रविवार 7 सितंबर 2025 - 15:44
रसूल ए अक़रम स.ल.व.व. की तालीमात में वहदत और उख़ुव्वत

हौज़ा / आज उम्मते मुस्लिमा में फैल रही तफ़रक़ा और इंटेरश्न इस्लाम के पतन का बड़ा कारण है रसूल ए अक़रम (स.ल.व.) को सबसे ज़्यादा तकलीफ़ इसी बात की है कि उनकी उम्मत आपस में बंटी हुई है। हम उनके जन्मदिन की खुशियाँ मनाते हैं, लेकिन असली खुशी उनकी उस बात में है कि उम्मत में इत्तेहाद और भाईचारा हो।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आज उम्मते मुस्लिमा में फैल रही तफ़रक़ा और इंटेरश्न इस्लाम के पतन का बड़ा कारण है रसूल ए अक़रम (स.ल.व.) को सबसे ज़्यादा तकलीफ़ इसी बात की है कि उनकी उम्मत आपस में बंटी हुई है। हम उनके जन्मदिन की खुशियाँ मनाते हैं, लेकिन असली खुशी उनकी उस बात में है कि उम्मत में इत्तेहाद और भाईचारा हो।

अल्लाह तआला ने फरमाया है,मुहम्मद रसूलुल्लाह हैं, और जो उनके साथ हैं, वे काफ़िरों पर सख़्त और आपस में बहुत मेहरबान हैं। (सूरह अल-फतह: 29)

रसूल ए अक़रम ने अपनी तालीमात से एक बंटे हुए समाज को एकजुट किया। लेकिन आज के दौर में आपस के झगड़े इस्लाम की तरक्की में सबसे बड़ी बाधा हैं।

वहदत (इत्तेहाद) का मतलब:
सभी मुसलमान अपने ईमान और मत छोड़ दें, यह ज़रूरी नहीं। न ही किसी एक ग्रुप के झंडे के नीचे सबको आ जाना चाहिए। बल्कि, वहदत का मतलब है कि सब अपने आम मुद्दों पर एक हों, अपने छोटे मतभेदों को अपनी सीमाओं तक रखें, एक दूसरे की इज़्ज़त करें और मिलकर दुश्मनों का सामना करें।

रसूल की सीरत और अख़ुव्वत का अनुबंध:

मदीना में आने के बाद, रसूल ने सबसे पहला काम किया मुहाजर और अनसार को भाई बना दिया। यह केवल शब्द नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और अधिकारों का बंटवारा था।

क़ुरआन में फरमाया गया,हमने कोई पैग़ंबर नहीं भेजा, सिवाय इसके कि उसकी इसलाह की जाए।(सूरह अन-निसा: 64)
रसूल सिर्फ नसीहत देने नहीं आए थे, बल्कि उनकी आज़्ञा से समाज को मजबूत और एकजुट बनाना चाहते थे।

क़ुरआन का पैग़ाम-ए-वहदत:
क़ुरआन बार-बार झगड़ों से मना करता है,अल्लाह और उसके रसूल की इसलाह करो, और आपस में झगड़ा मत करो, वरना तुम कमजोर हो जाओगे।" (सूरह अल-अनफ़ाल: 46)और कहता है,उन लोगों की तरह मत बनो जो बंट गए।(सूरह आल इमरान: 105)

वहदत में बाधाएं:

ईमान और फसक बराबर नहीं हो सकते। (सूरह अस-सज्दा: 18)
इसीलिए, वहदत के लिए सबसे पहले नैतिक और आध्यात्मिक सुधार ज़रूरी है। अफ़सोस, आज ईमाम और उम्मत में वहदत की कमी की बड़ी वजह नैतिक कमजोरी है।

नतीजा:
रसूल ए अक़रम की तालीमात में वहदत और अख़ुव्वत की बहुत अहमियत है। उन्होंने मुसलमानों को एक शरीर बताया, जिसमें अगर एक हिस्सा दर्द में हो तो पूरा शरीर बेचैन होता है। इतिहास भी गवाह है कि जब मुसलमान एकजुट हुए, तो दुनिया की सबसे ताक़तवर ताक़त बने, और जब बंट गए तो शरमिंदगी मिली।

आज की सबसे ज़रूरी बात है कि हम अपने मतभेदों को छोड़ कर आम मुद्दों पर एक हों, एक दूसरे की इज़्ज़त करें और दुश्मनों के खिलाफ एकजुट हों। यही रसूल की असली तालीम है और हमारी कामयाबी की चाबी।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha