हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, महदीवाद पर आधारित "आदर्श समाज की ओर" शीर्षक नामक सिलसिलेवार बहसें पेश की जाती हैं, जिनका मकसद इमाम ज़माना (अ) से जुड़ी शिक्षाओ को फैलाना है।
हज़रत महदी (अ) के ज़ुहूर और उनकी विश्वव्यापी क्रांति से जुड़ी कुछ आयते इस प्रकार हैंः
तीसरी आयत:
وَعَدَ اللَّهُ الَّذینَ آمَنُوا مِنْکُمْ وَ عَمِلُوا الصَّالِحاتِ لَیسْتَخْلِفَنَّهُمْ فِی الْأَرْض کَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذینَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَ لَیمَکِّنَنَّ لَهُمْ دینَهُمُ الَّذِی ارْتَضی لَهُمْ وَ لَیبَدِّلَنَّهُمْ مِنْ بَعْدِ خَوْفِهِمْ أَمْناً یعْبُدُونَنی لا یشْرِکُونَ بی شَیئاً وَ مَنْ کَفَرَ بَعْدَ ذلِکَ فَأُولئِکَ هُمُ الْفاسِقُونَ वआदल्लाहुल लज़ीना आमनू मिंकुम व अमेलुस सालेहाते लयस्तख़लेफ़न्नहुम फ़िल अर्ज़े कमस तख़्लफ़ल लज़ीना मिन क़ब्लेहिम व लयमक्केनन्ना लहुम दीनहोमुल लज़िर तज़ा लहुम व लयबद्देलन्नहुम मिन बादे ख़ौफ़ेहिम अमनन यअबोदूननी ला यशरेकूना बी शैअन व मन कफ़रा बाद ज़ालेका फ़उलाएका होमुल फ़ासेक़ून
खुदा ने आप में से जो ईमान लाए और नेक काम किए, उनसे वादा किया कि वे ज़मीन पर वही हुकूमत कायम करेंगे जैसा पहले के लोगों के साथ किया था। वह उनका दीन जो उनके लिए मंज़ूर है, मज़बूत करेगा और उनके डर को सुरक्षा में बदलेगा ताकि वे मुझ अकेले की ही इबाद करें और मेरे साथ किसी दूसरे को शरीक न ठहराएं। और जो इसके बाद इनकार करे बस वही फा़सिक है। (सूर ए नूर, आयत 55)
इस आयत से पहले की आयतों में अल्लाह और पैग़म्बर की हुकूमत की बात की गई है, और इस आयत में उस आदेश की पूरी व्याख्या दी गई है, जो कि एक वैश्विक हुकूमत है।
इस आयत का मतलब है कि अल्लाह ने अपने नेक और ईमानदार बंदों को तीन बड़ी खुशखबरी दी हैं:
- ज़मीन पर उनकी हुकूमत होगी
- उनका दीन पूरी दुनिया मे फैल जाएगा
- उनके डर और असुरक्षा का अंत हो जाएगा
इसका परिणाम यह होगा कि इस दौर में लोग पूरी आज़ादी के साथ अल्लाह की इबादत करेंगे, उसके आदेशों की पूरी तरह से पालन करेंगे, उसके लिए कोई साझेदार या उसके समान किसी को स्वीकार नहीं करेंगे, और खालिस तौहीद को हर जगह फैलाएंगे।
नुक्ते
1- इस आयत के अनुसार, मुसलमानों से पहले भी ज़मीन पर कुछ लोग सत्ता में थे। ये कौन लोग थे? कुछ मुफस्सेरीन ने हज़रत आदम, हज़रत दाऊद और हज़रत सुलैमान की ओर इशारा किया है, जैसा कि कुरआन में हज़रत आदम के लिए वर्णित है।
إِنِّی جاعِلٌ فِی الْأَرْضِ خَلِیفَة इन्नी जाऐलुन फ़िल अर्ज़े खलीफ़ा
मैं ज़मीन पर एक ख़लीफा बनाऊंगा। (सूर ए बक़रा, आयत 30)
हज़रत दाऊद के लिए कहा
یا داوُدُ إِنَّا جَعَلْناکَ خَلِیفَةً فِی الْأَرْض या दाऊदो इन्ना जाअलनाका ख़लीफ़तन फ़िल अर्ज़े
हे दाऊद! हमने तुम्हें ज़मीन पर अपना ख़लीफा बनाया। (सूर ए साद, 26)
सूर ए नमल की आयत न 16 मे हज़रत सुलैमान भी पैग़म्बर दाऊद के शासन का वारिस और ख़लीफ़ा थे।
लेकिन कुछ मुफस्सिरो जैसे अल्लामा तबातबाई (र) का मानना है कि इस आयत में "الَّذینَ مِنْ قَبْلِهِمْ अल्लज़ीना मिन क़ब्लेहिम" से तात्पर्य पैग़म्बरों की बजाय उन पिछली उम्मतों का है जिनमें ईमान और अच्छे काम थे और जिन्होंने ज़मीन पर हुकूमत की।
