शनिवार 22 नवंबर 2025 - 08:13
कुरआन मे महदीवाद (अंतिम भाग)

हौज़ा / कुरआन की आयतों के कभी-कभी कई मतलब होते हैं। एक मतलब तो ज़ाहिरी और आम लोगों के समझने लायक होता है, और दूसरा अंदरूनी और गहरा मतलब होता है, जिसे आयत का “बतन” कहा जाता है। इस छिपे हुए मतलब को सिर्फ़ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम, इमाम अलैहिस्सलाम और वही लोग जानते हैं जिन्हें अल्लाह खुद चाह ले।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, महदीवाद पर आधारित "आदर्श समाज की ओर" शीर्षक नामक सिलसिलेवार बहसें पेश की जाती हैं, जिनका मकसद इमाम ज़माना (अ) से जुड़ी शिक्षाओ को फैलाना है।

हज़रत महदी अज्जा लल्लाहो तआला फ़रजहुश शरीफ़ और उनकी वैश्विक क्रांति से संबंधित कुछ आयतें इस प्रकार हैं:

चौथी आयत:

وَ لِکُلٍّ وِجْهَةٌ هُوَ مُوَلّیها فَاسْتَبِقُوا الْخَیراتِ أَینَ ما تَکُونُوا یأْتِ بِکُمُ اللّهُ جَمیعًا إِنَّ اللّهَ عَلی کُلِّ شَیءٍ قَدیرٌ वलेकुल्ले विज्हतुन होवा मुवल्लीहा फ़स्तबेक़ुल ख़ैराते अयना मा तकूनू याते बेकोमुल्लाहो जमीअन इन्नल्लाहा अला कुल्ले शैइन क़दीर 

हर गिरोह/क़ौम के लिए एक दिशा है, जिसकी तरफ़ वह रुख़ करता है, और उसे अल्लाह ने ही तय किया है। इसलिए क़िब्ले पर ज़्यादा झगड़ा न करो, बल्कि नेकियों और अच्छे कामों में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश करो; तुम जहाँ भी रहोगे, अल्लाह क़यामत के दिन तुम सबको (तुम्हारे अच्छे-बुरे आमाल का हिसाब लेने के लिए) एक साथ जमा कर देगा, क्योंकि वह हर चीज़ पर पूरी तरह क़ादिर है। (सूर ए बक़रा, आयत 148)

अहले बैत अलैहेमुस्सलाम से आने वाली बहुत सी रिवायतों में “أَینَ ما تَکُونُوا یأْتِ بِکُمُ اللّهُ جَمیعًا अयना मा तकूनू याते बेकोमुल्लाहो जमीअन” वाले जुमले को हज़रत महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर के वक़्त उनके साथियों के एक जगह इकट्ठा होने के मतलब में बयान किया गया है। इमाम बाक़िर अलेहिस्सलाम ने इस आयत के बारे में फ़रमाया:

یعْنِی أَصْحَابَ الْقَائِمِ الثَّلَاثَ مِائَةِ وَ الْبِضْعَةَ عَشَرَ رَجُلاً قَالَ وَ هُمْ وَ اللَّهِ الاُمَّةُ الْمَعْدُودَةُ قَالَ یجْتَمِعُونَ وَ اللَّهِ فِی سَاعَةٍ وَاحِدَةٍ قَزَعٌ کَقَزَعِ الْخَرِیفِ यअनी अस्हाबल क़ाऐमिस सलासा मेअते वल बिज़्अता अशरा रजोलन क़ाला व हुम वल्लाहिल उम्मतुल मअदूदतो क़ाला यज्तमेऊना वल्लाहे फ़ी साअतिन वाहेदतिन क़ज़उन कक़ज़्इल खरीफ़े 
इससे मुराद क़ाएम (अ) के असहाब हैं, जो तीन सौ और कुछ (थोड़ा ज़्यादा) लोग होंगे। ख़ुदा की क़सम! “उम्मत-ए-मअदूदा” से मुराद भी यही लोग हैं। ख़ुदा की क़सम! ये सब एक ही वक्त में इकट्ठा कर दिए जाएँगे, जैसे तेज़ हवा के ज़ोर से बिखरे हुए पतझड़ के बादलों के टुकड़े एक जगह जमा हो जाते हैं। (काफ़ी, भाग 8, पेज 313)

