हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने मराकिज़-ए जिहाद-ए दानिशगाही की सांस्कृतिक संस्थाओं के सांस्कृतिक मामलों के प्रमुखों और ज़िम्मेदारों के साथ आयोजित 93वें सम्मेलन में संबोधित किया।
उन्होंने अपने संबोधन के दौरान कहा,अल्लाह तआला क़ुरआन-ए करीम की सूरह यूसुफ की आयत नंबर 108 में फ़रमाता है:
«قُلْ هَذِهِ سَبِیلِی أَدْعُو إِلَی اللَّهِ عَلَی بَصِیرَةٍ أَنَا وَمَنِ اتَّبَعَنِی وَسُبْحَانَ اللَّهِ وَمَا أَنَا مِنَ الْمُشْرِکِینَ» यानी "कह दो: यह मेरा रास्ता है कि मैं और मेरे अनुयायी समझ-बूझ के साथ अल्लाह की ओर बुलाते हैं, और अल्लाह पवित्र है, मैं मुशरिकों में से नहीं हूँ।"
आयतुल्लाह अराफी ने कहा, यह आयत धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों के सिद्धांतों का स्रोत है और पैग़म्बरी के रास्ते की बुनियादों को बयान करती है।
उन्होंने सांस्कृतिक मामलों के तीन महत्वपूर्ण तत्व बताते हुए कहा, इन मामलों के तीन महत्वपूर्ण तत्व हैं:
1. सांस्कृतिक मामलों का संबंध पवित्र लोक अलम-ए कुद्स से हो यानी सांस्कृतिक गतिविधि सिर्फ़ भौतिक दायरे में सीमित न रहे बल्कि पवित्र और ईश्वरीय उद्देश्यों से जुड़ी होनी चाहिए। ईश्वर को सर्वोच्च लक्ष्य बनाना वह भावना है जो इंसान को संघर्ष और गति की ओर ले जाती है।
आयतुल्लाह अराफी ने सांस्कृतिक मामलों का दूसरा तत्व "समझ और जागरूकता" बताते हुए कहा: दूसरा तत्व "बसीरत" (गहरी समझ) है। पैग़म्बर-ए इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम न सिर्फ़ सत्य की ओर बुलाते हैं बल्कि सही तरीका भी सिखाते हैं, इसलिए हर सांस्कृतिक काम जागरूकता, गहरी समझ और सही पहचान के साथ अंजाम पाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा,सांस्कृतिक मामलों का तीसरा तत्व "वैचारिक ढाँचा और सामाजिक शृंखला" है यानी सांस्कृतिक और प्रचारात्मक सफ़र व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामूहिक है। यह एक वैचारिक और सांस्कृतिक शृंखला के रूप में अंजाम पाता है जो कर्बला जैसी महान घटनाओं से भी आगे की विस्तार रखता है।
हौज़ा इल्मिया के प्रमुख ने कहा, अल्लाह की सच्चाई और उसकी महानता के सामने इंसानी समझ और भावना अधूरी हैं, लेकिन इन्हीं तीन तत्वों पर डटे रहना पैग़म्बर-ए इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कि रिवायत
"هذه سبیلی" (यह मेरा रास्ता है) की व्याख्या है।
आयतुल्लाह अराफी ने कहा, याद रखें कि ईमानदारी वह मोती है जो कर्म की कीमत बढ़ाती है। जब इंसान ईश्वर के साथ "मामला" (लेन-देन) करता है तो ऐसी आध्यात्मिक खुशी और आशीर्वाद नसीब होती है जो दुनिया के किसी और अनुभव में नहीं है। इसलिए हर कदम से पहले हमें ईश्वर के साथ मामला करने के लिए तैयार होना चाहिए।
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