कुछ दूसरो का मानना है कि यह आयत बनी इस्राईल की ओर इशारा करती है, जैसा कि उनके यकीन और अच्छे कामों के कारण, पैग़म्बर हज़रत मूसा (अ) के आने पर, फ़िरऔन की ताक़त टूटने के बाद उन्हें ज़मीन की हुकूमत मिली थी। जैसे कि कुरआन करीम मे आया हैः
وَ أَوْرَثْنَا الْقَوْمَ الَّذینَ کانُوا یسْتَضْعَفُونَ مَشارِقَ الْأَرْضِ وَ مَغارِبَهَا الَّتی بارَکْنا فیها व औरसनल क़ौमल लज़ीना कानू यस्तज़ऐफ़ूना मशारिकल अर्ज़े व मग़ारेबहल लती बारकना फ़ीहा
हमने उस क़ौम को जो दबाए गए थे, पूरब और पश्चिम के उन क्षेत्रों की हुकूमत दी, जिन्हें हम ने बरकत वाला बनाया था। (सूर ए आअराफ़ 137)
और यह भी उनके बारे मे कहा गया है
وَ نُمَکِّنَ لَهُمْ فِی الْأَرْض व नोमक्केना लहुम फ़िल अर्ज़ "हमने उन दबाए गए लोगों (जो मोमिन और कमजोर समझे जाते थे) को उस जमीन के पूरब और पश्चिम के हिस्सों का वारिस बनाया, जिसमें हमने बरकत की थी।"
2- यह इलाही वादा किन लोगो से है?
इस आयत में अल्लाह ने एक समूह के नेक और मोमिन लोगों को ज़मीन पर हुकूमत, धर्म की बढ़त, और पूरी सुरक्षा का वादा किया है, लेकिन इस समूह की पहचान को लेकर मुफ़स्सिरो में मतभेद है।
कुछ मुफ़स्सिरो का मानना है कि यह आयत हज़रत इमाम महदी (अ) की हुकूमत की ओर इशारा करती है, जहां दुनिया का पूरब और पश्चिम उनके शासन के अधीन हो जाएगा, धर्म दुनिया भर में फैलेगा, भय और असुरक्षा खत्म हो जाएगी, और सभी लोग बिना किसी को अल्लाह का शरीक करार दिए बिना केवल अल्लाह की इबादत करेंगे। (तफ़सीर अलमीज़ान, भाग 15, पेज 218)
बिना किसी संदेह के यह आयत प्रारम्भिक मुसलमानों के साथ-साथ हज़रत महदी (अ) की न्यायपूर्ण और सार्वभौमिक हुकूमत को भी दर्शाती है। आम मुस्लिम मत, चाहे वे शिया हों या सुन्नी, यह मानते हैं कि वह पूरी ज़मीन को न्याय और क़ानून से भर देंगे और वे इस आयत के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं, हालांकि इसका मतलब केवल एक स्थान तक सीमित नहीं है।
कुछ लोगों का कहना है कि 'अर्ज़' शब्द का मतलब पूरी धरती है और यह केवल इमाम महदी (अ) की हुकूमत तक सीमित नहीं हो सकता क्योंकि 'کما استخلف कमस तख़लफ़ा' (जैसे कि उन्होंने पहले लोगों को दिया) से यह पता चलता है कि पहले की हुकूमत निश्चित रूप से पूरी धरती तक सीमित नहीं थी।
इसके अलावा, आयत की शाने नुज़ूल इस बात का संकेत है कि कम से कम पैगम्बर के समय मुसलमानों के लिए इस हुकूमत का एक नमूना मौजूद था।
तमाम पैग़म्बरों की मेहनत और लगातार प्रचार-प्रसार का फल, जैसे कि एक पूर्णता प्राप्त शासन जिसमें एकता, पूरी सुरक्षा और सच्चे इबादत के नमूने मौजूद हों, तब पूरा होता है जब हज़रत महीद (अ) का ज़ुहूर होगा। (तफ़सीर नमूना , भाग 14, पेजेज 530-532)
जैसा कि बताया गया है, यह व्याख्या आयत के विशेष उदाहरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मतलब उस पूर्ण उदाहरण को दर्शाना है।अबू बसीन ने इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत बयान की है कि उन्होंने इस आयत के संदर्भ में फरमाया:
نَزَلَتْ فِی اَلْمَهْدِیِّ عَلَیْهِ اَلسَّلاَمُ नज़लत फ़िल महदी अलैहिस सलामो
यह आयत कायम अज्जलल्लाहो तआला फ़रजहुश शरीफ़ और उनके साथियों के लिए नाजिल हुई है। (शेख तूसी, किताब अल ग़ैबा, पेज 177)
अल्लामा तबातबाई ने लिखा है: "यह स्वच्छ और पवित्र समाज, जिसकी विशेषताएँ नैतिकता और पवित्रता से भरी हुई हैं, अब तक दुनिया में कभी भी मौजूद नहीं हुआ है और न ही तब से जब से पैगंबर (स) रेसालत पर मबऊस हुए, ऐसी कोई समाज अस्तित्व में नही आया है। अगर इसका कोई वास्तविक उदाहरण होगा, तो वह हज़रत महदी (अ) के समय मे होगा। क्योंकि पैगंबर (स) और अहले बैत की मुतावातिर हदीस इस बात का संकेत हैं। यह रिवायत तब सही होगी जब हम इस आयत के संदर्भ में नेक समाज को समझें, न कि सिर्फ हज़रत महदी (अ) को।"
फिर वह आगे कहते हैं: "आप कहेंगे: इस सिद्धांत के अनुसार, इसका क्या मतलब है कि यह आयत अपने नुज़ूल के समय "उन लोगों को संबोधित है जो विश्वास करते हैं और नेक काम करते हैं", जबकि महदी उस दिन वहां नहीं थे (न तो वह स्वयं थे और न ही उनके समकालीनों में से कोई)?"
इस सवाल का जवाब यह है कि प्रश्नकर्ता ने व्यक्तिगत खिताब और सार्वजनिक खिताब में फ़र्क़ नहीं किया। क्योंकि बात दो तरह हो सकती है: कुछ लोगों को सीधे तौर पर संबोधित करना, जहां केवल उन व्यक्तियों की विशेषताएँ देखी जाएं। यहाँ पर वह सिर्फ उन पर ही लागु होता है, ना कि दूसरों पर। लेकिन दूसरी स्थिति में, वे लोग एक समूह के रूप में देखे जाते हैं जिनके पास कुछ खास गुण होते हैं। इस परिस्थिति में व्यक्ति का नाम जरूरी नहीं होता, बल्कि उनकी विशेषताओं को देखा जाता है, और ये बात दूसरे समान समूहों पर भी लागू होती है।
यह आयत उसी दूसरी किस्म के खिताब में आती है, जिसे हमने ऊपर समझाया था, और कुरआन में ज्यादातर बातें इसी प्रकार की होती हैं, जहां या तो मुमिनों को संबोधित किया जाता है या काफ़िरों को। (तफ़सीर अल मीज़ान, भाग 15, पेज 220)
मज्मा उल बयान में इस आयत के संदर्भ में कहा गया है कि मुफ़स्सिर इस बात पर मतभेद करते हैं कि "الذین آمنوا مِنکُم अल लज़ीना आमनू मिंकुम" कौन हैं मत भेद पाया जाता है, लेकिन अहले बैत (अ से रिवायत है कि इसका मतलब है महदी जो आल-मुहम्मद से हैं।
अय्याशी ने अली बिन अल-हसन से वर्णन किया है कि जब इस आयत की तिलावत की गई, तो उन्होंने कहा: अल्लाह की कसम! ये हमारे अहले-बैत (अ) के शिया हैं, जिनके लिए खुदा अपना यह वादा एक व्यक्ति के माध्यम से पूरा करेगा, और वह व्यक्ति इस उम्मत का महदी होगा। वे पैग़म्बर (स) की हदीस के अनुसार हैं: अगर इस दुनिया में एक दिन रह जाए, तो वह दिन इस हद तक बढ़ा दिया जाएगा जब तक कि मेरा नाम रखने वाला व्यक्ति, मेरी उम्मत से निकलेगा। वे ज़मीन को न्याय से भर देंगा जैसे वह अत्याचार और अन्याय से भरी होगी। इस जैसी रिवायत अबी जाफर और अबी अब्दुल्लाह ने भी बयान की हैं। (मज्मा उल बयान, भाग 7, पेज 52)
श्रृंखला जारी है ---
इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत" नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया है, लेखक: खुदामुराद सुलैमियान
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