इमाम रज़ा अलेहिस्सलाम भी फ़रमाते हैं:

وَ ذَلِکَ وَ اللَّهِ أَنْ لَوْ قَدْ قَامَ قَائِمُنَا یجْمَعُ اللَّهُ إِلَیهِ شِیعَتَنَا مِنْ جَمِیعِ الْبُلْدَانِ व ज़ालेका वल्लाहे अन लौ क़द क़ामा क़ाऐमोना यज्मउल्लाहो इलैहे शीअतना मिन जमीइल बुल्दाने

ख़ुदा की क़सम! जब हमारे क़ाएम (हज़रत महदी (अ.ज.) क़याम करेंगे, तो अल्लाह हमारे शियो (हमारे सच्चे मानने वालों) को तमाम शहरों और मुल्कों से इकठ्ठा करके उनकी तरफ़ जमा कर देगा। (बिहार उल अनवा, भाग 52, पेज 291)

यह तफ़सीर आयत के “बातिनी” मतलब में से है, क्योंकि रिवायतों के मुताबिक़ कुरआन की आयतों के कभी‑कभी कई अर्थ होते हैं। एक अर्थ तो ज़ाहिरी और आम लोगों के लिये होता है, और दूसरा अंदरूनी, गहरा अर्थ होता है, जिसे “बतन‑ए‑आयत” कहा जाता है, और उसके बारे में सिर्फ़ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम, इमाम अलैहिस्सलाम और वे लोग जानते हैं जिन्हें अल्लाह चाह ले।

इन रिवायतों की रौशनी में मतलब यह है कि जो ख़ुदा क़यामत के दिन इंसानों की मिट्टी के बिखरे हुए ज़र्रों को दुनियाभर की अलग‑अलग जगहों से जमा कर सकता है, वह बहुत आसानी से हज़रत महदी (अज) के साथियों को एक ही दिन और एक ही वक़्त में जमा कर सकता है, ताकि वे पूरी दुनिया में अदल और इन्साफ़ की हुकूमत क़ायम करें और ज़ुल्म‑ओ‑सितम का ख़ात्मा कर दें।

पाँचवीं आयत:

بَقِیتُ اللّهِ خَیرٌ لَکُمْ إِنْ کُنْتُمْ مُؤْمِنینَ وَ ما أَنَا عَلَیکُمْ بِحَفیظ बक़ीयतुल्लाहे ख़ैरुल लक़ुम इन कुंतुम मोमेनीना वमा अना अलैकुम बेहफ़ीज़
यानि: “जो कुछ अल्लाह ने तुम्हारे लिये बाक़ी रखा (यानी हलाल और जायज़ रोज़ी व माल), अगर तुम ईमान वाले हो तो वही तुम्हारे लिये बेहतर है, और मैं तुम्हारा रखवाला नहीं हूँ । (सूर ए हूद, आयत 86)।”

अलग‑अलग रिवायतों में “बक़ीयतुल्लाह” से मुराद इमाम महदी (अ) या कुछ दूसरे इमाम अलैहेमुस्सलाम को बताया गया है।

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:

وَ أَوَّلُ مَا ینْطِقُ بِهِ هَذِهِ الْآیةُ «بَقِیتُ اللَّهِ خَیرٌ لَکُمْ إِنْ کُنْتُمْ مُؤْمِنِینَ» ثُمَّ یقُولُ: أَنَا بَقِیةُ اللَّهِ فِی أَرْضِه व अव्वलो मा यंतेक़ो बेहि हाज़ेहिल आयतो (बक़ीयतुल्लाहे ख़ैरुल लकुम इन कुंतुम मोमेनीना) सुम्मा यक़ूलोः अना बक़ीयतुल्लाहे फ़ी अर्ज़ेहि

