۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
मौलाना सफी हैदर जैदी

हौज़ा / तंज़ीम अल-मकातिब के प्रमुख ने कहा कि यह विस्मृति और परोपकार का एक ऐसा परोपकारी कार्य है कि जो लोग आज अल्लाह की इबादत का तरीका सिखाते हैं, उनके दरगाह वीरान हैं।

हौजा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, तंजीम अल-मकातिब के सचिव मौलाना सैयद सफी हैदर जैदी ने जनत अल-बकी के विध्वंस के अवसर पर एक संदेश भेजा है, जिसका पूरा पाठ इस प्रकार है;

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
यह हमारा फ़ैसला है और जो भी अल्लाह की निशानियों की ताज़ीम करेगा यह ताज़ीम उसके दिल के तक़वे का नतीजा होगी! (सूरे हज आयत 32)
परवरदिगार के वाज़ेह हुक्म के मुताबिक़ है हर वह चीज़ जिससे उसकी याद ताज़ा हो उसकी ताज़ीम वाजिब है क्योंकि वह दिलों के तक़वे का नतीजा है! जज़ीरतुल अरब ख़ुसूसन हरमैन शरीफ़ैन मक्का ए मोकर्रमा और मदीने मुनव्वरा जहां रसूल अल्लाह स०अ०, अहलेबैते अतहार अ०स०, अज़वाजे रसूल और सहाबाए केबार ने ज़िंदगी बसर की और वहां उनके आसार हैं जो इंसान को ख़ालिक की याद दिलाते हैं, खुदा से नज़दीक और उसकी इताअत की तौफ़ीक़ अता करते हैं। उनकी ताज़ीम और तहफ्फुज़ आलमे इस्लाम पर लाज़िम है हर वह फ़िक्र या अमल जो उन आसार को ख़त्म करे उससे पासबानी हर मुसलमान का फ़रीज़ा है।

तारीख गवाह है कि वेसाले रसूल स०अ० के बाद इन आसार पर मुसलमानों ने खास तवज्जो दी तबरानी के मुताबिक़ मक्के मोकर्रमा में मस्जिदुल हराम के बाद मोलेदुन नबी( मकामे विलादते रसूल स०अ०) नफीस तरीन मकाम है। जब भी उन आसार को मिटाने की कोशिश की गई तो मुसलमानों ने अपने ग़म व गुस्से का इज़हार किया कुतुबे अहले सुन्नत में भी रवायत मौजूद है कि जब अमवी हाकिम वलीद बिन अब्दुल मलिक ने हाकिमे मदीना उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ को मस्जिदुन नबी स०अ० की वुसअत के लिए हुजरों को मुन्हदिम करने का हुक्म दिया तो जब यह हुजरे मुंहदिम हुए तो रसूल स०स० की कब्रे मुबारक ज़ाहिर हो गई। जिसे देख कर मुसलमान रंजीदा हुए, इज़हारे अफसोस किया, खुद उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ भी इस मंज़र को देख कर अपने आसूं न रोक सके और इस हुजरे की दोबारा तामीर का हुक्म दिया जिसमे हुज़ूर की क़ब्रे मुबारक है।

लेकिन अफसोस सद अफसोस आज वुसअत और तामीर के बहाने आए दिन जज़ीरतुल अरब खुसूसन हरमैने शरीफ़ैन के इस्लामी आसार ख़त्म किए जा रहे हैं और बनामे तौहीद तौहीद की अलामतों को मिटाने की नाकाम कोशिश की जा रही है ताकि लोग तौहीद से दूर हो जाएं लेकिन इन ना आक़ेबत अंदेशों को नही मालूम कि उनके इस अमल से न सिर्फ तौहीद ख़त्म होगी और तौहीद परस्तों के ईमान कमज़ोर होंगे बल्कि ईमान को मज़ीद जेला मिली और खुद उनकी हक़ीक़त लोगों पर वाज़ेह हो गई!

कितने तअज्जुब की बात है कि तौहीद का नाम लेने वाले और पूरे आलमे इस्लाम की क़यादत का दावा करने वाले आले सऊद ने यह कह कर रौज़ों को मुन्हदिम किया कि लोग यहां नमाज़ पढ़ते हैं,सजदा करते हैं जो ऐन ए शिर्क है लिहाज़ा उन्होंने शिर्क से रोकने के लिए यह मक़ामात मुन्हदिम किए हैं। बेशक शिर्क अज़ीम ज़ुल्म और सबसे बड़ा गुनाह है, इबादत वहदहू ला शरीक से मख़सूस है लेकिन क्या उन्होंने यह रवायतें नही पढ़ीं जो शिया और अहले सुन्नत दोनों ने अपनी किताबों में नक़्ल किया है कि जब हुज़ूर मेराज पर जा रहे थे तो हुक्मे खुदा से चार मक़ामात पर नमाज़ पढ़ी जैसे नबी ए खुदा हज़रत शोऐब अoसo के घर और बैतुल लहम में,तो क्या इसके बावजूद रसूल स०अ० और अहलेबैत अ०स० और सहाबा ए केराम से मख़सूस मक़ामात पर अल्लाह की इबादत शिर्क हो जाएगी?

98 बरस से जन्नतुल बक़ी की वीरानी मज़लूमियत की निशानी और आलमे इस्लाम की ग़ैरत पर सवालिया निशान है कि यह कैसी एहसान फ़रामोशी और मोहसिन कुशी है कि जिन्होंने अल्लाह की इबादत का सलीक़ा सिखाया आज उन्हीं के रौज़े वीरान हैं।
हम जन्नतुल बक़ी के इंहेदाम की शदीद मज़म्मत करते हैं और इस ज़ुल्म की जितनी मज़म्मत की जाए कम है, हम अक़वामे मुत्तहेदा और अपनी हुकूमत से मुतालेबा करते हैं कि वह इन मसाएल पर संजीदगी से गौर करें और ऐसा एक़दाम करें कि जिससे यह रौज़े दोबारा तामीर हो सकें ताकि हम सब दोबारा उन फ्यूज़ात व बरकात से मुस्तफीज़ हो सकें।

मोमिनीने केराम! मनहूस कोरोना वबा के सबब लॉक डाउन नाफिज़ है लिहाज़ा किसी तरह के जलसे व जुलूस का इमकान नही लेहाज़ा हुकूमत और अतिब्बा (डाक्टरों) के हिदायात के मुताबिक़ अपने घरों में रहें लेकिन सोशल मीडिया या दूसरे ज़राए अबलाग़ के ज़रिये इसकी याद ताज़ा रखें और जितना मुमकिन हो इस अज़ीम ज़ुल्म के खिलाफ एहतिजाज और उसकी मज़म्मत करें।

मालिक की बारगाह में दुआ है कि यह रौज़े दोबारा तामीर हों और ज़ालेमीन अपने कैफ़रे किरदार को पहुँचे।
वस्सलाम
(मौलाना) सय्यद सफ़ी हैदर ज़ैदी
सेक्रेटरी तनज़ीमुल मकातिब

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