۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
صفی حیدر زیدی

हौज़ा/लखनऊ-तंज़ीमुल मकतिब के सेक्रेट्री मौलाना सैय्यद सफ़ी हैदर ने आज यौमे कुदस के मौके पर कहा कि क़ुरआन ए करीम में अल्लाह ने फरमाया: अल्लाह ज़ालिम और अन्यायी को नहीं चाहता। (सूरह. 40)

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हज़रत अमीरुल मोमीनीन (अ.स.) ने फरमाया: जो भी ज़ुल्म करता है, जो भी ज़ुल्म में उसकी मदद करता है और जो भी इस ज़ुल्म से संतुष्ट होता है, तीनों ज़ुल्म में बराबर के भागीदार होते हैं (अल-खसाल, जिल्द 2, पेज 4)
ज़ियारते वारेसा में है। "अल्लाह की लानत उस उम्मत पर हो, जिसने आप को क़त्ल किया,अल्लाह का लानत उस उम्मत पर हो जिसने आप पर ज़ुल्म  किया और अल्लाह की लानत उस उम्मत पर हो जिसने आप पर हुए ज़ुल्म को सुना और उस पर राज़ी और खामोश रहा!
क़ुरआन की आयतों और मासूमीन अ०स० की हदीसों से साबित है जो भी ज़ुल्म पर खामोश रहे गा वह ज़ुल्म मे बराबर का शरीक है!
1948 से फिलिस्तीन सैहयूनियों के आक्रामक कब्ज़े में है, जिसमें आलमे इस्लाम का पहला क़िला मस्जिद अल अक़सा भी है।
ज़ालिम सैहयोनी न केवल अम्बिया व मुरसलीन और मुसलमानों की ज़मीन पर कब्जा किये हैं, बल्कि वहां रहने वाले मज़लूम निहत्थे नागरिकों पर भी अत्याचार करते हैं। वहाॕ हर दिन बे गुनाहों का ख़ून बहता है जिसमे औरतों और बच्चों का खून भी शामिल होता है, बच्चों, औरतों और निहत्थे लोगों पर हमले की न दीन इजाज़त देता है और न दुनिया का कोई क़ानून।
अब तक न जाने कितनी बस्तियां वीरान हो गयीं, कितने बेगुनाह शहीद हो गये, कितने जवान काम आ गये, लेकिन इन सभी मानवीय, वित्तीय और आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद, फिलिस्तीनियों की स्थिरता में कोई कमी नहीं आई. आज भी, मुश्केलात के बावजूद वह दुश्मन के सामने डते हुए हैं, उनकी मज़लूमियत, उनकी फरयाद , उकी शहादत आलमे इसलाम की ग़ैरत को ललकार रही है! इस्लामी  इनसानी ग़ैरत पर सवालिया निशान है!
मौलाना सफ़ी हैदर ने आगे कहा मज़लूम मुसलमानों पर हो रहे ज़ुल्म पर आलमे इसलाम और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की आपराधिक चुप्पी आश्चर्यजनक है!
दौरे हाज़िर मे अच्छी तरह से अनुमान लगाया जा सकता है कि कोरोना महामारी के कारण जब आर्थिक संकट और चिकित्सा सुविधाओं की कमी है तो कई अंतरराष्ट्रीय संगठन और हर इनसान जिसमें इनसानियत बाक़ी है, धर्म और समाज के भेद के बिना जीवन बचाने में व्यस्त है और जिन्हें मदद नहीं मिल पाती वह अपनी और अपने अज़ीज़ों की जान से हाथ धोने पर मजबूर होते हैं।फिलिस्तीनी  किसी महामारी की वजह से नहीं बल्कि सात दशकों से बुन्यादी हुक़ूक़ और मेडिकल सहूलतों से महरूम  हैं, ज़ालिम सैहयूनियों ने उन पर मदद के सारे रास्ते बन्द कर दिये हैं लेकिन उनसे ज़्यादा महरूम सारे इनसान खास तौर से आलमे इसलाम है जो उनकी मदद तो दूर हिमायत से भी महरूम है!फिलिस्तीन पर ग़ासेबाना कब्जे और मज़ालिम पर दुनिया की चुप्पी खास तौर से अरब दुनिया की बेहिसी ने आलमी इस्तेकबार की हिम्मतें और बढ़ा दी है। फिलिस्तीन से ज़्यादा यमन के हालात खराब है। बर्मा में मज़ालिम उरूज पर हैं। नाइजीरिया के मज़लूमों का खून रोज बहाया जाता है!
इसलामिक क्रांति के सर्वोच्च रहभर अयातुल्लाह सैयद रूहुल्लाह मूसवी खुमैनी क़ुद्स सिर्रोह ने रमज़ान के पवित्र महीने के आखिरी शुक्रवार को यौमे कुद्स का तारीखी एलान किया ताकि आलमे इस्लाम मज़लूम के समर्थन करे और ज़ालिम से इज़हारे बराअत करे और फिलिस्तीन को इसका सेम्पल क़रार दिया यह दिन इस्लाम और इनसानियत की पासबानी और दुनिया भर में ज़ालिमों से नफरत और मज़लूमों की हिमायत करने का दिन है।
हमें घर से लेकर दुनिया तक, और जितना मुम्किन हो ज़ुल्म के खिलाफ बोलने की कोशिश करनी चाहिए।

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