सबसे पहला कलाम जो (हज़रत महदी (अ) ज़ुहूर के बाद) इरशाद फ़रमाएँगे, वही यह आयत होगी: “बَبَقِیتُ اللّهِ خَیرٌ لَکُمْ إِنْ کُنْتُمْ مُؤْمِنینَ बक़ीयतुल्लाहे ख़ैरुल लकुम इन कुंतुम मोमेनीना” फिर इरशाद फ़रमाएँगे: “मैं ही ज़मीन पर बक़ीयतुल्लाह हूँ।” (कमालुद्दीन व इत्मामुन नेअमा, भाग 1, पेज 330)

सही है कि जिस आयत की यहाँ बात हो रही है, उसमें सीधे तौर पर संबोधन क़ौम‑ए‑शुऐब से है और “बक़ीयतुल्लाह” का ज़ाहिरी मतलब हलाल फायदा, हलाल पूँजी या अल्लाह का अज्र‑ओ‑सवाब है। लेकिन हर वह नफ़ा‑बख़्श और भलाई वाली हस्ती या चीज़, जो अल्लाह की तरफ़ से इंसानों के लिए बाक़ी रखी गई हो और इंसान की भलाई व सआदत का ज़रिया बने, “बक़ीयतुल्लाह” कही जा सकती है। इस लिहाज़ से तमाम अल्लाह के पैग़म्बर और बड़े पेशवा “बक़ीयतुल्लाह” हैं।

क्योंकि हज़रत महदी मोऊद (अ), पैग़म्बर इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम के बाद आख़िरी रहनुमा और सबसे बड़े क़ाइद हैं, इसलिए “बक़ीयतुल्लाह” के सबसे रोशन और साफ़ मिस्दाकों में से एक वही हैं, और इस लक़ब के सबसे ज़्यादा हक़दार भी वही हैं; ख़ास तौर पर इस नज़र से कि वे सारे पैग़म्बरों और इमामों के बाद अकेली बाक़ी रहने वाली ख़ुदाई हुज्जत हैं।

छठी आयत:

هُوَ الَّذی أَرْسَلَ رَسُولَهُ بِالْهُدی وَدینِ الْحَقّ ِ لِیظْهِرَهُ عَلَی الدِّینِ کُلِّهِ وَلَوْ کَرِهَ الْمُشْرِکُونَ “होवल्लज़ी अर्सला रसूलहु बिल्हुदा वा दीनिल‑हक़ लेयुज़हेरहू अलद्दीने कुल्लेह वलौ करेहल मुशरेकून”
“वही ज़ात है जिसने अपने रसूल को हिदायत और दीन‑ए‑हक़ के साथ भेजा, ताकि उसे तमाम दीनों पर ग़ालिब कर दे, चाहे मुशरिकों को कितना ही नागवार गुज़रे।” (सूर ए तौबा, आयत 23)

यही आयत उन्हीं अल्फ़ाज़ के साथ सूरह “सफ़” में भी आई है और थोड़े से लफ़्ज़ी फ़र्क़ के साथ सूरह “फ़त्ह” में दोहराई गई है, और यह एक बहुत बड़े वाक़ेअ की ख़बर देती है। इसी अहमियत की वजह से इसे क़ुरआन में बार‑बार दोहराया गया है और यह बताती है कि इस्लाम एक दिन पूरी दुनिया में फैल जाएगा और यह दीन सारी ज़मीन पर आम हो जाएगा।

कुछ मुफ़स्सेरीन ने इस आयत में बताई गई फ़त्ह‑ओ‑नुसरत को सिर्फ़ सीमित और मकामी फ़त्हों के मायने में लिया है, जो या तो खुद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम के ज़माने में, या उसके बाद कुछ इलाक़ों में इस्लाम को हासिल हुईं। लेकिन चूँकि इस आयत में किसी क़िस्म की कोई क़ैद या शर्त नहीं रखी गई और हर लिहाज़ से इसके लफ़्ज़ आम और मुतलक़ हैं, इसलिए इसे सिर्फ़ किसी सीमित दौर या इलाके तक महदूद करने की कोई दलील नहीं बनती। आयत का असल मतलब यह है कि आखिरकार इस्लाम हर पहलू से तमाम दूसरे मज़हबों पर ग़ालिब होगा; यानी अंत में इस्लाम पूरी ज़मीन पर छा जाएगा और सारी दुनिया पर उसी का बोल‑बाला होगा।

