बुधवार 12 नवंबर 2025 - 10:41
हज़रत फातेमा (सला मुल्ला अलैहा) के मकतब के अनुयायी शहीद और अत्याचार के खिलाफ डटे रहने के प्रतिमान हैं

हौज़ा / हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन नासिर रफीई जो एक धर्मशास्त्र और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं, ने सावेह के शहीदों की स्मृति सभा में जोर देकर कहा कि हज़रत फातिमा ज़हेरा (स.अ.) शहादत के केंद्र और प्रतिरोध का प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि शहीदों ने फातिमा के मकतब से प्रेरणा लेकर बलिदान और नेतृत्व के प्रति समर्पण की भावना को जीवित रखा हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन नासिर रफीई जो एक धर्मशास्त्र और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं,उन्होने सावेह काउंटी के शहीदों की स्मृति सभा में जोर देकर कहा कि हज़रत फातिमा ज़हेरा (स.अ.) शहादत के केंद्र और प्रतिरोध का प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि शहीदों ने फातिमा के मकतब से प्रेरणा लेकर बलिदान और नेतृत्व के प्रति समर्पण की भावना को जीवित रखा।

उन्होंने कहा कि फातिमा (स.अ.) इस्लाम के इतिहास में प्रतिरोध और नेतृत्व का आधार स्तंभ हैं। शहीदों ने फातिमा ज़हेरा स.ल.के स्कूल से सीख लेकर समाज में बलिदान की संस्कृति को पुनर्जीवित किया है।

इस धर्मशास्त्र के प्रोफेसर ने अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स.) के इस कथन का उल्लेख किया कि पैगंबर की उम्मत के दो स्तंभ ले लिए गए पैगंबर और फातिमा (स.अ.)। उन्होंने कहा कि इन दो स्तंभों के खोने के बाद इमाम अली (अ.स.) के धैर्य और मौन की अवधि शुरू हुई और सत्य के मार्ग में प्रतिरोध की संस्कृति का निर्माण हुआ।

उन्होंने कहा कि फातमिया के दिनों में शहीदों की स्मृति सभाओं का आयोजन नेतृत्व के स्कूल, सत्य की रक्षा और अत्याचार के खिलाफ डटे रहने की पुनर्व्याख्या का एक अवसर है, जिसके शहीद सच्चे अनुयायी थे।

हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन रफीई ने पवित्र कुरान में "फलाह"की अवधारणा को भी समझाया और तकवा (धर्मपरायणता), तवस्सुल (अल्लाह के निकट लाने वाले साधनों का सहारा) और जिहाद को मनुष्य के मोक्ष के तीन कारक बताए।

उन्होंने आगे शहीद हाजी कासिम सुलेमानी की वसीयतनामा का उल्लेख किया और इस शहीद की पांच स्थायी आध्यात्मिक पूंजियां बताईं: नेतृत्व की समझ, मुजाहिदीन के साथ साथ चलना, हज़रत फातिमा (स.अ.) के मार्ग पर चलना और इमाम हुसैन (अ.स.) पर आंसू बहाना।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन नासिर रफीई ने अंत में जोर देकर कहा,आज जिहाद का मैदान सैन्य क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक, मीडिया, आर्थिक और साइबर क्षेत्र भी जिहाद के मुख्य अखाड़े हैं और सभी का कर्तव्य है कि दुश्मन के दबाव के खिलाफ दृढ़ता और स्थिरता बनाए रखें।

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