हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, जामेअतुल मुस्तफ़ा कराची के महिला विभाग के तहत “रूहानी बीमारी की पहचान और उसका इलाज” के शीर्षक से दरस-ए-अख़लाक़ की ग्यारहवीं बैठक आयोजित हुई। इस अहम विषय पर जामिआ की प्रिंसिपल मोहतरमा डॉक्टर सैय्यदा तसनीम ज़हरा मूसीवी ने खिताब किया।


डॉ. मूसीवी ने “रूहानी बीमारी की पहचान और उसकी तरबियत” के विषय को रसूल-ए-अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) की मशहूर हदीस — إذا أراد الله بعبدٍ خيرًا فقهه في الدين، وزهده في الدنيا، وبصره عيوبه — के हवाले से बहुत इल्मी और समझदारी के अंदाज़ में बयान किया।
उन्होंने कहा कि यह हदीस इंसान के आध्यात्मिक विकास के तीन क्रमिक पड़ाव की तरफ़ इशारा करती है:
(1) धर्म की गहराई को जानना
जब अल्लाह किसी बंदे के लिए भलाई चाहता है, तो उसे दीनी समझ और गहरी दूरदर्शिता देता है, जिसके ज़रिए वह अल्लाही अहकाम और अख़लाक़ी असूलों की गहराई को समझ पाता है।
(2) दुनिया से बे-रग़बती
दीनी बसीरअत का लाज़मी नतीजा यह है कि इंसान फ़ानी दुनिया की चमक-दमक से बेपरवाह होकर आख़िरत की अबदी हकीकत पर अपना ध्यान केंद्रित करता है।
(3) अपने दोषों की समझ
दुनिया से बेरुख़ी इंसान के बातिन को रौशन करती है। फिर वह अपने नैतिक दोषों और रूहानी कमज़ोरियों को पहचानकर इस्लाह-ए-नफ़्स की तरफ़ बढ़ता है।
रूहानी बीमारियों की निशानियाँ
डॉ. तसनीम मूसीवी ने कहा कि जैसे जिस्मानी बीमारियों की ज़ाहिरी अलामतें होती हैं, उसी तरह रूहानी बीमारियों की भी कुछ पहचान होती हैं — जैसे बेचैनी और बेतक़रारी, इबादत में सुस्ती, नेक अमल से बेदिलपन, गुनाह पर अफ़सोस न होना, बदगुमानी , हसद , और दिल की खशू की कमी।

रूहानी बीमारियों के कारण
उन्होंने बताया कि दुनियादारी की मोहब्बत, भौतिकता, गुनाहों की आदत, अल्लाह की याद से लापरवाही, और परहेज़गार लोगों से दूर रहना ये सब रूहानी बीमारियों की बुनियादी वजहें हैं। दुनिया के कामों में हद से ज़्यादा मशग़ूल होना, रूहानी ज़वाल की शुरुआत होता है।
इनकी पहचान के तरीके
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अहले इल्म की रौशन रहनुमाई लेना।
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नेक व सालेह दोस्तों की संगत में रहना।
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दुश्मनों की तनक़ीद से अपनी कमज़ोरियों को पहचानना।
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लगातार मुहासबा-ए-नफ़्स करना।
नतीजा और सीख
पाठ के आखिर में मोहतरमा डॉ. तसनीम ज़हरा मूसीवी ने ज़ोर देकर कहा कि रूहानी बीमारियों की सही समय पर पहचान और उनका इलाज न सिर्फ़ इंसान की नैतिक मज़बूती का ज़रिया है, बल्कि उसे अल्लाह के क़ुर्ब और दिली इत्मिनान तक भी पहुंचा देता है।

उन्होंने कहा कि अगर इंसान रूहानी बीमारी को वक़्त पर पहचान ले और सही रूहानी, अख़लाक़ी और सामाजिक कदम उठाए, तो वह न सिर्फ़ अंदरूनी सुकून पाता है बल्कि समाज में भी बेहतर किरदार अदा करता है। रूहानी सेहत की अहमियत को कभी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, क्योंकि एक सेहतमंद रूह इंसान की ज़िंदगी में खुशी, सुकून और कामयाबी लाती है।
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