इसमें कोई शक नहीं कि अभी फिलहाल यह बात पूरी तरह हक़ीक़त की शक्ल में ज़ाहिर नहीं हुई, लेकिन अल्लाह का यह पक्का वादा धीरे‑धीरे पूरा हो रहा है। रिवायतों के अनुसार, इस प्रोग्राम की तकमील उस वक़्त होगी जब हज़रत महदी (अ) ज़ुहूर करेंगे और इस्लाम के वैश्विक होने का प्रोग्राम अमली रूप लेगा।

शेख़ सदूक़ रहमतुल्लाह अलैह ने इस आयत की तफ़सीर में इमाम सादिक़ अलेहिस्सलाम से यह बयान नक़्ल किया है:

وَ اللَّهِ مَا نَزَلَ تَأْوِیلُهَا بَعْدُ وَ لَا ینْزِلُ تَأْوِیلُهَا حَتَّی یخْرُجَ الْقَائِمُ عجل الله تعالی فرجه الشریف فَإِذَا خَرَجَ الْقَائِمُ لَمْ یبْقَ کَافِرٌ بِاللَّهِ الْعَظِیمِ وَ لَا مُشْرِکٌ بِالْإِمَامِ إِلَّا کَرِهَ خُرُوجَهُ حَتَّی لَوْ کَانَ کَافِرٌ أَوْ مُشْرِکٌ فِی بَطْنِ صَخْرَةٍ لَقَالَتْ یا مُؤْمِنُ فی بَطْنِی کَافِرٌ فَاکْسِرْنِی وَ اقْتُلْهُ वल्लाहे मा नज़ला तावीलोहा बादो वला यंज़ेलो तावीलोहा हत्ता यख़रोजल क़ाएमो अज्जलल्लाह तआला फ़रजा हुश्शरीफ़ फ़इज़ा ख़रजल क़ाएमो लम यब्क़ा काफ़ेरुन बिल्लाहिल अजीमे वला मुशरेकुन बिल इमामे इल्ला करेहा ख़ुरूजहू हत्ता लौ काना काफ़ेरुन ओ मुश्रेकुन फ़ी बत्ने सख़्रतिन लक़ालत या मोमेनो फ़ी बत्नी काफ़ेरुन फ़कसिरनी वक़्तुलहो
“ख़ुदा की क़सम! अभी तक इस आयत का पूरा तअव्वुल (अंदरूनी व असली मतलब) ज़ाहिर नहीं हुआ, और न ही होगा, जब तक क़ाएम (अ) ज़ुहूर न करें। जब वे ज़ुहूर करेंगे तो फिर न अल्लाह‑ए‑अज़ीम का कोई काफ़िर बाक़ी रहेगा और न कोई ऐसा शख्स जो इमाम का मुंकर हो, मगर यह कि वह उनके ज़ुहूर से नफ़रत करेगा। यहाँ तक कि अगर कोई काफ़िर किसी चट्टान के भीतर में भी छिपा होगा तो वह पत्थर पुकारेगा: ‘ऐ मोमिन! मेरे अन्दर एक काफ़िर छिपा हुआ है, मुझे तोड़, उसे बाहर निकाल और उसे क़त्ल कर।’” (कमालुद्दीन व इतमामुन नेअमत, भाग 2, पेज 670)

कुछ शिया उलेमा ने “महदवियत” से जुड़ी आयतों की तादाद 120 से ज़्यादा बताई है। तफ़सीली मालूमात के लिए इस विषय पर मौजूद मुफस्सल किताबों की तरफ़ रुजू किया जा सकता है; इसी लिए यहाँ आयात‑ए‑महदवी के बाब में हम इतनी ही आयतो पर इक्तफ़ा करते हैं।)

श्रृंखला जारी है ---

इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत"  नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया है, लेखक: खुदामुराद सुलैमियान

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