हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को " नहजुल फसाहा " पुस्तक से लिया गया है। इस कथन का पाठ इस प्रकार है:
:قال رسول الله صلى الله عليه و آله وسلم
اَلظُّلْمُ ثَلاثَةٌ: فَظُلْمٌ لايَغْفِرُهُ اللّه ُ وَظُلْمٌ يَغْفِرُهُ وَظُلْمٌ لايَتْرُكُهُ، فَأَمَّا الظُّلْمَ الَّذى لايَغْفِرُ اللّه ُ فَالشِّرْكُ قالَ اللّه ُ: «إنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظيمٌ» وَأَمَّا الظُّلْمَ الَّذى يَغْفِرُهُ اللّه ُفَظُلْمُ الْعِبادِ أَنْفُسَهُمْ فيما بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ رَبِّهِمْ وَأَمَّا الظُّلْمَ الَّذى لا يَتْرُكُهُ اللّه ُ فَظُلْمُ الْعِبادِ بَعْضُهُمْ بَعْضا؛
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने फरमाया:
ज़ुल्म कि तीन किस्मों हैं: वह ज़ुल्म की जिसे खुदा कभी माफ नहीं करता, वह ज़ुल्म की जिसे ख़ुदा माफ कर देता है, और वह ज़ुल्म की जिससे खुदा रद्द नहीं होता,
(1)वह ज़ुल्म की जिसे खुदा कभी माफ नहीं करता और वह शिर्क,, है, अल्लाह तआला फरमाता है कि बेशक शिर्क बहुत बड़ा ज़ुल्म है,
(2)वह ज़ुल्म की जिसे खुदा माफ कर देता है, वह लोगों का अपने नफ्सों पर ज़ुल्म है, इन चीजों में जो उनके और उनके अल्लाह तआला के दरमियान है।
(3) और वह ज़ुल्म की जिसे अल्लाह तआला रद्द नहीं होता वह बंदोंओं का एक दूसरे पर ज़ुल्म है-
नहजुल फसाहा ,हदीस नं.1924