हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हजरत आयतुल्लाह जवादी आमोली ने रसूल अक़रम (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) की हजरत अली (अलैहिस्सलाम) को वसीयत के एक हिस्से की ओर इशारा करते हुए माता-पिता और संतान के आपसी अधिकारों के बारे में फरमाया:
पिता के बच्चों पर अधिकार:
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पिता अपनी संतान का अच्छा और नेक नाम रखे: "ऐ अली! संतान का हक उसके पिता पर है कि वह उसका अच्छा नाम रखे।"
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उसकी अच्छी तालीम करे: "और उसे अदब सिखाए।"
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जीवन के सभी व्यक्तिगत और सामाजिक मामलों में उसे उचित स्थान पर रखे: "और उसे उचित स्थान दे।"
संतान के माता-पिता पर अधिकार:
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संतान अपने पिता को उसके नाम से न पुकारे: "और पिता का बेटे पर अधिकार है कि वह उसे उसके नाम से न पुकारे।"
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पिता के आगे-आगे न चले: "और उसके सामने आगे न चले।"
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उसके सामने (पीठ करके) न बैठे: "और उसके सामने न बैठे।"
माता-पिता के लिए चेतावनी:
ऐ अली! अल्लाह उन माता-पिता को शाप दे जो अपनी संतान को अपनी अवज्ञा की ओर प्रेरित करें।
आपसी जिम्मेदारी:
ऐ अली! जो मुसीबत और सजा माता-पिता की नापसंदगी के कारण संतान को मिलती है, वह माता-पिता को संतान की नापसंदगी के कारण भी मिलती है।
माता-पिता के लिए दुआ:
ऐ अली! अल्लाह उन माता-पिता पर रहमत नाज़िल करे जो अपनी संतान को अपनी भलाई और अपनी रज़ा की ओर प्रेरित करें।
महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
ऐ अली! जो कोई भी अपने माता-पिता को दुखी करता है, उसने खुद को उनके प्रति नाफरमान बना लिया।
चेतावनी:
इस हदीस में जो बताया गया है वह माता-पिता और संतान के आपसी अधिकारों का केवल एक हिस्सा है, बाकी हिस्से दूसरी रिवायतो में बताए गए हैं।
[स्रोत: वसाइल उश शिया, भाग 21, पेज 389 / किताब अदब फनाय मुक़र्रबान, भाग 3, पेज 208-209]
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