प्रूफीडिंग में मुकम्मल एहतियात के बावजूद गलतियाँ मौजूद रह जाने का इम्कान है। अहले इल्म से गुज़ारिश है कि निशानदही फरमा दें ताकि अगले एडीशन में इस्लाह की जा सके।

वस्सलाम,

सय्यद सफी हैदर

सेक्रेटरी तनजीमुल मकातिब

लखनऊ

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