शनिवार 1 नवंबर 2025 - 16:20
अल्लाह ने तौहीद के तुरंत बाद माता-पिता के साथ भलाई का आदेश दिया है

हौज़ा / हरम ए हज़रत मासूमा स.अ.में आयोजित मजलिस ए अज़ा को संबोधित करते हुए हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद हादी हिदायत ने कहा,जहाँ अल्लाह तआला ने तौहीद का हुक्म दिया है, वहीं माता-पिता के साथ नेकी और भलाई करने को भी अनिवार्य ठहराया है। यह बात इस्लामी तालीमात के उस प्रणाली की ओर इशारा करती है, जो माता-पिता के उच्च और सम्मानित दर्जे को स्पष्ट करती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद हादी हिदायत ने कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा (स.ल) सिर्फ उम्मे अबीहा (अपने पिता की माँ) या "उम्मुल आम्मा" (इमामों की माँ) ही नहीं हैं, बल्कि वह सभी शियाओं की आध्यात्मिक माँ का दर्जा रखती हैं और ईमान वालों की परवरिश उन्हीं के हाथों होती है।

हुज्जतुल इस्लाम हिदायत ने इमाम सादिक (अ) के एक कथन का हवाला देते हुए कहा कि आयत "الذین آمنوا و اتبعتهم ذریتهم بإیمان" के अनुसार हज़रत ज़हेरा (स.ल.) शिया बच्चों की परवरिश करती हैं, जो उनके अद्वितीय आध्यात्मिक दर्जे को दर्शाता है।

उन्होंने आगे कहा कि हज़रत ज़हेरा (स.व.) को "ज़हरा" इसलिए कहा गया क्योंकि अल्लाह ने उन्हें अपने महान नूर से पैदा किया, और यही नूर ईमान वालों के लिए हिदायत और पवित्रता का स्रोत है।

हदीस-ए किसा की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह हदीस ईमान वालों के लिए एक खजाना और बच्चों की परवरिश के लिए एक व्यावहारिक दिशानिर्देश है। इसमें इमाम हसन (अ.स.) का अपनी माँ को अदब और इज्जत के साथ सलाम करना और हज़रत ज़हरा (स) का मोहब्बत भरा जवाब देना, इस्लामी परवरिश की एक उत्कृष्ट मिसाल है।

उन्होंने कहा कि पवित्र कुरआन में अल्लाह ने तौहीद के साथ ही माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया है, जो इस बात का प्रमाण है कि माँ-बाप का सम्मान ईमान और परवरिश के बुनियादी सिद्धांतों में से है।

हुज्जतुल इस्लाम हिदायत ने आगे कहा कि यहाँ तक कि हज़रत ईसा (अ.स.) के धर्म में भी माता-पिता की सेवा एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जैसा कि कुरआन में उनके कथन के हवाले से आया है,وَبَرًّا بِوَالِدَتِی وَلَمْ یَجْعَلْنِی جَبَّارًا شَقِیًّا है।

उन्होंने बताया कि इमाम सादिक (अ) की एक रिवायत के अनुसार, माता-पिता की सेवा सिर्फ इस्लाम में ही नहीं, बल्कि सभी आसमानी धर्मों में हैं। जबकि उनकी नाफरमानी इंसान को अल्लाह की रहमत से महरूम कर देती है।

वक्ता ने आयतुल्लाह मरअशी नजफी, आयतुल्लाह मक़ारिम शीराजी और दूसरे बड़े उलमा की जिंदगियों से उदाहरण देते हुए कहा कि उनकी इल्मी और रूहनी कामयाबियाँ माता-पिता की सेवा और उनके सम्मान की बरकत से थीं।

अंत में उन्होंने कहा कि अपने परिवार की दीनी परवरिश में आपसी सम्मान बुनियादी महत्व रखता है। हज़रत ज़हेरा (स.ल.) अपने बेटे को "आँखों का नूर" और "दिल का फल" कहकर बुलाती थीं, जो माता-पिता के लिए बेहतरीन नमूना है। उनके अनुसार, बच्चों का अपमान और सख्त रवैया, ईमान की कमजोरी और विचार में भटकाव का कारण बनता है।

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