हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के जाने-माने खतीब, शोधकर्ता, लेखक और मोहिब्बाने उम्मुल आइम्मा (अ.स.) एजुकेशनल एंड वेलफेयर ट्रस्ट के अध्यक्ष मौलाना सैयद मुराद रज़ा रिज़वी ने एक बयान में कहा कि यूं तो कूफे वालो को बुरा भला बहुत कहा जाता है लेकिन यहाँ की युवतियों ने कुछ ऐसा किया है जो अभी भी बेग़ैरत पुरुषों के चेहरे पर भरपूर तमाचा है।
उन्होंने व्याख्या करते हुए कहा कि यज़ीद के वासिले जहन्नम होने के बाद, कुछ लोगों ने उमरे साद को ख़लीफ़ा बनाने का फैसला किया क्योंकि वह सहाबी-ए रसूल सआद बिन अबि वकास का बेटा भी हैं और इस्लाम के लिए उसकी खिदमत भी है। अपनी अपनी बेग़ैरती की लाश अपने कंधों पर उठाए हुए, ये मर्द दिखने वाली औरतें दारु इमारा की ओर मार्च कर रहे थे। किसी ने यह सूचना महिलाओ तक पहुंचा दी कुछ महिलाओ ने अपने हाथो मे छोटे छोटे पत्थर लेकर सड़क पर दौड़ पड़ी और बेग़ैरत जथ्थे को यह कहते हुए पत्थरो से मारने लगी कि इमाम हुसैन (अ.स.) का हत्यारा खलीफा नही बन सकता। विवश होकर उमरे सआद सहित सभी बेग़ैरतो को मुंह छिपा कर भागना पड़ा और इस प्रकार इतिहास एक घृणित दाग से बच गया।
उन्होंने जोर देकर कहा कि आज भी, भारतीय उपमहाद्वीप में ऐसी महिलाओं की जरूरत है जो अपने हाथों में पत्थर और कालिख ले कर उन सभी बेग़ैरत लोगों को दौड़ा सकती हैं जिन्होने 20 अप्रैल 2021 को मंगलवार को लखनऊ के वक़्फ़ बोर्ड के कैंपस मे इमामे ज़माना (अ.त.फ.श.) के सीने मे खंजर उतार कर उनको लहू लहान किया है।
मौलाना मुराद रज़ा ने सूचित करते हुए कहा कि दौरे हाजिर के बेग़ैरत पुरुषों ने तो अपना विवेक (ज़मीर) बेच दिया है। केवल ज़ैनबी महिलाएं ही इस सांस्कृतिक नरसंहार का बदला ले सकती हैं जिससे इमामे ज़माना (अ.त.फ.श.) का शरीर और आत्मा दोनों घायल है। यह आशा की जाती है कि प्रत्येक क्षेत्र की महिलाएं कुफा की महिलाओं के कार्यों को दोहरा कर रूहे जनाबे सैयदा को शांति प्रदान करेंगी।