मंगलवार 11 फ़रवरी 2025 - 07:24
इमाम महदी (अ) से मुलाक़ात का तरीक़ा

हौज़ा / अल्लाह तआला ने हदीस-ए-मेराज़ में एक ऐसा मापदंड और पैमाना बताया है, जिस पर अमल करने से हम अपनी आँखों को इमाम महदी (अज) के नूरानी चेहरे से रोशन कर सकते हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी,  कुरआन करीम में अल्लाह तआला ने अपनी रज़ा (संतुष्टि) को मोमिन के लिए सबसे बड़े इनाम के रूप में बताया है, जैसा कि फरमाया:

"अल्लाह ने मर्दों और औरतों को जो ईमान लाए हैं, ऐसे बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे नदियाँ बह रही हैं, वे हमेशा उन बागों में रहेंगे, और हमेशा रहने के लिए पवित्र घर होंगे और अल्लाह की रज़ा इनमे सबसे बड़ी चीज़ है। यह सबसे बड़ी जीत है।" (सूरा तौबा, आयत 72)

विवरण:
दुनिया और आख़िरत के तमाम फ़ायदे और इनामों में, वह चीज़ जो सब से बढ़कर है, वह अल्लाह की रज़ा है। दूसरे शब्दों में, अगर कोई अपने सभी कामों में सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा (संतुष्टि) के लिए काम करे, तो वास्तव में उसने सारी दुनिया और आख़िरत की सारी नेमतें और इनाम अपने लिए हासिल कर लिया।

अगर कोई केवल अल्लाह की रज़ा के बजाय किसी और के लिए काम करता है, तो उसके हाथ में केवल घाटा और अफसोस ही आएगा। क्योंकि इंसान अपने जीवन में हमेशा तीन तरह की संतुष्टि से जूझता है: एक तो अपनी आत्मा की संतुष्टि, दूसरे लोगों की संतुष्टि, और तीसरी अल्लाह की संतुष्टि।

बेशक, जब तक किसी के आमाल अल्लाह की रज़ा के लिए होते हैं, तो दूसरों की संतुष्टि और आत्मा की संतुष्टि कोई नुकसान नहीं है, लेकिन अगर किसी का काम अल्लाह के खिलाफ़ हो, तो उसका परिणाम दुनिया और आख़िरत दोनों में घाटा होगा।

कूफे के एक शख्स ने इमाम हुसैन (अ) से एक पत्र में पूछा कि दुनिया और आख़िरत का भला क्या है? इमाम हुसैन (अ) ने जवाब में कहा:

"जो आदमी अल्लाह की रज़ा को लोगों की नराज़गी से हासिल करता है, अल्लाह उसे लोगों के मामलों से बेखबर कर देता है, और जो आदमी लोगों की रज़ा को अल्लाह की नराज़गी से हासिल करता है, अल्लाह उसे लोगों के हवाले कर देता है।" (बिहार उल अनवार, भाग 68, पेज 208)

इमाम (अ) का यह जवाब हमे यह सिखाता है कि जब हम खुद को या दूसरों को छोड़कर सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा की दिशा में काम करें, तो हमारी ज़िन्दगी के सारे मक्सद पूरे हो सकते हैं।

इमाम महदी (अ) से मुलाक़ात का तरीक़ा
दुआ-ए-नुदबा में हम इमाम महदी (अ) को संबोधित करते हुए कहते हैं:

"हल इलैका यब्ना अहमदा सबीलुन फतुलक़ा?"

ऐ अहमद के बेटे, आपसे मुलाक़ात करने का कोई रास्ता है?"

इस सवाल का जवाब हमें हदीस-ए-मेराज़ में मिलता है। इस हदीस में जो शख्स अल्लाह की रज़ा के लिए काम करता है, उसका इनाम बताया गया है।

अल्लाह तआला ने अपने नबी (स) से कहा:

"فَمَنْ عَمِلَ بِرِضَای أُلْزِمُهُ ثَلاَثَ خِصَالٍ: फ़मन अमेला बेराज़ाई उल्ज़ेमोहू सलासा ख़ेसालिन... जो मेरी रज़ा के लिए काम करेगा, उसे मैं तीन गुण दूंगा..."

तीसरी विशेषता यह है:

"مَحَبَّةً لاَ یُؤْثِرُ عَلَی مَحَبَّتِی مَحَبَّةَ اَلْمَخْلُوقِینَ فَإِذَا أَحَبَّنِی أَحْبَبْتُهُ وَ أَفْتَحُ عَیْنَ قَلْبِهِ إِلَی جَلاَلِی وَ لاَ أُخْفِی عَلَیْهِ خَاصَّةَ خَلْقِی महब्बतन या योअस्सेरो अला महब्बतल मख़लूक़ीना फ़इज़ा अहब्बनी अहब्बतहू व अफ़्तहो ऐना क़ल्बेहि इजा जलाली वला उख़्फ़ी अलैहे ख़ासतन ख़ल्क़ी मैं उसे ऐसी मोहब्बत दूंगा, जो मेरी मोहब्बत पर किसी भी मख़लूक़ की मोहब्बत को प्राथमिकता नहीं देगा। जब वह मेरी मोहब्बत को दिल में बसाएगा, तो मैं उसे अपने खास बंदों की मोहब्बत से परिचित करूंगा।" (बिहार उल अनवार, भाग 74, पेज 21)

क्या कोई इंसान इमाम महदी (अ) से अधिक ख़ास है?

ग़ैबत के दौर में, जहां इमाम महदी (अ) अल्लाह के आदेश से पर्दा ए ग़ैबत मे हैं, अगर हम इस शर्त के अनुसार (जो "फ़मन अमेला बे रिज़ाई" के तहत है) अपना जीवन जीते हैं, तो हम अल्लाह की मर्जी से इमाम से मिल सकते हैं।

"हर के बेह दीदारे तू नायल शवद        यक शबे हल्लाल मसाइल शवद"

अर्थात ः जिसे तुझसे मिलने का मौका जाए, एक रात में उसके सारे सवाल हल हो जाएंगे।

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