۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
حضرت زهرا

हौज़ा/हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा स.अ. में सिर्फ वाजिब और हराम यानी अहकाम को नहीं बयान किया गया है बल्कि भविष्य में इंसान की ज़िंदगी में क्या होने वाला है कैसे हालात पेश आने वाले हैं और कौन सी घटनाएं सामने आने वाली हैं यह सब बातें इस किताबों में हज़रत ज़हरा स.अ. द्वारा लिखी गई हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा स.अ. में सिर्फ वाजिब और हराम यानी अहकाम को नहीं बयान किया गया है बल्कि भविष्य में इंसान की ज़िंदगी में क्या होने वाला है कैसे हालात पेश आने वाले हैं और कौन सी घटनाएं सामने आने वाली हैं यह सब बातें इस किताबों में हज़रत ज़हरा स.अ. द्वारा लिखी गई हैं।

बहुत सारी रिवायतों में मौजूद है कि हमारे इमाम अ.स. अनेक मामलों के हल को तलाश करने के लिए मुसहफ़े फ़ातिमा स.अ. को पढ़ते थे, और सबसे बड़ी बात यह है कि इमाम मासूम अ.स. ने यह भी फ़रमाया कि इस मुसहफ़ में वाजिब और हराम यानी अहकाम को नहीं बयान किया गया है बल्कि भविष्य में इंसान की ज़िंदगी में क्या होने वाला है कैसे हालात पेश आने वाले हैं और कौन सी घटनाएं सामने आने वाली हैं यह सब बातें इस किताब में हज़रत ज़हरा स.अ. द्वारा लिखी गई हैं।

ज़रा सोचें हज़रत ज़हरा स.अ. की कुल उम्र 18 साल थी और इतनी कम उम्र में अल्लाह ने कितना अज़ीम मर्तबा दिया, ध्यान रहे आपको यह मर्तबा आपकी मानवियत और रूह की पाकीज़गी को देखते हुए दिया है, और रूह की पाकीज़गी का संबंध इंसान के अमल से है जिसका मतलब यह है कि जितना आपका अमल पवित्र और ख़ालिस होगा उतनी ही आपकी रूह पाक होगी।

आप तारीख़ की किताबों को पढ़ें आप भी इसी नतीजे पर पहुंचेंगे कि आप ऐसे दौर में इस दुनिया में आईं जिस समय पैग़म्बर स.अ. को शारीरिक, मानसिक हर तरह की तकलीफ़ दी जा रही थी, शेअबे अबी तालिब का वह दौर कौन भुला सकता है जिसमे आप अपने बचपन में अपने वालिद के साथ ऐसा सुलूक कर रहीं थीं जैसे कोई मां अपनी औलाद के साथ करती है,

रिवायत के अनुसार आप 7-8 साल की थीं या एक रिवायत के अनुसार 2-3 साल की जिस साल हज़रत अबू तालिब और हज़रत ख़दीजा का इंतेक़ाल हुआ, पैग़म्बर स.अ. के पूरे घराने के लिए यह वह समय था जिसमें हर कोई ग़म और शोक में डूबा हुआ था और ऐसे समय में हर कोई पैग़म्बर स.अ. ही के पास अपने दर्द का इलाज तलाश कर रहा था, और सबसे सख़्त यह दौर ख़ुद पैग़म्बर स.अ. के लिए था कि एक तरफ़ बाप जैसे मेहेरबान चचा हज़रत अबू तालिब अ.स. की वफ़ात हुई तो दूसरी तरफ़ मेहनत से कमाई हुई

अपनी पूरी दौलत इस्लाम पर ख़र्च करने के लिए आपके क़दमों में रखने वाली आपकी बीवी हज़रत ख़दीजा अ.स. भी इस दुनिया से चल बसीं और फिर हर कोई आपके पास ही अपने दुख दर्द के इलाज के लिए आ रहा था अब ऐसे में ख़ुद पैग़म्बर स.अ. अपने मेहेरबान चचा और आपके हर मिशन में शामिल आपकी बीवी के इंतेक़ाल पर अपने दर्द को किस से बांटते.....

