हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,बहुत से माता-पिता की सोच विपरीत होती है कि सिर्फ बच्चों को हमारे साथ खेलने की ज़रूरत है जबकि माता पिता को बच्चे के साथ संपर्क में रहने और उसके साथ खेलने की ज़रूरत है।
बच्चे के साथ खेलना खुशी का एक स्रोत है लेकिन जब माता-पिता को मीडिया के माध्यम से यह आनंद मिलता है तो उन्हें बच्चे के साथ खेलने में मज़ा नहीं आएगा।
जिनके दो या तीन बच्चे हैं शायद वह गुमान करें कि उनके बच्चों को अपने माता-पिता के साथ खेलने की ज़रूरत नहीं हैं, लेकिन बच्चों को अपने माता-पिता के साथ खेलने से जो खुशी प्राप्त होती है वह खुशी अपने साथियों के साथ खेलने से भी नहीं मिलती हैं।
इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चों को एक-दूसरे के साथ खेलने में मज़ा नहीं आता। बल्कि माता-पिता और साथियों के साथ खेलने के अलग-अलग प्रभाव होते हैं। यह प्रभाव एक दूसरे की जगह नहीं ले सकते,
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन
अध्यापक अब्बास वालदी
आपकी टिप्पणी