۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
आयतुल्लाह हाफ़िज़ बशीर नज़फ़ी

हौज़ा / मरज-ए आली क़द्र ने अपने बयान में कहा कि अल्लाह और पवित्र पैगंबर (स.अ.व.व.) के बाद, अहलेबेैत (अ.स.) हमारे हक़ीक़ी रहबर है और जरूरी भी है कि हम उन्हें अपनी दुनिया और आख़ेरत के लिए हक़ीक़ी रहबर माने, क्योंकि वे हमारे लिए नमून-ए अमल हैं, दिव्य मार्ग है, मोक्ष का साधन है। उनके शब्दों और कर्मों का पालन करने का अर्थ है मौक्ष और बंदगी।

हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, नजफ अशरफ / हजरत आयतुल्लाहिल उज़मा अलहाज हाफिज बशीर हुसैन नजफी ने इमाम हसन फाउंडेशन (अ.स.) और अतबाते आलियात के स्वयंसेवकों का नजफ अशरफ के प्रधान कार्यालय में स्वागत करते हुए उनसे अपनी पितृसत्तात्मक (पिदरिः सलाह में कहा कि यह आवश्यक है कि जो भी कार्य किए जाते हैं, उनमें गंभीरता और ईमानदारी होनी चाहिए। आलस्य और शिथिलता अक्सर हारने वालों में होती है।

उन्होंने आगे कहा कि उच्च स्थिति प्राप्त करने और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, अतिरिक्त और निरंतर कार्रवाई की आवश्यकता होती है और इसी तरह आख़ेरत भी बिना अमल के कैसे प्राप्त होगी, आमाल को छोड़ने वाले वास्तविक नुकसान उठाते हैं।

मरज-ए आली ने कहा है कि तकवे के बिना किसी भी अमल का कोई मतलब नहीं है और वह दुनिया को आख़ेरत से नही जोड़ता। खुदा का फरमान है कि तकवा कर्मों की स्वीकृति और ईश्वरीय सुख की प्राप्ति का साधन है, और धर्मनिष्ठा (तकवा) का पहला चरण यह है कि व्यक्ति को दिन में कम से कम एक बार अपना स्वंय हिसाब किताब करना चाहिए और जो गलतियाँ की गई हैं उन्हें इंगित करना चाहिए। यदि उसने अच्छे काम किए हैं, तो उसे अल्लाह का शुक्रिया अदा करना चाहिए और अधिक सफलता के लिए दुआ करनी चाहिए।

आगे बताते हुए, उन्होंने कहा कि अल्लाह और पवित्र पैगंबर (स.अ.व.व.) के बाद, अहलेबेैत (अ.स.) हमारे हक़ीक़ी रहबर है और जरूरी भी है कि हम उन्हें अपनी दुनिया और आख़ेरत के लिए हक़ीक़ी रहबर माने, क्योंकि वे हमारे लिए नमून-ए अमल हैं, दिव्य मार्ग है, मोक्ष का साधन है। उनके शब्दों और कर्मों का पालन करने का अर्थ है मौक्ष और बंदगी।

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