लेकिन उस कम उम्र में भी हज़रत ज़हरा स.अ. ने अपने वालिद की हालत को महसूस करते हुए आपको तसल्ली दी और आपके ग़म को कम करने के लिए एक मां की तरह वह सब कुछ किया जिस से आपका दर्द कम हो, शायद यही वजह है कि आपको पैग़म्बर स.अ. उम्मे अबीहा यानी अपने बाप की मां के लक़ब से भी पुकारते थे।

एक दौर था जब हज़रत अबू तालिब थे हज़रत ख़दीजा थीं, लेकिन अब न केवल यह दोनों नहीं हैं बल्कि भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी और न जाने कितनी तरह की कठिनाइयां शेअबे अबी तालिब में थीं, और यही पैग़म्बर स.अ. की ज़िंदगी का सबसे कठिन दौर था, और पैग़म्बर स.अ. की यही बेटी थी जिसने मां बन कर हर उस फ़र्ज़ को निभाया जिस से पैग़म्बर स.अ. के ग़म और दर्द का इलाज हो सके।

ज़ाहिर है हज़रत ज़हरा स.अ. की यह सिफ़त आपकी रूह की पाकीज़गी और अल्लाह से मज़बूत रिश्ते के कारण थी, और आपकी रूह की बुलंदी ही थी जो अल्लाह ने आपको भविष्य के हालात का इल्म दिया था।

हज़रत ज़हरा स.अ. का फ़रिश्तों से बातें करना

मैं उनकी मानवियत और उनकी रूह की बुलंदी के बारे में कुछ बोलने के क़ाबिल नहीं हूं, हक़ीक़त में मैं उनकी अज़मत को समझ ही नहीं सकता, और अगर कोई समझ भी सकता है तो जैसा उन का हक़ है न वैसा समझ सकता है और न ही बयान कर सकता है, क्योंकि वह मानवियत और रूहानियत की किसी और दुनिया से हैं।

इमाम सादिक़ अ.स. से रिवायत नक़्ल हुई है कि आप को मोहद्देसा कहा जाता था, यानी फ़रिश्ते आप पर नाज़िल होते थे और उनसे बाते करती थीं, फरिश्ते आप के लिए आयतों की तिलावत करते थे, और आप को उसी तरह से बुलाते और पुकारते थे जिस तरह हज़रत मरयम से बात करते और पुकारते थे, और आपके लिए भी उन्हीं विशेषताओं का ज़िक्र करते जिनका हज़रत मरयम के लिए करते थे जिसका ज़िक्र क़ुर्आन में भी है कि बेशक अल्लाह ने आपको चुन लिया है और आपको पाकीज़ा बनाया है और आप को सारी औरतों के लिए आइडियल बनाया है, इसी तरह आपसे कहते ऐ फ़ातिमा (स.अ.) अल्लाह ने आपको पूरी दुनिया की औरतों के लिए आइडियल चुना है।

उसके बाद इमाम सादिक़ अ.स. इसी रिवायत में फ़रमाते हैं कि हज़रत ज़हरा स.अ. फ़रिश्तों से पूछतीं क्या मरयम दुनिया की सारी औरतों से बेहतर और उनके लिए आइडियल नहीं हैं? फ़रिश्ते कहते कि मरयम अपने दौर की सारी औरतों से बेहतर और उन्हीं के लिए आइडियल थीं लेकिन आप दुनिया के पैदा होने से ले कर ख़त्म होने तक सारी औरतों से बेहतर और उनके लिए आइडियल हैं।

यह कौन सा मर्तबा है जिस को हम जैसे इंसान समझना तो दूर दिमाग़ में उसका ख़्याल भी नहीं ला सकते, या इसी तरह इमाम अली अ.स. से एक रिवायत नक़्ल हुई है कि आप ने फ़रमाया हज़रत ज़हरा स.अ. ने मुझ से कहा कि मेरे ऊपर फ़रिश्ते नाज़िल होते हैं और कुछ बातें बयान करते हैं, इमाम अली अ.स. कहते हैं मैंने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. से कहा कि जब वह आएं और कुछ बयान करें तो मुझे बताना ताकि मैं उन बातों को लिख लूं,और फिर इमाम अली अ.स. उन सभी बातों को लिखते रहे जो मुसहफ़े फ़ातिमा स.अ. के नाम से मशहूर है और वह एक इमाम अ.स. के पास से दूसरे के पास जाता रहा और इस समय हमारे आख़िरी इमाम अ.स. के पास मौजूद है।

और हदीसों में मिलता है कि हमारे इमाम अ.स. बहुत सारे मामलों के हल के लिए उस मुसहफ़ को पढ़ते और उसमें उनका हल मिलता भी, ज़ाहिर है इतनी अज़मत केवल उसी को अल्लाह दे सकता है जिसका रिश्ता अल्लाह से मज़बूत हो।

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