۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली अकबर मेहदीपुर

हौज़ा / हौज़ा इल्मिया के प्रमुख शोधकर्ता और लेखक ने कहा: हरमे हज़रत मासूमा (स.अ.) की पवित्र दरगाह के आसपास लगभग एक लाख मुहद्देसीन एकत्रित हुए और लाभान्वित हुए और बाद में आयतुल्लाह शेख अब्दुल करीम हायरी ने हजरत मासूमा (स.अ.) को केंद्रति करते हुए हौज़ा ए इल्मिया की स्थापना की और आयतुल्लाहिल उज़्मा बुरूजर्दी शहरे बुरूजर्द से क़ुम आए और मदरसा को बढ़ावा दिया और कुम से कई प्रतिनिधियो को जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों में भेजा।

हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, 23 रबी-उल-अव्वल हजरत मासूमा (स.अ.) का क़ुम शहर मे आगमन का दिन है। इस अवसर पर हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के संवाददाता ने "शहरे क़ुम मे हौज़ा ए इल्मिया की स्थापना मे हरमे हज़रत मासूमा (स.अ.) की भूमिका" विषय पर हौज़ा इल्मिया के प्रमुख शोधकर्ता और लेखक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली अकबर मेहदीपुर से बात की है। जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

जिन आइम्मा (अ.स.) से हजरत मासूमा (स.अ.) के बारे में हदीसें हम तक पहुँची हैं। उनमें से सबसे पुराना हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) का है। हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) 148 हिजरी में शहीद हुए थे और हज़रत मासूमा (अ.स.) का जन्म 173 हिजरी में हुआ था, यानी हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) की शहादत के 25 साल बाद। इसलिए, यह ज्ञात रहे कि इमाम सादिक (अ.स.) ने हज़रत मासूमा (स.अ.) के जन्म से कम से कम 25 साल पहले उनके बारे में अच्छी खुशखबर दी थी।

हज़रत मासूमा (अ.स.) के जन्म से आधी सदी पहले इमाम सादिक (अ.स.) के क़म में आने की ख़ुशख़बरी

इस हदीस का वर्णन करने वाला कहता है कि उसने इस हदीस को इमाम सादिक (अ.स.) से सुना जब मूसा इब्न जाफर (अ.स.) का जन्म भी नहीं हुआ था। यानी हज़रत मासूमा (स.अ.) के जन्म से आधी सदी पहले भी हज़रत इमाम जाफ़र सादिक (अ.स.) ने क़ुम में आने की घोषणा कर दी है।

सबसे प्रसिद्ध हदीस, जो इमाम सादिक (अ.स.) से सुनाई गई है, कहती है: इस शहर मे मेरी संतान से एक औरत दफन होगी जिसका नाम फातिमा है। जो उनकी जियारत करेगा उस पर जन्नत वाजिब होगी।

यह कथन शेख सदूक से बहुत पहले "क़ुम का इतिहास" नामक पुस्तक के पृष्ठ 214 पर मौजूद है। हालांकि, बिहार अल-अनवर और अन्य पुस्तकों में भी इसी रिवायत का उल्लेख किया गया है।

उसी विषय पर इमाम सादिक (अ.स.) की एक और हदीस है जिसमें इमाम फरमाते हैं: उसका नाम फातिमा बिन्त मूसा इब्न जाफ़र है। उनकी शिफाअत से हमारे सभी शिया जन्नत में दाखिल होंगे।"

अपने बयानों में, हुज्जतुल इस्लाम मेहदीपुर ने आइम्मा (अ.स.) द्वारा क़ुम में हज़रत मासूमा (स.अ.) के आगमन की जो खुशखबरी दी है उनके कारणो का वर्णन करते हुए कहाः

अंबिया और पैगंबरो की किताबों में, अच्छी खबर सदियों पहले हजरत आदम , नूह, इब्राहीम, मूसा और अन्य नबियों द्वारा दी गई थी। क्योंकि उनके आगमन की घोषणा करना आवश्यक था। इसी तरह, हज़रत बक़ियातुल्लाहिल आज़म (अ.त.फ.श.) के बारे में तौरेत,  इंजील, स्तोत्र और पैगंबर की अन्य पुस्तकों में सैकड़ों संदर्भ हैं। और बीसयो रिवायत हजरत रसूल अल्लाह से पाई जाती है बताया जाता है कि इसी प्रकार हज़रत मासूमा की जात  एक महान संदेश देना था और मदरसा के अस्तित्व की धुरी बनना था, इसलिए यह ज्ञान था कि क़ुम में उनके धन्य अस्तित्व की भी घोषणा की गई थी।

चूंकि हज़रत मासूमा (स.अ.) की ज़ाते मुबारक एक महान संदेश था और मदरसा के अस्तित्व की धुरी होना था, यह ज्ञान था कि क़ुम में उनके धन्य अस्तित्व की भी घोषणा की गई थी।

उन्होंने कहा: कुछ हदीसों में क़ुम के बारे में कहा गया है कि "इस शहर (क़ुम) से ज्ञान पूरी दुनिया में फैल जाएगा।" इसी तरह, बिहार अल-अनवर में क़ुम के लोगों के बारे में 40 से अधिक हदीसें हैं।

हौज़ा इल्मिया के प्रमुख शोधकर्ता और लेखक ने कहा: क़ुम का मदरसा हज़रत फातिमा मासूमा (स.अ.) के आशीर्वाद से अस्तित्व में आया है। लगभग एक लाख मुहद्देसीन हज़रत मासूमा (स.अ.) की पवित्र दरगाह के आसपास एकत्र हुए और और बाद में आयतुल्लाह शेख अब्दुल करीम हायरी ने हजरत मासूमा (स.अ.) को केंद्रति करते हुए हौज़ा ए इल्मिया की स्थापना की और आयतुल्लाहिल उज़्मा बुरूजर्दी शहरे बुरूजर्द से क़ुम आए और मदरसा को बढ़ावा दिया और कुम से कई प्रतिनिधियो को जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों में भेजा।

तो आज हम अपनी आँखों से देखते हैं कि इमाम सादिक (अ.स.) और दूसरे आइम्मा (अ.स.) ने क़ुम के बारे में जो कहा वह आज प्रकट हुआ है और सभी महाद्वीपों में हजारों अलग-अलग स्कूल, मदरसे, हुसैनिया और मस्जिद स्थापित किए गए हैं। और, अल्लाह का शुक्र है, क़ुम के मदरसा के छात्रों के माध्यम से "क़ालल बाक़िर, क़ालल सादिक" की आवाज़ें हर जगह गूँज रही हैं।

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