हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हुज्जतुल इसलाम नासिर रफ़ीई ने अपनी एक तक़रीर में "सदक़ा, रोज़ी में कुशादगी और बरकत की कुंजी" के विषय पर गुफ़्तगू की है जो प्रिय पाठको की नज़र की जा रही है।
खर्च करो और लोगों के बोझ हल्के करो, तबक़ाती फ़र्क़ को कम करो। अल्लाह तआला ने लोगों को खर्च करने की तरगीब देने के लिए कई मिसालें दी हैं:
कभी आप एक दाना बोते हैं और वह दाना सात बालियों में बदल जाता है, हर बाली में सौ दाने होते हैं।
कुछ रिवायतों में आया है कि कुछ हालात में एक दाना सात सौ दानों तक फल देता है।
मुराद यह नहीं कि हम सिर्फ़ लफ़्ज़ी मिसाल पर भरोसा करें, बल्कि हक़ीक़त में नेक अमल बरकत और वृद्धि का करण बन सकता है।
अगर आप एक दिरहम भी सदक़ा दें या एक रुपया, तो यह अमल उस दाने की मानिंद है जिसकी पैदावार कई गुना बढ़ जाती है।
फिर क्यों नहीं खर्च करते?
खर्च करना तुम्हारे माल को कम नहीं बल्कि बढ़ाता है।
इस सिलसिले में एक मशहूर रिवायत यह है कि इमाम सादिक़ (अ) के एक बेटे मुहम्मद बिन जाफ़र आपके पास आये और कहा कि मेरी माली हालत खराब है, मेरे पास सिर्फ़ चालिस दीनार हैं।
इमाम (अ) ने फ़रमाया: उन्हें सदक़ा दे दो। बेटे ने कहा: अगर मैं यह भी दे दूँ तो मेरी जेब खाली हो जाएगी, मेरी हालत और बिगड़ जाएगी।
इमाम (अ) ने फ़रमाया: "हर चीज़ की एक कुंजी होती है... और तुम्हारी रोज़ी की कुंजी सदक़ा है।"
हमारी एक ग़लती यह है कि हम मुश्किल के दरवाज़े की कुंजी को नहीं पहचानते या क़ुफ़्ल में ग़लत चाबी लगा देते हैं, जिससे न सिर्फ़ दरवाज़ा नहीं खुलता बल्कि चाबी टूट भी सकती है और मामला और बिगड़ सकता है। अगर हम सही चाबी ढूँढ लें तो दरवाज़ा खुल जाता है।
यह मिसालें आम की जा सकती हैं: अगर इंसान अपनी शहवत पर क़ाबू पाना चाहता है तो उसकी कुंजी निकाह है, न कि ग़ैर-शरई ताल्लुक़ात जो इज़्ज़त और मौक़ों दोनों को तबाह कर देते हैं।
अगर तुम ताक़त चाहते हो तो रास्ता दूसरों को क़त्ल करना नहीं है। सुलेमान (अ) के पास भी ताक़त थी मगर इस तरीक़े से नहीं। अगर तुम माल चाहते हो तो रास्ता बदअमनी या बदउनवानी नहीं है। सही कुंजी हलाल कोशिश और अल्लाह पर भरोसा है।
बहुत से ख़ानदान जब उनके बच्चों की शादी में ताख़ीर होती है या कोई मसअला पेश आता है तो फ़ौरन "जादू" और "टोनों" के पीछे भागते हैं और कहते हैं कि हम पर जादू कर दिया गया है।
दीन ऐसे अकीदे की तसदीक़ नहीं करता। दीन बताता है कि दुआ करो, सदक़ा दो, क़ुर्बानी करो और शरई व रूहानी ज़राए इस्तेमाल करो।
बहुत से मआमलात में सही हल को न जानने की वजह से इंसान ग़लत रास्ते पर चल पड़ता है। ग़लत रास्ता कभी वापस लौटने के क़ाबिल होता है और कभी पुराना, ख़तरनाक और नाक़ाबिल-ए-तलाफ़ी हो जाता है।
अगर आप क़ुफ़्ल में ग़लत चाबी लगाएँ और ज़ोर से दबाएँ तो चाबी टूट जाएगी और दरवाज़ा फिर कभी नहीं खुलेगा, यानी एक ग़लती मौक़ों को हमेशा के लिए तबाह कर सकती है।
मज़कूरा रिवायत में उस नौजवान ने चालिस दीनार सदक़ा में दे दिये। दस दिन के अंदर ही उसकी हालत बदल गयी और उसे तक़रीबन चार हज़ार दीनार जैसी रक़म मिल गयी।
यह वाक़ेअ इस बात पर ज़ोर देता है कि "रोज़ी की कुंजी सदक़ा है"। सदक़ा रोज़ी में वुसअत और कुशादगी का रास्ता है।
आपकी टिप्पणी